UP Politics: उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के पहले सियासत की बिसात बिछाई जा रही है. हर राजनीतिक दल अपने हिसाब से दावे और वादे कर रहा है. इन दावों और वादों में जातियों और धर्मों के समीकरण भी साधे जा रहे हैं. एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी सभी वर्गों को साथ लाने की कोशिश में है तो वहीं बहुजन समाज पार्टी अपने वोट बैंक को सहेजने में जुटी है.


दूसरी ओर कांग्रेस अपना पुराना जनाधार हासिल करने में लगी हुई है. वहीं समाजवादी पार्टी नए समीकरण बनाने में लगी हुई है. करीब 6 महीने पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने PDA का फॉर्मूला पेश किया है. तब उन्होंने इसका फुलफॉर्म- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक बताया था. अब उन्होंने इसकी परिभाषा भी बदल दी है. अखिलेश की नई परिभाषा से एक ओर जहां सपाईयों में यह संदेश गया कि पार्टी अब नए समीकरण बनाने में लग गई है और उसी धारा में काम करना होगा तो वहीं अन्य दलों के समीकरण बिगड़ते दिख रहे हैं.


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अखिलेश यादव ने सोमवार को पीडीए यात्रा शुरू होने से पहले एक प्रेस वार्ता की और उसमें पीडीए में ए फॉर अगड़ा बताया. यानी अब सपा सिर्फ पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि अगड़ों को भी अपने समीकरण में शामिल करने की कोशिश में लग गई है. उनकी नई परिभाषा से  सपा नेता और यूपी सरकार के पूर्व काबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के उसके बयान की याद दिला रही है जिसमें उन्होंने कहा था- 100 में 85 हमारा है, 15 में भी बंटवारा है.


स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी दिया था ये नारा
सपा का मानना है कि यूपी की कुल आबादी में 85 फीसदी जनता पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक हैं, जबकि 15 फीसदी में अगड़े शामिल हैं. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने 85 और 15 का नारा दिया था. तब माना जा रहा था कि पार्टी इस नारे के जरिए बाकी मतदाताओं तक भी अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में है. 


अगर सपा प्रमुख द्वारा पीडीए की नई परिभाषा देने से पार्टी को कामयाबी की राह दिख रही है तो इससे निश्चित तौर पर अन्य दलों की मुश्किलें बढ़ सकती है. बीजेपी, बसपा और कांग्रेस ने अभी तक अखिलेश की नई परिभाषा पर कोई टिप्पणी नहीं की है. जानकारों की मानें तो साल 2007 में बसपा की सरकार बनाने में अगड़ों की महती भूमिका थी. बीजेपी के भी वोटबैंक का बड़ा जनाधार अगड़े हैं. ऐसे में अखिलेश यादव के पीडीए पर नए फैसले से मुख्य तौर पर बीजेपी और बसपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है.