UP Rajya Sabha Election 2024 : उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव की 10 सीटों के लिए 27 फरवरी को मतदान होगा. इससे पहले प्रतापगढ़ स्थित कुंडा के विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के नेता रघुराज प्रताप सिंह के नाम की चर्चा जोरों पर है. राजा भैया की सियासी ताकत को लेकर यूपी की राजनीति फिर गर्मा गई है. राजा भैया की पार्टी के पास सिर्फ दो विधायक हैं.जिसमें एक वो खुद हैं. लेकिन यूपी के राजनीतिक हालात इस समय ऐसे हैं कि ये दो विधायक बहुत ज्यादा अहम हैं.
इन सबके बीच आइए हम आपको बताते हैं राजा भैया और अखिलेश यादव के बीच 6 साल पुरानी सियासी अदावत की कहानी
राजनीति के जानकार साल- 2018 का यूपी राज्यसभा चुनाव नहीं भूलते. साल 2017 मेंअखिलेश यादव विधानसभा का चुनाव बीजेपी से बुरी तरह हारकर सत्ता गंवा चुके थे. साल 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे थे. उस वक्त समाजवादी पार्टी को एक मजबूत गठबंधन की तलाश थी और गठबंधन होने वाला था- BSP सुप्रीमो मायावती से लेकिन इस गठबंधन से यूपी का एक नेता बहुत ज्यादा नाराज था और वो चेहरा था- राजा भैया का. वो बसपा चीफ मायावती ही थीं जिनकी सरकार में राजा भैया को जेल जाना पड़ा. ऐसे में राजा भैया भला अखिलेश यादव का रिश्ता कैसे स्वीकार कर सकते थे.
जया बच्चन थी सपा से, भीमराव आंबेडकर बसपा से
बता दें साल 2018 के राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जया बच्चन को प्रत्याशी बनाया और दूसरी सीट पर BSP प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर के समर्थन का ऐलान किया. लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश मायावती के साथ अपना सियासी रिश्ते को मजबूत करना चाहते थे.इसके लिए अखिलेश ने लखनऊ में पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई,जिसमें राजा भैया भी पहुंचे थे. हालांकि जब वोट देने की बारी आई तो राजा भैया ने BSP की जगह BJP प्रत्याशी को वोट कर दिया
राजा भैया ने जैसे ही बीजेपी को वोट दिया. अखिलेश यादव से उनकी सियासी दुश्मनी शुरू हो गई. जिस अखिलेश यादव ने राजा भैया को अपनी सरकार में मंत्री बनाया था, उनके खिलाफ ही खुलकर खड़े हो गए.
कुंडा से उतारा प्रत्याशी
इतना ही नहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कुंडा विधानसभा सीट से प्रत्याशी उतार दिया. 2002 के बाद ऐसा हुआ था जब राजा भैया के खिलाफ सपा चुनाव लड़ रही थी. नहीं तो हमेशा निर्दलीय लड़ने वाले राजा भैया को समाजवादी पार्टी से समर्थन मिलता था. अखिलेश ने ना सिर्फ कुंडा में प्रत्याशी उतारा.बल्कि राजा भैया के खिलाफ प्रचार भी किया. हालांकि अब हालात बदले हैं.अखिलेश और राजा भैया के रिश्तों पर जमी बर्फ पिछल रही है.
राजा भैया के नजदीकी और कैबिनेट में उनके साथी रहे अरविंद सिंह गोप ने ये मध्यस्थता की है. जब अखिलेश मान गए तभी नरेश उत्तम पटेल को राजा भैया के पास भेजा गया. राज्यसभा चुनाव में समर्थन के बदले लोकसभा चुनाव में गठबंधन की पेशकश हुई.कुछ सीटों पर चर्चा की गई. ऐसा भी नहीं है कि राजा भैया के पास सिर्फ दो विधायकों की शक्ति है. बीएसपी विधायक उमाशंकर सिंह भी उधर चले जाएंगे जिधर राजा भैया कहेंगे.
क्या खत्म होगी सियासी अदावत?
यानी जो सियासी अदावत 6 साल पहले हुए राज्यसभा चुनाव के वक्त पैदा हुई थी.वो इस बार के राज्यसभा चुनाव में दोस्ती की शक्ल ले सकती है. 2018 का ही वो राज्यसभा चुनाव था.जब अखिलेश यादव और राजा भैया के रिश्ते बिगड़े थे. दोनों के बीच ऐसी दूरी बढ़ी.कि अखिलेश यादव ने राजा भैया के विधानसभा क्षेत्र में जाकर उनके खिलाफ प्रचार किया था. हालांकि इससे कुछ हासिल नहीं हुआ था. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस राज्यसभा चुनाव में क्या होगा