UP Politics: सियासत में कब दोस्ती सियासी दुश्मनी में बदल जाए और कब पुराने साथी फिर से साथ आ जाएं कोई नहीं जानता है. मीरापुर में भी ऐसा ही हुआ है. मीरापुर में रालोद और सपा के बीच आमने-सामने की जंग हुई. इस जंग में जयंत चौधरी अपने पुराने साथी अखिलेश यादव पर भारी पड़े. जयंत की इस जीत और अखिलेश की मीरापुर में हार का पश्चिमी यूपी में बड़ा संदेश गया है. साथ ही इस जीत के बाद जयंत के नौ रत्न भी पूरे हो गए.


सियासी अखाड़े में जयंत के दाव के आगे चित हुए अखिलेश
किसी भी चुनाव में प्रत्याशी का चयन बेहद महत्वपूर्ण होता है. मीरापुर में यूं तो दो दर्जन से ज्यादा दावेदार थे, लेकिन जयंत चौधरी की नजर अपनी पूर्व विधायक मिथलेश पाल पर आकर टिक गई थी. वो बीजेपी से थीं और जयंत ने उन्हें नल थमाकर मीरापुर के मैदान में उतार दिया. जयंत का ये वो दांव था, जिसकी अखिलेश यादव पर कोई काट नहीं थी. रालोद में अंदर ही अंदर विरोध हुआ कि रालोद नेताओं को दरकिनार कर बीजेपी से क्यों कैंडिडेंट लिया गया, लेकिन कुछ दिन में ये विरोध अंदर ही अंदर खत्म हो गया. जयंत चौधरी की ये एकलव्य की तरह ये पैनी नजर थी, कि मिथलेश ही सपा की सुम्बुल राणा को हराकर विधानसभा पहुंचेंगी और जीत का अंतर कम नहीं ज्यादा होगा. एक तो मिथलेश रालोद से 2009 उपचुनाव में विधायक रही थी, दूसरा पिछड़े वर्ग से आती हैं और तीसरा सरल और पूरे मीरापुर से वाकिफ हैं. जयंत का दांव काम आया और अखिलेश यादव मीरापुर के अखाड़े में चित हो गए.


मिथलेश के जीतते ही जयंत चौधरी ने पहनी नौ रत्नों की माला
जयंत चौधरी के पास नौ रत्न थे यानि उनके नौ विधायक. मीरापुर से विधायक चंदन चौहान के बिजनौर से सांसद बनने के बाद ये नौ रत्न आठ रह गए. जयंत चौधरी के नौ रत्नों की माला अधूरी रह गई. ये नौ रत्न अखिलेश यादव के साथ मिलकर बने थे, लेकिन अब जयंत अखिलेश नहीं बीजेपी. के साथ आ गए और ऐसे में नौ रत्न को पूरा करना जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा से जुड़ा था. जयंत के पास अब विधायक अनिल कुमार, अजय कुमार, राजपाल बालियान, अशरफ अली, प्रसन्न चौधरी, गुलाम मौहम्मद, गुड्डू भैया, मदन भैया रह गए थे. नौ रत्नों की इस माला में एक और रत्न की कमी जयंत चौधरी को खल रही थी. आखिरकार मीरापुर में मिथलेश पाल चुनाव जीत गई और जयंत चौधरी के नौ रत्न पूरे हो गए.


अखिलेश पर पहली बार इतने तल्ख दिखे थे जयंत चौधरी
बात चुनाव की तारीखों के बदलने की थी. तारीख बदलते ही सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने तल्ख तेवर अपना लिए. बस फिर क्या था केन्द्रीय राज्यमंत्री जयंत चौधरी ने भी अखिलेश यादव पर सियासी तीर छोड़ने शुरू कर दिए. गंगा स्नान मेले को लेकर अखिलेश यादव पर जयंत चौधरी ने तंज कसा था कि अखिलेश यादव ने ग्रामीण परंपरा का अपमान किया है, क्या अखिलेश यादव को गंगा स्नान मेले के बारे में नहीं पता है. गंगा स्नान के दौरान वोटिंग हो अखिलेश एसा क्यों चाहते हैं, क्योंकि वो नहीं चाहते ही ग्रामीण इलाकों का ज्यादा वोट पड़ें और ज्यादा वोट पड़ेंगी तो उन्हें नुकसान होगा. जयंत चौधरी ने ये भी कहा था कि अखिलेश यादव पश्चिमी यूपी में आने वाले हैं उनसे सवाल जरूर पूछना. जयंत के इन तेवरों ने वोटो को एकजुट करने का काम किया.


रालोद बीजेपी गठबंधन पर लगी मजबूत मोहर, अब 27 में भी अखिलेश को घेरेंगे जयंत
समाजवादी पार्टी से अलग होकर बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने पर जनता ने दूसरी बार मजबूत मुहर लगा दी. लोकसभा चुनाव में बागपत से डा. राजकुमार सांगवान चुनाव जीते और बिजनौर से चंदन चौहान सांसद बने. एक अग्नि परीक्षा तो जयंत पास कर चुके थे, लेकिन दूसरी अग्नि परीक्षा पर भी सबकी नजरें टिकीं थी. यहां जयंत चौधरी और अखिलेश यादव से सीधा मुकाबला था. जयंत चौधरी अखिलेश यादव से बदला लेकर और उन्हें हराकर पश्चिमी यूपी में एक बड़ा संदेश देना चाहते थे और आखिरकार जयंत की रणनीति ने ये करके दिखा दिया. अखिलेश यादव हार गए और जयंत जीत गए. यानि लोकसभा चुनाव के बाद मीरापुर विधानसभा उपचुनाव में जनता ने जीत की मुहर लगाकर ये साफ कर दिया कि जयंत जहां भी हैं जनता उनके साथ है.


कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार बोले- 2027 के लिए बड़ा संदेश, जहां जयंत वहां जीत
रालोद कोटे से यूपी में कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार मीरापुर उपचुनाव में मिथलेश पाल की जीत को लेकर बेहद उत्साहित हैं. कहने लगे 2027 के लिए ये जीत बड़ा संदेश है. अब सपा ही मुस्लिमों की ठेकेदार नहीं है और मुस्लिम सपा के ही हैं ये भी सोचना गलत है. मुस्लिमों ने हमें भी भरपूर वोट दिया है. 2022 का चुनाव भले ही अखिलेश यादव के साथ लड़ा, लेकिन जहां जयंत हैं वहीं जीत है. मंत्री अनिल कुमार ने कहा कि 2024 में भ्रमित करके कुछ सीट अखिलेश यादव ने जीत ली थी, लेकिन जनता समझदार है और अखिलेश यादव के पीडीए की हवा निकल गई. हमारे नेता जयंत चौधरी की चौधराहट कायम है और मीरापुर के नतीजों ने ये तस्वीर साफ भी कर दी है.