UP Politics: उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों जबरदस्त हलचल देखने को मिल रही है. यूपी उपचुनाव से पहले तमाम सियासी दल अपनी चालें चलने में लगे हैं. इसी बीच पिछले दिनों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच 'धन्यवाद' और 'आभार' ऐसा सिलसिला चला कि भारतीय जनता पार्टी के कान खड़े हो गए हैं. सपा अध्यक्ष ने मायावती पर दिए विवादित बयान पर पलटवार किया तो मायावती ने उनका धन्यवाद दिया. जिसके बाद यूपी की सियासत में नई हलचल दिख रही है.
बसपा सुप्रीमो भले ही समाजवादी पार्टी पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं लेकिन सियासी जानकारों का कहना है कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है. अखिलेश यादव और मायावती के बीच अप्रत्यक्ष रूप से शुरू हुआ ये संवाद नए समीकरण बना सकता है.पिछले कुछ दोनों ओर से सुर नरम होते दिखाई दिए हैं. ये नरमी बीजेपी के खतरे की घंटी हो सकती है.
सपा-बसपा की नरमी से बढ़ा खतरा
दरअसल पूरे मामले की शुरूआत बीजेपी विधायक राजेश चौधरी के एक बयान से शुरू हुई. जिसमें उन्होंने मायावती को यूपी की सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बताया और उन्होंने पहली बार बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनाए जाने को बीजेपी की गलती कहा था. उन्होंने ये बात एक टीवी कार्यक्रम में कही थी, जिसके बाद वो अखिलेश यादव सबसे पहले मायावती के बचाव में उतर गए.
सपा अध्यक्ष ने न सिर्फ इसे बसपा सुप्रीमो का अपमान बताया बल्कि बीजेपी विधायक से माफी की मांग तक कर डाली थी. अखिलेश यादव के इस बयान पर बसपा सुप्रीमो ने भी प्रतिक्रिया दी और इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया. हालांकि इस दौरान उन्होंने अखिलेश यादव के गेस्ट हाउस कांड भी याद दिलाई. अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया पर मायावती के धन्यवाद को हलके में नहीं लिया जा सकता है.
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क्या कहते हैं सियासी जानकार
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच सीटों को लेकर मामला फंसता है तो अखिलेश बसपा का रुख भी कर सकते हैं. या फिर यूपी में इंडिया गठबंधन का विस्तार भी हो सकता है. बसपा भले ही अभी अपने कमजोर दौर में है लेकिन सपा अध्यक्ष जानते हैं कि उनकी ताकत कम नहीं हुई है. बसपा का वोटबैंक आज भी उनके एक आह्वान पर साथ खड़ा हो सकता है.
मायावती का रुख अगर बदलता है और वो इंडिया गठबंधन की ओर रुख़ करती है तो इससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है. यही वजह से है कि अब बीजेपी दोनों दलों पर कड़ी नजर रख रही है.