Kasganj News: यूपी के कासगंज में शूकर क्षेत्र सोरों जी भगवान वाराह की प्राकट्य स्थली है. यहां दूरदराज से लाखों तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान करने और उनका तर्पण करने पहुंचते हैं. ये सिलसिला सदियों से चला आ रहा है. लगभग 125 साल पहले अंग्रेजी शासनकाल के दौरान पौराणिक नगर सोरों जी के प्रबंधन को लेकर अंग्रेजी अधिकारी भी गंभीर दिखे थे. जिसके बाद उन्होंने 1868 में सोरों को नगरीय व्यवस्था के तहत पंच घर बना दिया. 1904 में इसे म्युनिसिपल बोर्ड का दर्जा मिला और यह नगरपालिका बना दी गई.
सोरों जी में पिंडदान करने का एक पौराणिक महत्व है. यहां स्थित हर की पौड़ी, गंगा कुंड में अस्थि विसर्जन करने के बाद अस्थियां महज 72 घंटे में गल जाती हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु का शूकर रूप में भगवान वाराह अवतार भी यहीं हुआ था. जब पृथ्वी रसातल में डूब रही थी तो भगवान विष्णु ने वराह अवतार में प्रकट होकर पृथ्वी का उद्धार किया था, जिसकी वजह से यहां सदियों से लाखों श्रद्धालु आते रहे हैं.
अंग्रेजों ने किया था नगरीय व्यवस्था का गठन
म्युनिसिपल बोर्ड बनने के बाद सोरों नगर में कूड़े का प्रबंधन, नालियों की सफाई, जल की व्यवस्था एवं सोरों नगर की गलियों में शाम होते ही लैंपोस्ट के जरिए रोशनी की व्यवस्था में म्यूनिसिपल बोर्ड द्वारा शुरू कर दी गई. सोरों नगर के रहने वाले आरके दीक्षित बताते हैं म्यूनिसिपल बोर्ड को चलाने का साधन चुंगी कर हुआ करता था. चुंगी कर के जरिए यहां आने वाले यात्रियों से कर वसूला जाता था, यही नहीं यहां आने वाले प्रत्येक सामान पर भी व्यापारियों द्वारा कर दिया जाता था. जिससे नगर के प्रबंधन और रखरखाव की व्यवस्था होती थी.
म्यूनिसिपल बोर्ड की व्यवस्था के तहत भारतीय रेलवे भी प्रति तीर्थयात्री पर का भुगतान सोरों नगरपालिका को किया करता था. इस स्टेशन पर उतरने वाले यात्रियों की गणना की जाती थी और उसके बाद हर दिन का लेखा-जोखा बनाकर रेलवे को सौंपा जाता था और रेलवे महीने भर में नगरपालिका को यात्रियों का टैक्स देता था.
ऐसे कराई जाती है सफाई
अंग्रेजी शासनकाल के दौरान नगर की नालियों की सफाई दो सफाई कर्मचारियों द्वारा की जाती थी. एक कर्मचारी झाड़ू लेकर कचरे को आगे बढ़ाता था तो दूसरा कर्मचारी मसक से पानी डालकर इस कचरे को बढ़ाने का काम करता था जिससे कस्बे की नालियां एकदम साफ हो जाया करती थी और इन नालियों में मच्छरों के उत्पन्न होने की संभावनाएं बिल्कुल शून्य हो जाया करती थी. अंग्रेजी शासनकाल में शहर की सफाई के लिए घर-घर से कूड़ा इकट्ठा कराकर शहर के बाहर कचरे का निस्तारण होता था.
लैंप पोस्ट से रौशन होता था शहर
शहर के मुख्य मार्गों और मुख्य गलियों में शाम के समय से ही लैंप पोस्ट के जरिए रोशनी का प्रबंध करने का काम ही निस्पल बोर्ड करता था. इसके अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारी दोपहर से ही लैंप पोस्ट में कैरोसिन ऑयल डालना शुरू कर देते थे, प्रत्येक गली में लगी लैंपोस्ट को कैरसिन ऑयल डालकर तैयार कर दिया जाता था और शाम होते ही ये लैंपोस्ट म्यूनिसिपल बोर्ड के कर्मचारियों द्वारा गलियों में जाकर जलाए जाते थे इन लैंपोस्ट को रात भर जला कर रखा जाता था, जिससे शहर की प्रकाश व्यवस्था सुचारू रह सके. सुबह होते ही यही कर्मचारी लैंपोस्ट बुझाते थे.
अब तक 55 नगर अध्यक्ष बन चुके हैं
सोरों नगर पालिका में पहली बार 1936 में गोपीनाथ रोहतगी अध्यक्ष बने. कस्बे के विकास के लिए उन्होंने कार्य किए. श्री राम अग्रवाल ने 1953 में अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद कस्बे के विकास की नई इबारत लिखी और शिक्षा क्षेत्र में भी कई कार्य किए. यशोधर शास्त्री ने 1958 में अध्यक्ष बनने के बाद कस्बे में सीमेंटेड का सड़कों का निर्माण शुरू कराया और गली को पक्का करने का काम किया. 1995 में हीरालाल कैलाश जी सोनू नगर पालिका के अध्यक्ष बने और उन्होंने हर की पदी कुंड में पश्चिम की ओर सीढ़ियों का निर्माण कराकर सोरों शूकर क्षेत्र तीर्थ स्थल के विकास में एक नया आयाम स्थापित किया.
साल 2012 में अध्यक्ष बनी अर्चना यादव ने सोरों शूकर क्षेत्र तीर्थ स्थल के विभिन्न स्थलों को विकसित करा कर उन्हें नया स्वरूप दिया साथ ही साथ कस्बे की विभिन्न समस्याओं का नगरपालिका के जरिए निराकरण किया. 1936 से लेकर 2022 तक यहां 55 अध्यक्ष बने.
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