UP Politics: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव साल 2027 में प्रस्तावित हैं. इससे पहले उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के बीच हिंदू प्रतीकों की राजनीतिक जंग दिखाई दे रही है. इस लड़ाई में शिवलिंग है. मस्जिद है. बावड़ी है और महाकुंभ भी है. इन सबको देखते हुए आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2027 की सियासी लड़ाई सनातन के मुद्दे की तरफ झुकती नजर आ रही है.


अखिलेश यादव के शिवलिंग पर दिये गए बयान को 2027 की उसी लड़ाई का एक हिस्सा माना जा रहा है. अखिलेश यादव ने यूपी के सीएम आवास के नीचे शिवलिंग का दावा कर दिया. अखिलेश यादव ने कहा था अगर लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास की खुदाई की जाए तो वहां पर शिवलिंग मिल सकता है और ये उनका भरोसा है. अखिलेश यादव ने बीते रविवार एक प्रेस वार्ता में कहा था कि अगर खुदाई हो ही रही है तो मुख्यमंत्री आवास में भी एक शिवलिंग है. वहां भी खुदाई होनी चाहिए.


क्या है अखिलेश के इस बयान का मतलब?
अखिलेश यादव के इस बयान को मस्जिदों में शिवलिंग खोजने के विरोध से जोड़कर देखा जा रहा है. बयान को अल्पसंख्यकों के साधे की कोशिश कहा जा रहा हैै. साथ ही हिंदू मुस्लिम मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने वाला प्रयास भी माना जा रहा है. इसे PDA की मजबूती से जोड़कर भी देखा जा रहा है.


शिवलिंग की तलाश में खुदाई पर तंज कसा गया तो बीजेपी भी कुदाल फावड़ा लेकर मैदान में उतर आई. अखिलेश को शिव से लेकर सनातन तक की घुट्टी पिलाई जा रही है. बताने का प्रयास किया गया कि अखिलेश सनातन के विरोधी हैं. और सिर्फ मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए वो इस तरह के बयान दे रहे हैं. शिवलिंग खोजने के मुद्दे पर बीजेपी और उसके साथियों ने अखिलेश यादव को घेर लिया.


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अखिलेश यादव भी ये बात बखूबी जानते हैं. इसीलिए अपने बयान के अगले हिस्से में उन्होंने महाकुंभ का मुद्दा भी उठाया. वो मुद्दा जो उत्तर प्रदेश के सबसे बडे़ वोट बैंक यानी हिंदू और सनातन से जुड़ा है. अखिलेश ने कैसे महाकुंभ के आयोजन पर योगी सरकार को घेरा है और उसके मायने क्या हैं?



अब अखिलेश ने महाकुंभ का मुद्दा उठाया
इसके लिए हमें सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रयागराज दौरों की ओर ध्यान देना होगा. सीएम योगी आदित्यनाथ, मंगलवार 31 दिसंबर को पांचवीं बार महाकु्ंभ की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे थे. उन्होंने श्रद्धालुओं के ठहरने से लेकर सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा की. इस दौरान त्रिवेणी के तट पर आचमन भी किया. प्रयागराज में महाकुंभ को यूपी सरकार अब तक का सबसे शानदार आयोजन बता रही है. सबसे बेहतर इंतजाम का दावा कर रही है. लेकिन अखिलेश यादव उसी महाकुंभ की तैयारियों पर सवालों की बौछार कर रहे हैं. जिन तैयारियों की योगी लगातार समीक्षा कर रहे हैं. अखिलेश उन तैयारियों पर गंभीर आरोप लगा रहे है.


महाकुंभ पर अखिलेश ने कहा था कि कुंभ में काम अधूरा है. पुल नहीं बने हैं.15 दिन में कैसे बन जाएगा? हमारे सवालों पर सरकार ने रियलटी चेक कराया लेकिन उस पर कोई बात नहीं की जो सवाल हम उठा रहे थे. इसके बाद हम पीडीए पत्रकार से रियलिटी चेक कराया. कुंभ में लोग खुद से आते हैं. कोई निमंत्रण नहीं देता.


