UP Police: यूपी में पांच महिला सिपाही कराना चाहती हैं अपना जेंडर चेंज, पुलिस मुख्यालय को लिखा पत्र
UP Women Constable Gender Change News: यूपी पुलिस की महिला सिपाहियों के मुताबिक इन्हें बचपन से ही लड़कों की तरह रहना अच्छा लगता था और स्कर्ट-टॉप जैसे कपड़े पहनने में इन्हें संकोच होता था.
UP News: उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) से एक अनोखा मामला सामने आया है. पांच महिला सिपाहियों ने पुलिस मुख्यालय को पत्र लिखकर लिंग परिवर्तन की अनुमति मांगी है. ये महिला सिपाही गोंडा (Gonda), सीतापुर (Sitapur) और गोरखपुर (Gorakhpur) में कार्यरत हैं. इन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले का हवाला देते हुए इसे अपना संवैधानिक अधिकार बताया है. एक्सपर्ट के मुताबिक जिन महिला सिपाहियों ने यह इच्छा जाहिर की है, वे सभी जेंडर डिस्फोरिया की शिकार हैं.
इन महिला सिपाहियों के मुताबिक इन्हें बचपन से ही लड़कों की तरह रहना अच्छा लगता था और स्कर्ट टॉप जैसे कपड़े पहनने में इन्हें संकोच होता था. एक महिला सिपाही ने कहा कि उसे सिर्फ शर्ट पैंट पहनना और लड़कों की तरह बाल रखना अच्छा लगता है. साथ ही वह स्कूल में भी लड़कों के साथ लड़कों वाले ही खेल खेलना चाहती थी और अगर लड़के उसे लड़का कहकर बुलाते थे, तो उसे काफी अच्छा लगता था.
दिल्ली के अस्पताल में किया था संपर्क
अयोध्या की रहने वाली और गोरखपुर में तैनात एक महिला कॉन्स्टेबल ने कुछ दिनों पहले दिल्ली के बड़े अस्पताल में संपर्क किया था, जहां पता चला कि उसे जेंडर डिस्फोरिया है. गोरखपुर में तैनात महिला सिपाही 2019 में हुई पुलिस भर्ती में यूपी पुलिस में आई और तब से गोरखपुर में तैनात है. इस सिपाही ने इसी साल से लिंग परिवर्तन की दौड़ भाग शुरू की है और इसके लिए उसने गोरखपुर के कप्तान, एडीजी और मुख्यालय तक अपनी बात पहुंचा चुकी है.
अब इस सिपाही को मेडिकल रिपोर्ट का इंतजार है, जिसके आधार पर वह हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रही है. इस प्रकरण में डीजी ऑफिस ने सभी जिलों के संबंधित कप्तानों को पत्र जारी कर महिलाओं की काउंसलिंग करने के लिए आदेश जारी किया है. वहीं महिला कॉन्स्टेबलों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि मामले में अगर डीजी ऑफिस से कोई निर्णय नहीं होता है तो हाईकोर्ट का रुख करेंगी.
क्या कहते हैं डॉक्टर?
इस मामले में ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट और एसोसिएट प्रोफेसर सामुदायिक चिकित्सा डॉक्टर अक्शा शेख कहती हैं कि जेंडर डिस्फोरिया के बारे में व्यक्ति को बचपन में अंदाजा लग जाता है लेकिन सामाजिक प्रेशर के कारण वह लोग कुछ बोल नहीं पाते हैं. ऐसा कुछ अचानक से नहीं होता है. उन्होंने बताया कि बचपन में सामाजिक दबाव के कारण व्यक्ति को लगता है कि उसे शिक्षा पाने में यह बाधा बन सकता है या नौकरी पाने में कहीं बाधक न बने, इन कारणों से व्यक्ति बचपन के दिनों में ऐसी चीज नहीं बता पाता लेकिन सोशल सिक्योरिटी पानी के बाद व्यक्ति ऐसे परिवर्तन के बारे में सोच पाता है.
डॉक्टर ने कहा कि इस तरीके की चीजें कुछ और प्रदेशों (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश) में भी आई हैं और वहां पर हाईकोर्ट में इस पर पॉजिटिव निर्णय दिया है, इसलिए आज की तारीख में लोग ये सोच पा रहे हैं. हाईकोर्ट में इसके लिए क्राइटेरिया सेट किया है और उस आधार पर नौकरी की जा सकती है. डॉक्टर ने पुलिस की ओर से काउंसलिंग के विषय पर कहा कि जो लोग इतनी हिम्मत करके जेंडर चेंज करने की बात कह रहे हैं वो काउंसलिंग से नहीं सही हो सकती है, क्योंकि उन्होंने निर्णय कर लिया है. उन्होंने कहा अधिकतर केसेज में ऐसी बात बाहर सबके सामने कह पाना बहुत मुश्किल होता है और अगर कोई ऐसी बात करेगा तो उसका नफा नुकसान देख कर ही करेगा, इसलिए काउंसलिंग किसी का निर्णय बदल पाने में इस केस में संभव कम लगता है.
पूर्व डीजीपी एके जैन ने क्या कहा?
इस मामले पर यूपी पुलिस के पूर्व डीजीपी एके जैन ने कहा कि हमें ऐसे केस में लीगल ऑपिनियन लेना होगा. अगर वह महिला कोटे से भर्ती हुई है तो इस पर विचार करना होगा कि क्या सर्विस में रहने का उनका हक है कि नहीं. उस पर हाईकोर्ट के ऑर्डर को भी देखना होगा. फिलहाल यूपी पुलिस, एमपी पुलिस से लीगल ओपिनियन ले रही है कि पिछले दिनों वहां की हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया है. उन्होंने कहा कि आज की तारीख में स्वतंत्रता है और किसी को लगता है कि वह नारी नहीं पुरुष है तो वह चेंज कर सकती है. आज की तारीख में सेक्स चेंज के ऑपरेशन होते हैं लेकिन बस यह देखना होगा कि वह महिला कोटे से आई है तो नौकरी में कहीं उसका वायलेशन तो नहीं हो रहा है.
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