UP News: उत्तर प्रदेश में बिजली संकट जारी है. ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी अघोषित बिजली कटौती हो रही है. प्रदेश में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की 3615 मेगावाट क्षमता की इकाइयों के बंद होने से संकट और गहरा गया है. बिजली का उत्पादन कम होने के पीछे एक बड़ी वजह कोयले की कमी बताई जा रही है. वहीं राज्य विद्युत परिषद का कहना है कि कोयले की कमी ऐसे ही नहीं हुई बल्कि किसी बड़ी साजिश का हिस्सा लगती है.


यूपी राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने बताया कि प्रदेश के बिजली घरों के लिए रोजाना 87900 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है. जबकि आपूर्ति 61 हजार मैट्रिक टन की ही हो पा रही है. मतलब साफ है कि जितने कोयले की जरूरत है उससे लगभग 30 फीसद कम कोयला उपलब्ध है.


उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि कुछ समय पहले लोकसभा में कोयला मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि कोयले की कोई कमी नहीं.


हालांकि इसके कुछ समय बाद ही केंद्र ने राज्यों को सलाह दी कि वह अपनी जरूरत का 10 फीसद कोयला विदेश से खरीदें. अवधेश वर्मा ने बताया कि इसके बाद यूपी में भी इसे लेकर प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन उपभोक्ता परिषद ने जब आकलन किया तो सामने आया कि अगर विदेशी कोयला खरीदा जाता है तो करीब 3000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आएगा. 


ऐसे में बिजली उपभोक्ताओं को 70 पैसे से एक रुपए तक प्रति यूनिट अधिक खर्च करना होगा. कोयला मंत्री के लोकसभा में दिए बयान को देखें तो कोयले की कमी नहीं. अगर कमी नहीं है तो फिर विदेशी कोयला खरीदने की बात क्यों कही गई. इसे देखते हुए उपभोक्ता परिषद ने राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दाखिल कर विदेशी कोयला न खरीदने की मांग उठाई.


 यह मामला शासन के भी संज्ञान में आ चुका है जिसके चलते फिलहाल विदेशी कोयले को लेकर टेंडर प्रक्रिया नहीं हुई. अवधेश वर्मा का कहना है कहीं बिजली संकट पैदा कर इसकी जरूरत महसूस कराने की कोशिश तो नहीं की विदेशी कोयला खरीदना पड़ेगा? कही ये विदेशी कोयले का काम करने वाली फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए सुनियोजित साजिश तो नहीं?


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