UP Politics: मायावती का हर दांव हो रहा फेल! सालभर में 6 बार बदल चुकीं जिलाध्यक्ष, फिर भी BSP का बुरा हाल
Mayawati: कानपुर में दलित वोटरों की संख्या अच्छी खासी होने के बावजूद बसपा को एक बार फिर अपने रूतबे को बनाने के लिए कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ रही है. उसका जमीन पर असर नहीं दिख रहा है.
Mayawati News: उत्तर प्रदेश के सियासी अखाड़े में कभी बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ही सबसे अहम मानी जाती थी लेकिन बीजेपी की सरकार बनने के बाद बसपा अपने सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है. बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी के अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रही है. बात करें कानपुर शहर की तो यहां सालभर जिले की कमान 6 बार अलग अलग जिलाध्यक्षों को सौंपी जा चुकी है लेकिन जिस मजबूती की उम्मीद थी वो पूरी नहीं हो पाई.
कानपुर में दलित वोटरों की संख्या अच्छी खासी होने के बावजूद बसपा को एक बार फिर अपने रूतबे को बनाने के लिए कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ रही है लेकिन उसका जमीन पर असर नहीं दिख रहा है. हाल ही में हुए यूपी उपचुनाव में कानपुर की सीसामऊ सीट पर चुनाव हुए लेकिन इसमें बसपा तीसरे नंबर पर रही. बसपा सिर्फ तीसरे नंबर पर ही नहीं रही बल्कि पार्टी के खाते में सिर्फ 1300 वोट ही आए. जो बसपा के लिए बेहद ख़राब प्रदर्शन रहा.
इन नतीजों से नाराज होकर शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर से अपने जिलाध्यक्ष को बदल दिया और राजकुमार कप्तान को हटाकर नए कप्तान जयप्रकाश को कमान सौंप दी है. बसपा ने फिर से पुरानी ताक़त बटोरने के लिए सालभर में छह बार जिलाध्यक्ष भी बदले लेकिन नतीजा वैसा नहीं रहा जैसा मायावती को उम्मीद थी.
बसपा का सियासी अस्तित्व खतरे में
कानपुर में अगर पिछले चुनावों की बात की जाए फिर चाहे वो लोकसभा हो विधानसभा हो या छोटे चुनाव एक समय ऐसा रहा जब बसपा का अपना वजूद प्रदेश के साथ शहर में भी मजबूत था. लेकिन, अब चार बार यूपी की कमान संभालने वाली मायावती की सीटें लगातार कम होती चली गईं. कानपुर शहर में भी बसपा कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है.
चुनावी नतीजों से इतर जब बसपा किसी विरोध प्रदर्शन का ऐलान करती है तो बसपा समर्थकों की भारी भीड़ दिखाई देते हैं लेकिन, उसका असर चुनाव में दिखाई नहीं देता और न ही पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ पा रहा है. लोकसभा चुनाव से लेकर सीसामऊ उपचुनाव में बीएसपी ने अपना प्रत्याशी भी उतरा था लेकिन न तो चुनाव के दौरान जनता के बीच प्रत्याशी दिखा और न ही कोई खास प्रचार किया.
फिलहाल कानपुर में बसपा के कम होते वजूद की गवाही लगातार शहर में जिलाध्यकों के नाम नए-नए नाम ओर उनके पदभार को देखकर लगाया जा सकता है लेकिन साल भर में छह जिलाध्यक्षों बदलने के बाद भी पार्टी कोई कमाल क्यों नहीं दिखा पा रही है. जिसने बसपा की चिंताएं और बढ़ा दी हैं.