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Loksabha Election: लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती, बिखरे हुए वोट बैंक को साधने के लिए क्या करेगी पार्टी?

UP Politics: उत्तर प्रदेश में हुए घोसी उपचुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी अपने कोर वोटर को लेकर सजग हो रही है. अपेक्षा पूरी नहीं होने पर बीजेपी का कोर वोटर उसे झटका दे सकता है.

Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी के सामने अब अपने कोर वोटर को सहेजने की बड़ी चुनौती है. इसकी वजह है कि अभी हाल में हुए घोसी उपचुनाव ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि अगर इसके प्रति सजग नहीं हुए तो 2024 काफी जोखिम भरा हो सकता है.

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि चाहे घोसी हो या खतौली, बीजेपी का अपना वोट बैंक छिटकता नजर आ रहा है. खतौली में जाट, गुर्जर, दलित और मुस्लिम विपक्ष की ओर चले गए. लेकिन बीजेपी अपने परंपरागत वोट, ब्राह्मण, क्षत्रिय, त्यागी जैसे वोटों को संजोने में नाकाम रही. खतौली में 44 बूथों पर गठबंधन तो 25 बूथों पर बीजेपी जीत सकी. कई बूथों पर बीजेपी दहाई भी नहीं छू सकी. इन सभी जगहों पर मिश्रित वोटर थे.

घोसी उपचुनाव में छिटक गए वोटर

वहीं घोसी उपचुनाव के मतदान में डाले गए कुल 2,17,571 वोटों में से सुधाकर को 57.19 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जबकि दारा सिंह चौहान को 37.54 प्रतिशत वोट मिले. यह साफ संकेत है कि कार्यकर्ता की अनदेखी और प्रत्याशी बाहरी होना पार्टी के लिए जोखिम भरा रहा है. इस चुनाव में उनका परंपरागत वोट राजभर, वैश्य क्षत्रिय, ब्राम्हण भी खिसकता नजर आया. वोटरों ने उम्मीदवार के साथ बीजेपी से भी नाराजगी दिखाई है. इसे बचाए रखने की बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है.

घोसी में सपा गठबंधन के उम्मीदवार लगभग हर वर्ग को साधने में न सिर्फ कामयाब रहे बल्कि बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी करने में भी उन्हें सफलता मिली. घोसी की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का मानना है कि घोसी सीट बीजेपी के हाथ से फिसलने में दारा सिंह चौहान का दल बदलना सबसे बड़ा कारण रहा. स्थानीय और बीजेपी के लोग दारा सिंह चौहान के स्वहित की वजह से चुनाव थोपे जाने से नाराज थे. इसी बात का फायदा सुधाकर सिंह को मिला, उन्होंने दारा सिंह को 42759 वोटों से शिकस्त दी.

बीजेपी को मिल सकती है कड़ी चुनौती

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि 2014 के समय में नरेंद्र मोदी और बीजेपी की लहर थी. इस कारण इन्हें फायदा और वोट मिला, लेकिन खतौली और मऊ के उपचुनाव में यह लहर नदारद रही, जो बीजेपी को वोट दिला रही थी. इनका कोर वोटर, उम्मीदवार से नाराजगी या कोई अन्य कारण हो, पार्टी से खिसका है. सुधाकर को मऊ में करीब 58 फीसद वोट मिलना ही इस बात का संकेत है कि केवल यादव और मुस्लिम ही नहीं उन्हे सामान्य वर्ग के साथ राजभर, भूमिहार, निषाद और दलित ने भी वोट दिया है. बीजेपी को साफ संदेश है कि मतदाता हर समय आपके लिए ही नहीं है. लोकसभा चुनाव को लेकर जिस प्रकार विपक्षी एकता बना रहा है. उससे बीजेपी को कड़ी चुनौती दे सकता है. अगर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव प्रत्याशी चयन में या रणनीति में कोई भी जोखिम लिया तो इनकी चुनौती बढ़ सकती है.

अपेक्षा पूरी नहीं होने पर कोर वोटर दे सकता है झटका

कई दशकों से यूपी की राजनीति में नजर रखने वाले रतनमणि लाल कहते हैं कि बीजेपी का जो कोर वोटर होता है अगर उसकी अपेक्षा पूरी नहीं होती तो उन्हें झटका देते हैं. पार्टी के लोग कहते हैं कि जब कोई बड़ा चुनाव होता है तो हमारे साथ नजर आता है. यह पार्टी के अंदर की धारणा, माध्यम वर्गीय, कर्मचारी हो या व्यापारी हो उपचुनाव जैसे झटके देते हैं.

उन्होंने कहा, एक बड़ा वर्ग ऐसा सोचता है कि जो अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई तो वह दूसरी ओर रुख करते हैं. लोगों में यह सोच भी देखने को मिलती है कि इस सरकार ने दस साल में इतना ही मिला है अब दूसरे को देखते हैं. दूसरा फैक्टर जाति और धर्म का कॉम्बिनेशन है जो बीजेपी को नुकसान पहुंचाता है. एक वर्ग को लगता है कि उनकी पूछ नहीं हो रही है, लेकिन बीजेपी के लोग मानते है कि जब भी कोई बड़ा चुनाव होगा तब यह वोटर उनके साथ नजर आयेगा.

बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे वोटर के छिटकने वाली बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना हैं कि बीजेपी के जो भी वोटर हैं वो पूरी मजबूती के साथ पार्टी के साथ हैं. कई बार चुनाव के समीकरण मुद्दे और परिस्थिति अलग होती है. उनका अलग अलग प्रभाव होता है. उपचुनाव का सरकार में कोई असर नहीं पड़ता है. 2014 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं यूपी की जनता ने बीजेपी का साथ दिया. एक आध उपचुनाव में बीजेपी को सफलता नहीं मिली, उसकी समीक्षा हो रही है, लेकिन ऐसे में यह मानना कि बीजेपी का मूल वोटर उससे छिटक रहा है, ऐसा बिल्कुल नहीं है.

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