प्रयागराज: कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का एनकाउंटर होने के बाद योगी सरकार अब सूबे के जिन बाकी माफियाओं और बाहुबलियों पर शिकंजा कसने की तैयारी में है, उनमें प्रयागराज के पूर्व बाहुबली सांसद अतीक अहमद का भी नाम है. अतीक पांच बार का विधायक है. वह कभी पंडित नेहरू की सीट रही फूलपुर से सांसद भी रह चुके हैं.


अतीक सियासत का माहिर खिलाड़ी है, लेकिन साथ ही अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह भी. वह एक ऐसे इंटर स्टेट गैंग का सरगना है, जिसमें 121 एक्टिव मेंबर हैं. अतीक के क्रिमिनल रिकॉर्ड की लम्बी चौड़ी लिस्ट है. फिलहाल गुजरात की अहमदाबाद जेल में बंद अतीक के खिलाफ अब भी 50 से अधिक मुकदमे पेंडिंग हैं. उसका भाई भी जेल की सलाखों के पीछे है तो बेटे उमर पर सीबीआई ने दो लाख रूपये का इनाम घोषित कर रखा है.


18 साल की उम्र में दर्ज हुई पहली एफआईआर
एक दौर था जब अपराधी सियासत की शतरंजी बिसात पर मोहरे की तरह इस्तेमाल होते थे. वो नेताओं के लिए जान लेने और देने में नहीं हिचकते थे, लेकिन नब्बे के दशक की शुरुआत से पहले क्षेत्रीय पार्टियों की आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं ने अपराधियों को ही सत्ता में भागीदार बना दिया. जो क्रिमिनल एनकाउंटर से बचने और दूसरे फायदों के लिए सत्ताधारी नेताओं की परिक्रमा करते नहीं थकते थे, वो खुद जनता के मुख्तार बनने लगे. अपराधियों के सफेदपोश बनने और अपराध के राजनीतिकरण के बदलाव वाले उस दौर में सबसे चर्चित नाम प्रयागराज के अतीक अहमद का है. तकरीबन 55 साल के अतीक के पिता हाजी फिरोज भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे. पिता के नक्शे कदम पर चलने की वजह से अतीक के खिलाफ साल 1983 में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई, उस वक्त उसकी उम्र 18 साल थी. कुछ ही सालों में अतीक के गुनाहों की तूती बोलने लगी तो वह जिले की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बनने लगा. अतीक और पुलिस में लुकाछिपी का खेल आम हो गया था. एक वक्त ऐसा भी आया जब अतीक और उसके करीबियों पर पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का खतरा मंडराने लगा.



सियासत में हुई एंट्री
पुलिस एनकाउंटर से बचने के लिए अतीक ने साम्प्रदायिक कार्ड खेला और 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में सिटी वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई. उस दौर के हालात के चलते अतीक को चुनाव में कामयाबी भी मिल गई और वह माननीय विधायक बन गया. इसके बाद सिटी वेस्ट सीट से ही वो 1991, 1993, 1996 और 2002 में भी लगातार जीतता रहा. पहला तीन चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता तो 1996 का समाजवादी पार्टी के टिकट और 2002 का डॉ सोनेलाल पटेल के अपना दल से. साल 2004 में फिर से समाजवादी पार्टी में न सिर्फ उसकी वापसी हुई, बल्कि वह मुलायम सिंह की इसी पार्टी से उस फूलपुर से सांसद चुना गया, जो कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सीट हुआ करती थी. 2004 में सांसद चुने जाने तक अतीक ने जिस भी चुनाव में किस्मत आजमाई, उसे हर जगह कामयाबी मिली.



