UP Politics: राजनीति सिर्फ भावनाओं के आधार पर नहीं चलती. ना ही समीकरण की बिसात पर आगे बढ़ती है. कई बार इसे छायावादी शब्दों से भी धार दी जाती है. अखिलेश यादव ने अपने भाषण में इसी दांव का इस्तेमाल किया. पीएम मोदी और राहुल गांधी के बाद .अखिलेश के भाषण का नंबर आया.वे नए अध्यक्ष को बधाई देते हुए बोल रहे थे.लेकिन हर शब्द का इशारा कहीं और का था. सिर पर लाल टोपी. गले में गुलाबी गमछा बगल में अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद और पीछे की कतार में बैठी हुईं मैनपुरी की सांसद डिंपल यादव.


चूंकि समाजवादी पार्टी इस लोकसभा चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है तो स्पीकर ने पीएम मोदी और राहुल गांधी के बाद सीधे अखिलेश यादव को बोलने का निमंत्रण दिया.अखिलेश यादव खड़े हुए. स्पीकर को बधाई-शुभकामना दी और सीधे मुद्दे पर आ गए.अपील की- संसद में दोनों पक्षों के साथ समान व्यवहार होना चाहिये.


अखिलेश यादव ने कहा कि जिस पद पर आप बैठे हैं. इससे बहुत गौरवशाली परंपराएं जुड़ी हुई हैं और हम सब यही मानते हैं कि बिना भेदभाव के आगे बढ़ेगा. और लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में आप हर सांसद और हर दल को बराबरी का मौका और सम्मान देंगे. निष्पक्षता इस महान पद की महान जिम्मेदारी हैं. आप लोकतांत्रिक न्याय के मुख्य न्यायाधीश की तरह बैठे हैं हम सबकी आपसे अपेक्षा है कि किसी भी जनप्रतिनिधि की आवाज दबाई ना जाए. और ना ही निष्कासन जैसी कार्रवाई दोबारा सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाएं. आपका अंकुश विपक्ष पर तो रहता ही है.लेकिन अपना अंकुश सत्ता पक्ष पर भी रहे.


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डिंपल यादव भी मुस्कुरा रहीं थीं ...
अखिलेश यादव बोल रहे थे और स्पीकर ओम बिरला के चेहरे पर मुस्कान थी सिर्फ ओम बिरला ही नहीं अखिलेश यादव की बातों पर डिंपल यादव भी मुस्कुरा रही थीं. अखिलेश यादव ने अपने भाषण में पूरा जोर इसी बात पर दिया कि सदन में भेदभाव जैसी चीज ना रहे.


अखिलेश ने कहा कि अध्यक्ष महोदय, आपके इशारे पर सदन चले. इसका उल्टा ना हो. हम आपके हर न्यायसंगत फैसले के साथ खड़े हैं. मैं एक बार फिर आपको इस अध्यक्ष पद पर बैठने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं. अखिलेश यादव जब तक बोले, डिंपल की नजरें उनपर ही रहीं.डिंपल कभी गंभीर मुद्रा में दिखीं.तो कभी हंसते-मुस्कुराते.


37 सांसदों वाली पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का संबोधन भले 4 मिनट से भी कम समय का रहा लेकिन उनकी हर बात घूम-फिरकर स्पीकर की कुर्सी पर पहुंच रही थी. अखिलेश यादव ने कहा कि मैं सदन में पहली बार आया हूं. नए सदन में.मुझे लगा कि हमारे स्पीकर की कुर्सी बहुत ऊंची है क्योंकि मैं जिस सदन को छोड़कर आया हूं.अध्यक्ष जी उसकी कुर्सी बहुत ऊंची है. मैं अध्यक्ष जी किसको कहूं कि ये कुर्सी और ऊंची हो जाए.


अखिलेश यादव के ठीक सामने पहली कतार में पीएम मोदी बैठे थे. राजनाथ सिंह, अमित शाह और नितिन गडकरी बैठे थे. हर कोई गंभीरता से उनकी बात सुन रहा था. संविधान की बात करने वाले अखिलेश बातों-बातों में सदन के सीमेंट तक पहुंच गए.


अखिलेश यादव ने कहा- जहां ये नया सदन है वहीं मैं आपके पीठ के पीछे देख रहा हूं. पत्थर तो सही लगे हैं, सबकुछ अच्छा लगा है. लेकिन उस दरार में मुझे कुछ सीमेंट अभी भी लगा दिखाई दे रहा है. अध्यक्ष महोदय मुझे उम्मीद है.कि आप जितना सत्ता पक्ष का सम्मान करेंगे.उतना ही विपक्ष का सम्मान करके हमें भी अपनी बात रखने का मौका देंगे. मैं आपको बधाई देता हूं. शुभकामनाएं देता हूं.हर तरीके से आपके साथ हूं.


अखिलेश यादव का इशारा बिल्कुल सीधा!
बात सीमेंट की रही हो, बात कुर्सी की रही हो. बात आसन के ऊंचाई की रही हो. बात अंकुश की रही हो या फिर बात भेदभाव-बराबरी-निष्पक्षता की रही हो. अखिलेश यादव का इशारा बिल्कुल सीधा था. समझने वाले समझने गए. और जैसे ही अखिलेश का भाषण खत्म हुआ अखिलेश यादव ने उनसे हाथ मिलाया और डिंपल यादव मेज थपथपाती हुई नजर आईं.


अब यहां ये समझना जरूरी है कि अखिलेश के भाषण के शब्दों का कोड क्या है.क्या इसे डिकोड किया जा सकता है.या फिर इसके एक नहीं कई मतलब निकलते हैं.. अखिलेश के तंज का इशारा किधर था ? अखिलेश ने कुर्सी की ज्यादा ऊंचाई - होने की बात कही तो पूछा जा रहा है कि क्या इसका .मतलब 'अहंकार' से है ? उन्होंने कहा कि सदन आपके इशारे से चले ना कि उल्टा हो.तो क्या इसका मतलब सरकार की तरफ था.


अखिलेश ने कहा कि आपके पीठ के पीछे दरार दिखाई दे रही और उसमें सीमेंट अभी भी लगा है. अब पूछा जा रहा कि क्या इसका मतलब ये था कि नए सदन में पिछले सदन की छाया दिख रही. और आखिर में 'अंकुश' शब्द की चर्चा- जिसका मतलब ये निकाला जा रहा कि अखिलेश ने इशारों में अपील की कि विपक्ष को न दबाया जाए अब अनुमान के इस गणित और छायावादी शब्दों में कितनी समानता है. इसे सिर्फ अखिलेश बता सकते हैं.