Azadi Ka Amrit Mahotsav: उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के घुघली क्षेत्र के विशुनपुर गबडुआ गांव के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी. अंग्रजो के खिलाफ आन्दोलन की चिंगारी यहीं से उठी थी. अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ विशुनपुर गबडुआ गांव के क्रांतिकारियों ने आवाज बुंलद की. यह गांव अंग्रेजों की बर्बरता का साक्षी है. यहां का जर्रा-जर्रा गांव के वीर सपूतों की बहादुरी को याद कर आज भी गर्व करता है. शहीदों की याद में विशुनपुर गबडुवा गांव में शहीद स्मारक बनाया गया है. 26 अगस्त 1942 को अंग्रेजो ने गांव की नाकाबंदी कर दी. गांव के सुखराज, झिनकू ने घर से निकलकर अंग्रेजों को ललकारा. झल्लाए सिपाहियों ने दोनों क्रांतिकारियों को गोलियों से भून दिया. गांव में छिपे जनक राज, नगई, तिलकधारी, रामधारी, शिवदत्त ,सरजू, हरिवंश, राम जतन, त्रिलोकी, रामदेव को गिरफ्तार कर लिया गया था.
अक्तूबर 1929 को बापू ने महराजगंज में एक जन सभा की
साल 1942 के आंदोलन में गांव के दो नौजवानों का सीना ब्रिटिश सैनिकों की गोलियों से छलनी हो गया था. 12 से अधिक लोग घायल हुए थे, इसके बाद आजादी के दीवानों ने हार नहीं मानी. बात 4 अक्तूबर 1929 की है, जब न तो टेलीविजन की सुविधा थी, न हर घर में रेडियो मौजूद था, लेकिन टेलीग्राम से मिली सूचना के बाद बापू के अनुवाई सक्रिय हो गए. छत्रधारी लाल, हौसला त्रिपाठी, कपिलदेव पांडेय, नरसिंह पांडेय, अब्दुल रउफ लारी आदि ने गांव-गांव में जाकर लोगों को बापू के आगमन के बारे में बताया. 5 अक्तूबर 1929 को बापू ने महराजगंज में एक जन सभा की थी.
अग्रेजों ने गांव वालों पर बरपाया कहर
पूर्वांचल में बापू ने तीन सभाओं को संबोधित किया था. 7 अप्रैल 1930 को गोरखपुर के लालडिग्गी पार्क में बापू व प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना से पहली बार मुलाकात हुई. इनकी बातों से प्रभावित होकर सेंटएंड्रूज कॉलेज से इस्तीफा देकर पूर्ण रूप से स्वधीनता आंदोलन में कूद गए. 26 अगस्त 1942 को पुलिस को खबर मिली कि सक्सेना महाराजगंज से 15 किलोमीटर दूर विशुनपुर गबडुवा गांव में हैं. बस क्या था पुलिस ने अंग्रेज समर्थक जमीदारों के सहयोग से विशनपुर गबडुवा गांव पर धावा बोल दिया. हालांकि, सिपाहियों के आने के पूर्व प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना वहां से सुरक्षित निकल गए थे. सक्सेना को नहीं मिलने पर बौखलाए अंग्रेजों ने गांव पर हमला बोल दिया. अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर ऐसा कहर ढाया कि ब्रिटिश पुलिस का मुकाबला करने में गांव के दो सपूतों को जान गंवानी पड़ी.