तबाह हो गया करियार
25 जनवरी साल 2005 को प्रयागराज में एक ऐसी घटना घटी, जो न सिर्फ इतिहास बन गई, बल्कि उसने अतीक और उसके परिवार के सियासी करियर को तबाह करके रख दिया. इस घटना के बाद भी अतीक ने लोकसभा और विधानसभा के कई चुनाव लड़े, लेकिन हर चुनाव में नाकामी ही उसके हिस्से आई. दरअसल, सांसद बनने के बाद अतीक को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पडी. अतीक ने अपने इस्तीफे से खाली हुई सीट पर अपने छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को सपा का टिकट दिलवा दिया. अशरफ के मुकाबले बीएसपी ने क्रिमिनल राजू पाल को टिकट दिया. दो बाहुबलियों की लड़ाई में अशरफ चुनाव हार गया और राजू पाल विधायक चुन लिया गया. विधायक बनते ही राजू पाल पर कई बार जानलेवा हमले हुए.



राजू पाल की हत्या
25 जनवरी 2005 को शहर के धूमनगंज इलाके में विधायक राजू पाल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गईं. विधायक की हत्या का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा. इस मामले में दोनों भाइयों को जेल भी जाना पड़ा. राजू पाल की हत्या के बाद सिटी वेस्ट सीट पर दूसरा उपचुनाव हुआ. तत्कालीन मुलायम सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया और सरकारी मशीनरी की मदद से अशरफ विधायक चुन लिया गया. इसी सीट से साल 2007 के चुनाव में अशरफ और 2012 में अतीक को हार का सामना करना पड़ा. अतीक ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट, 2014 में श्रावस्ती सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट, 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में आजाद और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन सभी जगह उसे करारी हार का सामना करना पड़ा. श्रावस्ती को छोड़कर लोकसभा के बाकी तीन चुनावों में तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई.



संगठित अपराध पर किया ज्यादा फोकस
ऐसा नहीं है कि सफेदपोश बनने के बाद अतीक ने काली करतूतों से तौबा कर ली हो, बल्कि यह कहा जा सकता है कि वक्त के साथ उसके अपराधों की संख्या बढ़ती चली गई. उसने सियासत को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया और हत्या-जानलेवा हमले, डकैती और अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा. सियासत में स्थापित होने के बाद उसने संगठित अपराधों पर ज्यादा फोकस किया और आपराधिक घटनाओं के बजाय अपना आर्थिक साम्राज्य मजबूत करने में लग गया. तमाम बेनामी सम्पत्तियां बनाईं. करीबियों के नाम पर करोड़ों-अरबों के ठेके लिए और बाद में कमीशन लेकर उन्हें दूसरों को दे दिया. 1995 में लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम उछला था. अतीक ने सफेदपोश बनने का किस तरह दुरूपयोग किया, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके खिलाफ नब्बे फीसदी से ज्यादा मुकदमे जनप्रतिनिधि बनने के बाद ही दर्ज हुए. महंगी गाड़ियों के काफिले और असलहाधारियों की फौज के साथ जब वह सड़कों पर चलता था तो फिल्मों के डॉन सरीखा नजर आता था. संगठित अपराधों को अंजाम देने और खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत करने की वजह से उसे माफिया कहा जाने लगा.


अतीक के गैंग में हैं 121 एक्टिव मेंबर
अतीक अहमद इंटर स्टेट गैंग का संचालक है. उसके गैंग का नंबर आईएस-227 है. उसके गैंग में 121 एक्टिव मेंबर हैं. गैंग के पास असलहों का जखीरा है. प्रयागराज पुलिस ने उसकी हिस्ट्रीशीट भी खोल रखी है. शहर के खुल्दाबाद थाने में उसकी हिस्ट्रीशीट का नंबर 53 A है. अतीक के खिलाफ अब तक करीब ढाई सौ मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. इनमें मायावती राज में एक ही दिन में दर्ज किए गए 100 से ज्यादा मुकदमे भी शामिल हैं, जिन्हे हाईकोर्ट के आदेश पर बाद में स्पंज कर दिया गया था. बड़ी संख्या में उसके मुकदमे वापस लिए जा चुके हैं, जबकि सबूतों और गवाहों के अभाव में तमाम मुकदमों में वह बरी हो चुका है. अभी तक उसे किसी भी मुकदमे में सजा नहीं मिल सकी है. मौजूदा समय में भी उसके खिलाफ 53 मुकदमे एक्टिव हैं. इनमें 42 मुकदमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि 11 मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है.



