Satyapal Malik Profile: जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के ठिकानों पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने छापा मारा है. सीबीआई जम्मू-कश्मीर के किरू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में कथित भ्रष्टाचार के मामले में चार शहरों में छह जगहों पर तलाशी अभियान चला रही है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अपने कार्यकाल के दौरान आरोप लगाया था कि उन्हें किश्तवाड़ में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से संबंधित दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी.यूपी,बिहार,राजस्थान,मुंबई, हरियाणा में छापेमारी जारी है. आइए हम उनके सियासी सफर पर एक नजर डालते हैं. 


सत्यपाल मलिक का सियासी सफर साल 1974 से शुरू हुआ था. उस वक्त मलिक पहली बार यूपी की बागपत विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे. पूर्व राज्यपाल ने राजनीतिक सफर की शुरूआत लोक दल से की थी.


इसके बाद सन्, 1980 में मलिक पहली बार लोक दल के टिकट उच्च सदन यानी राज्यसभा पहुंचे थे. इसके बाद साल 1984 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. इसके बाद उन्हें कांग्रेस ने भी राज्यसभा भेजा था. हालांकि साल 1987 में कथित बोफोर्स घोटाले के बाद सत्यपाल मलिक ने कांग्रेस से  इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद साल 1988 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में वो शामिल हुए और 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद चुने गए.


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साल 1996 में लड़ा था आखिरी चुनाव
साल 1996 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर फिर से अलीगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.  इसके बाद सत्यपाल मलिक कभी चुनाव नहीं जीत सके. सपा के बाद उन्होंने 2004 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए लेकिन उन्हें साल 2004 में फिर बागपत से हार का सामना करना पड़ा था. इन सबके बीच बीजेपी में उनकी राजनीतिक हैसियत बढ़ती रही. साल 2012 में उन्हें बीजेपी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.


साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद मलिक को सन् 2017 में बिहार का राज्यपाल बनाया गया. बिहार के बाद उन्हें जम्मू कश्मीर की जिम्मेदारी मिली. साल 2018 में उन्हें यहां का राज्यपाल बनाया गया. उन्हीं के कार्यकाल में साल 2019 में अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरसित किए गए. इसके बाद उन्हें साल 2019 में गोवा का राज्यपाल बनाया गया. फिर साल 2020 में मलिक को  मेघालय का राज्यपाल बनाया गया.  इसके बाद उन्होंने बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी थी.  


इतना ही नहीं साल 2019 में पुलवामा हमले को लेकर भी मलिक ने कई गंभीर दावे किए और केंद्र समेत गृह मंत्रालय पर आरोप लगाए. इसके बाद वह किसान आंदोलन में सरकार की नीतियों के खिलाफ मुखर रहे.