Sanjay Nishad News: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद सहयोगी दलों की नाराजगी भी खुलकर सामने आ रही है. यूपी में एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने नतीजे आने के बाद ही बुलडोजर नीति को लेकर योगी सरकार पर सवाल उठा दिए थे. वहीं अब संजय निषाद का एक बार फिर दर्द छलका है. उन्होंने कहा कि मैं इस समय की व्यवस्था का मजबूर नेता हूं. 


कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में एनडीए की हार, एससी एसटी आरक्षण और बुलडोजर नीति समेत तमाम मुद्दों पर बात की है. संजय निषाद ने बुलडोजर पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर किसी के घर को तोड़ेंगे तो वोट कैसे मिलेंगे. इसे लेकर जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत तब हुई थी जब निषाद समाज की एक महिला जौनपुर में भूमि विवाद को लेकर पुलिस के पास गई थी लेकिन आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और महिला का ही घर तोड़ दिया. 


संजय निषाद का छलका दर्द
संजय निषाद ने कहा कि ऐसा निर्णय लेने से पहले उसका पुनर्वास किया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस मुद्दे पर मेरी पार्टी के कई जमीनी कार्यकर्ता मेरे कुछ नहीं कर पाने की वजह से नाराज हो गए थे. वो महिला रोते हुए मेरे पास ई थी. मैंने उसकी निजी फंड से मदद करने की कोशिश की. ज़मीनी स्तर के लोगों को लगता है कि मंत्री का मतलब सरकार है. पहले ऐसा होता था लेकिन, आज हालत ये है कि मंत्री कोई काम नहीं करा पाते हैं.


उन्होंने कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि जब वो हमारे घर आते थे तो हमारे लोग काम करवा लेते थे. भले ही आवेदन फटे कांगड़ पर दिया हो ये परंपरा थी. लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाता. मेरा समाज उनके लिए काम नहीं करा पाने की वजह से मुझसे नाराज होता है. मैं उन मुद्दों के लिए खड़ा रहूंगा जिन पर हम विश्वास करते हैं लेकिन, मैं इस समय की व्यवस्था का मजबूर नेता हूं. 


संजय निषाद ने कहा कि एनडीए यूपी में अति आत्मविश्वास की वजह से हारी. नेताओं को लगता था कि यूपी सर्वोत्तम राज्य में बदल गया है इसे देखकर लोग हमें वोट दे देंगे. वहीं आरक्षण को लेकर उन्होंने कहा कि यूपी में 15 करोड़ आबादी मुफ्त राशन पर निर्भर हैं. जबकि धोबी, पासी, यादव, कुर्मी और मौर्य जैसी जातियों ने आरक्षण का अधिकतम लाभ उठाया है. पाल, कुम्हार, केवट, कश्यप, बरहाई आदि जैसे अन्य समूह कोई कोटा लाभ पाने में विफल रहे हैं. 


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