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2022 की गलती तो नहीं दोहरा रहे अखिलेश यादव? 2027 में सफल हो पाएगी पुरानी चाल!

Samajwadi Party के राष्ट्रीय अध्यक्ष Akhilesh Yadav ने साल 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए जो प्लान बनाया है. उससे साल 2022 चुनाव की रणनीतियों की यादें ताजा हो गईं हैं.

UP Politics: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अभी लगभग ढाई साल से ज्यादा का वक्त है लेकिन भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी ने कमर कसनी शुरू कर दी है. जून में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों से उत्साहित समाजवादी पार्टी नई रणनीति पर काम कर रही है. लोकसभा चुनाव के दौरान सपा प्रमुख और कन्नौज सांसद अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा उछाला था, जिसका उन्हें लाभ भी मिला.

अखिलेश के पीडीए में पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक, अगड़ा और आदिवासी को जोड़ने की कोशिश की गई थी. इस चुनाव में इसका असर भी दिखा. जहां खुद अखिलेश की पार्टी 37 सीटें जीतने में सफल हुई वहीं उसकी सहयोगी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी 6 सीटों पर पहुंच गई.

इन सबके बीच अब 2027 की लड़ाई के लिए मंच तैयार हो रहा है. इस सियासी लड़ाई में अखिलेश जहां अभी भी पीडीए का नारा बुलंद कर रहे हैं वहीं इसमें अगड़ों और उसमें भी ब्राह्मणों पर खास फोकस है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अखिलेश 2022 में की गई सियासी गलती दोहरा रहे हैं या 2027 के लिए इस पुरानी चाल का नए तरीके से लिटमस टेस्ट की प्लानिंग कर रहे हैं?

हरिशंकर तिवारी का मुद्दा अखिलेश ने उठाया
बीते दिनों सपा नेता भीष्म शंकर तिवारी ने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर पोस्ट कर जानकारी दी कि उनके पिता और यूपी सरकार के भूतपूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए बनाए जा रहे चबूतरे को गोरखपुर में जिला प्रशासन ने तोड़ दिया. तब यह किसी ने भी सोचा भी नहीं था कि अखिलेश यादव इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरेगें और पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई को नए सियासी मोर्चे पर लाकर खड़ा करेंगे. 

न सिर्फ अखिलेश ने सोशल मीडिया पर यह मुद्दा उठाया बल्कि विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान भी नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, सपा नेता और जसवंतनगर विधायक शिवपाल सिंह यादव, सपा विधायक कमाल अख्तर ने इसकी चर्चा की मांग की. हालांकि नोटिस न देने की वजह से इस पर चर्चा नहीं हुई.

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भले ही विधानसभा में चर्चा न हो पाई हो. न ही सरकार की ओर से इस पर कोई खास बयानबाजी की गई हो लेकिन सपा इस मुद्दे को भुनाने में जुट गई है. अब जानकारों का कहना है कि अखिलेश साल 2022 के विधानसभा चुनाव की रणनीति को साल 2027 के विधानसभा चुनाव की जमीन पर अभी से आजमाना चाहते हैं ताकि आगामी उपचुनाव में इसका लिटमस टेस्ट हो पाए.

ऋत्विक पांडेय हत्याकांड पर भी सपा ने लगाए आरोप प्रत्यारोप
नेताओं को सियासी और संवैधानिक जिम्मेदारियां देने के अलावा अखिलेश यादव और सपा ने योगी सरकार की कानून और व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए लखनऊ के ऋत्विक पांडेय हत्याकांड के जरिए बीजेपी पर निशाना साधा. सपा के नेताओं का प्रतिनिधिमंडल ऋत्विक पांडेय के घर गया और सरकार से त्वरित न्याय की मांग की. उधर बीजेपी ने आरोपों पर सपा को आईना दिखाया और कहा कि उनकी सरकारों में कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ होता रहा है. सपा इस मामले को जातीय रंग देकर राजनीति करने की कोशिश कर रही है.

मोमेन्टम बरकरार रख पाएगी सपा?
दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने ब्राह्मण कार्ड खेला और जनता में यह मैसेज देने की कोशिश की यह वर्ग बीजेपी से नाराज है. हालांकि इसका कुछ खास असर नहीं हुआ और सपा को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में सपा की कोशिश है कि वह ब्राह्मण कार्ड खेलकर आगामी 10 सीटों के प्रस्तावित उपचुनाव में इस रणनीति का लिटमस टेस्ट करे. अगर परिणाम उसके पक्ष में रहे तो वह आगे भी इस रणनीति पर काम करेगी. 

साल 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण करें तो जानकारों का दावा है कि सपा इस बार मुस्लिम और यादव समीकरण से कहीं आगे बढ़ी. उसे समाज के अन्य वर्गों का भी सहयोग और वोट मिले. इन परिणामों से उत्साहित सपा की कोशिश है कि इस मोमेन्टम को बरकरार रखा जाए.

माना जा रहा है कि चाहे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा माता प्रसाद पांडेय को देना हो या हरिशंकर तिवारी की जयंती पर पोस्ट करना हो, अखिलेश यह सब एक खास रणनीति के तहत कर रहे हैं. हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के मुद्दे पर सरकार से स्पष्ट तौर पर सिर्फ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी बात कही. हालांकि उन्होंने इसे भी 'ये गोरखपुर वाले जानें' कह कर बात को टाल दिया.

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश की पुरानी रणनीति और नई चाल का बीजेपी क्या जवाब देती है. 

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