UP News Today: उत्तर प्रदेश सहित पूरे भारत में बीते कुछ दशकों में उच्चस्तरीय पक्की सड़क, हाईवे, एक्सप्रेसवे का तेजी से विकास हुआ है. जिससे देश के दूसरे शहरों तक पहुंच आसान, सस्ता और कम समय में संभव हो सका है. सड़कों के बढ़ते जाल के बीच सड़क हादसों (Road Accident) की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है. 


जनसंख्या के हिसाब से देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश सड़क हादसों के मामलों में पहले स्थान पर है. हालांकि प्रदेश और केंद्र सरकार अलग-अलग अभियानों के जरिये लगातार इस तरह के हादसों पर अंकुश लगाने के लिए अभियान चलाती रही हैं, लेकिन गुरुवार (12 दिसबंर) को केंद्र सरकार के जरिये जारी आंकड़ों में वास्तविकता इससे उलट है. 


सड़क हादसों में यूपी अव्वल
सड़क हादसों में सबसे ज्यादा जान गंवाने वालों में पैदल चलने या फिर दोपहिया से सफर करने वाले लोग शामिल हैं. गुरुवार को शीतकालीन सत्र के दौरान सड़क हादसों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में साल 2013 से 2022 के बीच सड़क हादसों को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए है.


केंद्र सरकार के जरिये पेश आंकड़ों के मुताबिक, साल 2013 से 2022 के बीच उत्तर प्रदेश में 1 लाख 97 हजार 283 लोगों की जान चली गई. सड़क हादसों में जान गंवाने वालों के मामले में यूपी पहले स्थान पर है. इस मामले में दूसरे स्थान पर काबिज तमिलनाडु में बीते 9 सालों में 1 लाख 65 हजार 847 लोगों ने सड़क हादसों में अपनी जान गंवा दी.


उम्र के हिसाब से मौत का आंकड़ा
केंद्र सरकार ने उम्र के हिसाब से भी सड़क हादसों में जान गंवाने लोगों का आंकड़ा जारी किया है. जारी आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सड़क हादसे में साल 2016 से 2022 तक सबसे अधिक 25 से 60 साल के उम्र के लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है. इस मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. यूपी में जहां 25 से 60 साल के उम्र के 84 हजार 433 लोगों की 2016-22 के बीच सड़क हादसों में मौत हो गई, तो महाराष्ट्र में 65 हजार 96 लोगों की मौत हुई है.


इसी तरह उत्तर प्रदेश में साल 2016-22 के बीच 18 साल से कम उम्र के 19 हजार 28 लोगों की मौत हो गई, जबकि 18 से 25 साल के बीच ये आंकड़ा लगभग दोगुना यानी 36 हजार 894 रहा है. इस दौरान यूपी में 2016-22 यानी 6 सालों में 60 साल से अधिक उम्र के 12 हजार 293 लोग अलग-अलग तरह के सड़क हादसों में जान चली गई.


पूरे देश में कार, टैक्सी, वैन और एलएमवी सड़क पर सबसे घातक साबित हुए. सांसद गुरमीत सिंह मीत हेयर के पूछ गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने भारत में 2019 से 2022 के बीच रोड एक्सीडेंट में अलग-अलग तरह के वाहनों की भूमिका का डीटेल विवरण पेश किया है.


ये गाड़ियां सड़कों पर रही जानलेवा
केंद्र की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, दोपहिया वाहन, जिसमें मोटरसाइकिल और स्कूटर शामिल हैं, सड़क पर होने वाली मौतों के प्रमुख वजहों में से एक हैं. 2019 से 2022 तक कुल 1 लाख 45 हजार 316 लोगों की जान दोपहिया वाहनों से जुड़े हादसों में हुई, जिसमें 93 हजार 204 मौतें दोपहिया सवारों की थीं.


इसके अलावा कार, टैक्सी और वैन जैसी हल्की गाड़ियों से 1 लाख 30 हजार 557 लोगों की मौतें हुईं, जिनमें से 34805 मौतें कार में सवार व्यक्तियों की थीं.  इसी तरह ट्रक और लॉरी से हुए हादसे में 1 लाख 6957 मौतें हुई हैं, जबकि बसों से 32 हजार 126 मौतें हुईं. सबसे कम मौतें ऑटो रिक्शे के एक्सीडेंट में हुई, जिसमें 2019-22 के बीच महज 18 हजार 381 है.


सड़क सुरक्षा के लिहाज से पैदल चलने वाले मुसाफिरों और साइकिल से सफर करने वालों को लेकर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. इसकी वजह यह है कि 2019-22 के बीच महज तीन साल में पैदल चलने 1 लाख 11 हजार 284 और साइकिल से सफर करने वाले 18 हजार 50 लोगों की मौत हुई है. 


2030 तक सड़क हादसों कमी
हालांकि स्टॉकहोम रोड सेफ्टी डिक्लेरेशन के अनुसार, भारत ने 2030 तक सड़क हादसों में होने वाली मौतों और घायलों की संख्या को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है. इस संकल्प के तहत भारत सरकार सड़क सुरक्षा को लेकर एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दे रही है. जिसमें सड़क और वाहनों के डिजाइन को बेहतर बनाना, कानून और कानून लागू करने की प्रक्रिया को मजबूत करना और हादसे में घायल लोगों के लिए समय पर जीवन रक्षक आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्रदान करना शामिल है.


ये भी पढ़ें: कानपुर में बेटा-बेटी बने मसीहा! वकालत की पढ़ाई कर पिता को 11 साल बाद कराया दोषमुक्त