क्या है सपा चीफ की रणनीति?
माना जा रहा है कि इस बयान के जरिए अखिलेश खुद को सनातनियों का हितैषी और बड़ा शुभचिंतक बताने का प्रयास कर रहे हैं. वो ये दिखाना चाहते हैं कि योगी सरकार भले ही महाकुंभ पर बेहिसाब पैसे खर्च कर रही है लेकिन उनके शासनकाल में कम बजट में ही पूरी सुरक्षा और बेहतर इंतजाम किये गए. माना जा रहा है कि महाकुंभ में मुस्लिमों की एंट्री पर बैन के मुद्दे पर भी अखिलेश संदेश देना चाह रहे हैं कि मौजूदा समय में भले ही महाकुंभ में मुस्लिमों की एंट्री बैन करने की बात उठ रही हो लेकिन समाजवादी सरकार में उनके मुस्लिम मिनिस्टर यानी आजम खान ने ही महाकुंभ का शानदार आयोजन किया.


अखिलेश यादव के इस बयान के पीछे है 2024 लोकसभा चुनाव में उनका PDA पॉलिटिक्स वाला फॉर्मूला. जिसके सहारे अखिलेश ने बीजेपी के हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाई. बीजेपी भी इस बात से बात अच्छे से समझती है कि अगर अखिलेश के PDA के फॉर्मूले को काटना है तो उसे जाति से उठकर हिंदुत्व और सनातन के मुद्दे पर ही चलना होगा. 


चुनावी आंकड़ों में कितना तब्दील हो पाया अखिलेश का सियासी दांव?
अखिलेश के इस दांव को अलग चुनावी आंकड़ों के लिहाज से देखें तो साल 2019 में जहां सवर्णों ने एनडीए को 83 फीसदी वोट किया था तो वहीं 2024 में यह प्रतिशत घटकर 79 तक पहुंच गया. वहीं 2019 में जहां 23 फीसदी यादवों ने एनडीए को वोट किया तो इस बार सिर्फ 15 प्रतिशत ही उसके साथ गए. कुर्मी कोइरी ने एनडीए को 80 और अन्य ने 72 फीसदी वोट किया था. जबकि साल 2024 में यह आंकड़ा क्रमशः 61 औ 59 फीसदी रह गया. 2019 में नान जाटव से 48 फीसदी वोट एनडीए को गए थे और 2024 के चुनाव में सिर्फ 29 फीसदी मत मिले. मुस्लिमों की बात करें तो 8 फीसदी ने 2019 और महज 2 फीसदी ने साल 2024 में एनडीए को वोट किया.


दूसरी ओर INDIA गठबंधन की बात करें तो साल 2019 में सपा ने बसपा के साथ चुनाव लड़ा था. 2024 में वह कांग्रेस के साथ थी 2019 में महागठबंधन में 7 फीसदी से ज्यादा सवर्णों ने वोट किया था. वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 16 फीसदी हो गया. 2019 में 60 फीसदी यादव महागठबंधन की ओर गए तो 2024 में 82 फीसदी ने साथ दिया. वहीं कुर्मी कोइरी आबादी का जो सिर्फ 14 फीसदी महागठबंधन के साथ था 2024 में वह आंकड़ा बढ़कर 34 फीसदी हो गया. अन्य ओबीसी वर्ग की बात करें तो साल 2019 के चुनाव में महागठबंधन को 18 फीसदी वोट मिले, वहीं साल 2024 के चुनाव में यह आंकड़ा 34 फीसदी पहुंच गया. नान जाटव मतों में भी काफी अंतर देखने को मिला. साल 2019 में महागठबंधन को 42 फीसदी मत मिले तो वहीं 2024 में 56 प्रतिशत तक आंकड़ा पहुंचा.साल 2019 में जहां 73 फीसदी मुस्लिमों ने महागठबंधन का साथ दिया था तो वहीं 2024 में यह आंकड़ा 92 फीसदी तक पहुंच गया. 


राजनीतिक विश्लेषक हेमंत तिवारी ने इस संदर्भ में एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि लगातार जो  बयान अखिलेश यादव के आए हैं, वो उनकी एक सेट पैटर्न की पॉलिटिक्स का हिस्सा है. बीते साल भी इसी वक्त अखिलेश यादव को पीडीए फॉर्मूला निकाला था जिसका उन्हें फायदा भी मिला. तय है कि वह 2027 के विधानसभा चुनाव में इसी लाइन पर जाएंगे. अखिलेश यादव का फोकस 2027 का विधानसभा चुनाव रहेगा.