बेटे पर है 2 लाख रूपये का इनाम
अतीक अहमद को माफिया- बाहुबली और डॉन यूं ही नहीं कहा जाता. सख्त सरकार और जेल में रहने के बाद भी उसके जुर्म का सिक्का चलता रहता है. वह जेल की सलाखों के पीछे से भी अपनी सल्तनत चलाने में माहिर है. देवरिया जेल में कैद रहते हुए उसने न सिर्फ लखनऊ के एक कारोबारी का अपहरण कर उसे जेल बुलवाया, बल्कि वहां उसकी पिटाई कर उसका वीडियो भी सिर्फ इसलिए वायरल किया ताकि बाहर उसके नाम की दहशत बनी रहे. प्रयागराज की शुआट्स यूनिवर्सिटी में गुर्गों के साथ घुसकर वहां के टीचर्स को सरेआम पीटाने के मामले में फरवरी 2017 से वह जेल में है. कारोबारी मोहित अपरहरण कांड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वो पिछले एक साल से गुजरात की अहमदाबाद जेल में है. अतीक का छोटा भाई पूर्व सपा विधायक अशरफ भी हाल ही में गिरफ्तार हुआ है. कई सालों तक एक लाख के इनामी रहे अशरफ के खिलाफ 33 मुकदमे दर्ज हैं. अतीक का बेटा मोहम्मद उमर दिल्ली से कानून की पढ़ाई कर रहा है. सीबीआई ने उस पर 2 लाख रूपये का इनाम घोषित कर रखा है.



माफियाओं पर शिकंजा कसने की तैयारी
विकास दुबे के साम्राज्य को तहस नहस करने के बाद यूपी सरकार अब अतीक जैसे माफियाओं पर शिकंजा कसने की तैयारी में है. अतीक और उसका भाई पहले से ही जेल में है, लिहाजा इनकी दहशत की दुनिया के खात्मे की कवायद की जा रही है. प्रयागराज रेंज के आईजी केपी सिंह के मुताबिक अतीक भले ही जेल में हो, लेकिन उसके गैंग के बाकी सदस्यों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा. जो सदस्य जमानत पर हैं, उनकी बेल कैंसिल कराकर उन्हें फिर से जेल भेजा जाएगा. गैंग के मददगारों पर शिकंजा कसा जाएगा. असलहों के लाइसेंस को निरस्त को कराया जाएगा. बेनामी सपत्तियां सीज कर उन्हें जब्त किया जाएगा तो साथ ही काली कमाई के स्रोत बंद कराए जाएंगे. जरूरत पड़ने पर ईडी से भी जांच कराई जाएगी.


टूट सकता है तिलिस्म
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार अनुपम मिश्र के मुताबिक अतीक जैसे सफेदपोश माफिया रसूखदार होते हैं, लेकिन अगर सरकार इच्छाशक्ति दिखाए और अफसरान ईमानदारी से काम करें तो इनका तिलिस्म तोड़ना कतई मुश्किल भी नहीं है. अतीक पर भले ही शिकंजा कसने की तैयारी हो, लेकिन उसका परिवार और करीबी उसे माफिया डॉन बताए जाने से कतई इत्तेफाक नहीं रखते. कई मुकदमों में बाहुबली की पैरवी कर चुके अतीक के पूर्व वकील सैयद अहमद नसीम का कहना है कि अतीक के खिलाफ ज्यादातर मुकदमे सियासी बदले की भावना से दर्ज किए गए हैं. कुछ विपक्षी उसकी छवि खराब करने और बदनाम करने के लिए उसे गुंडा और माफिया बताते हैं, जबकि हकीकत में वह सच्चा जनप्रतिनिधि और गरीबों का रहनुमा है.


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