UP Politics News: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर एक बार सुर्खियों में हैं. इसकी वजह भी है. जिस बीजेपी खासकर सीएम योगी को यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले तक सुबह से शाम तक भला बुरा कहते थे, उसी के साथ एक बार फिर वो हाथ मिलाने को तैयार दिखाई देते हैं. इस बात के संकेत एक दिन पहले मिले हैं. उनके इस रुख को लेकर जब पत्रकारों ने सवाल पूछा कि क्या वो फिर से भाजपा से हाथ मिलाने जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि राजनीति में कोई कसम किसी ने खाई है क्या? उनके इस रुख से साफ है कि वो यूं ही भाजपा से धीरे-धीरे अपनी नजदीकियां नहीं बढ़ा रहे हैं.


राजभर को क्यों बनाया गया बाजपेई फाउंडेशन का सह अध्यक्ष
दरअसल, इस बात की चर्चा इसलिए जरूरी है कि सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर 19 दिसंबर को उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के आवास पर पहुंचे थे. मुलाकात के बाद ब्रजेश पाठक ने ओम प्रकाश राजभर को अटल बिहारी बाजपेई फाउंडेशन का सह अध्यक्ष नियुक्त किया. बस, यही वो कड़ी है जो सियासी तौर पर बहुत कुछ कहने लगी है.


इससे पहले राजभर ने बीजेपी से गठबंधन को लेकर जवाब देते हुए कहा था- राजनीति में कोई कसम किसी ने खाई है क्या, क्या बीजेपी और पीडीपी में गठबंधन होने की संभावना कभी थी? राजनीति में नेता दुमुहिया सांप होते हैं. कब क्या बोल देंगे कुछ पता नहीं. यह बयान उन्होंने उपचुनाव से पहले बीजेपी के साथ गठबंधन के सवाल पर दिया था.


एसबीएसपी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर की ओर से समय-समय पर दिए गए इन बयानों की वजह से यूपी की राजनीति में नई चर्चा को बल मिला है. अब इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 में ईस्टी यूपी में अपनी पकड़ को पहले की तरह बनाए रखने के लिए राजभर को अपने पाले में लाना चाहती है. अब यहां पर सवाल यह है कि आखिर भाजपा ऐसा क्यों करेगी?


सियासी लिहाज से ये है राजभर का मजबूत पक्ष
इसका जवाब यह है कि वाराणसी, देवीपाटन, गोरखपुर व आजमगढ़ मंडल की विधानसभा सीटों पर राजभर समाज का खासा प्रभाव है. यूपी की राजनीति में दबदबा रखने वाली पिछड़ी जातियों में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसदी है. 403 विधानसभा सीटों में सौ से अधिक सीटों पर राजभर समाज का ठीक-ठाक वोट है. पूर्वांचल के दो दर्जन से अधिक जिलों की 100 से अधिक सीटों पर राजभर मतदाता हार-जीत तय करते हैं. सुभासपा की बंसी, आरख, अर्कवंशी, खरवार, कश्यप, पाल, प्रजापति, बिंद, बंजारा, बारी, बियार, विश्वकर्मा, नाई और पासवान जैसी उपजातियों पर भी मजबूत पकड़ मानी जाती है.


BJP इसलिए चाहती है सुभासपा का साथ
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी की 80 में से 64 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. दो सीटों पर सहयोगी पार्टी यानि अपना दल को जोड़ दें तो भाजपा गठबंधन के पास 66 सीटें हैं. बीजेपी इस रणनीति पर काम कर रही है कि कम से कम 2024 में भी इस संख्या को अपने पास बरकरार रखें. बीजेपी कोशिश करेगी लोकसभा चुनाव में वो 2014 वाला प्रदर्शन करे. इसके लिए सुभासपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को अपने खेमे में लाना बीजेपी के लिए जरूरी है. 


2017 में बीजेपी-सुभासपा गठबंधन में लड़ चुके हैं चुनाव
फिर, ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से गठबंधन करेगी. यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी से गठबंधन करके ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को चार सीटों पर जीत मिली थी. इसके पहले राजभर की पार्टी का कोई खास अस्तित्व नहीं था. योगी आदित्यनाथ की सरकार के पहले कार्यकाल में ओपी राजभर को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था. उनके बेटे को भी राज्यमंत्री का दर्जा मिला था. यहीं से ओपी राजभर को बड़ी पहचान मिली. इसके बाद ओपी राजभर को लगा कि वह खुद के दम पर काफी कुछ कर सकते हैं. यही कारण है कि 2022 विधानसभा चुनाव तक उन्होंने बीजेपी को डैमेज करने की खूब कोशिश की. समाजवादी पार्टी के साथ विधानसभा का चुनाव लड़े. बीजेपी के खिलाफ यूपी में मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश की, लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली. उसके बाद से ही वो बीजेपी में लौटने की कोशिश में जुटे हैं. अब जाकर ये संकेत मिलने लगे हैं कि राजभर बीजेपी के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव 2024 लड़ सकते हैं. हालांकि, ऐसा दावे के साथ अभी नहीं कहा जा सकता. 


बता दें कि यूपी में लोकसभा सदस्यों की संख्या 80 है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 63 सामान्य वर्ग की और 17 आरक्षित वर्गों के लिए हैं. ऐसे में भाजपा एक बार 2014 या 2019 वाला परिणाम यूपी में दोहराना चाहेगी.


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