UP Politics: विधानसभा में नेता विपक्ष के तौर पर होगा अखिलेश यादव का इम्तिहान, कैसे देंगे योगी के हमलों का जवाब?
Akhilesh Yadav As Leader Of Opposition: यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने अखिलेश यादव का अब यूपी विधानसभा में कड़ा इम्तिहान होगा. नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अब उन्हें अपनी सियासी योग्यता दिखानी होगी.
Challenges in Front Of Akhilesh Yadav: यूपी विधानसभा चुनाव के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का अब सदन में कड़ा इम्तिहान होगा. उन्हें विधानसभा (UP Assembly) के भीतर नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के रूप में अपनी सियासी योग्यता की परीक्षा देनी होगी. सत्र में उनका सामना नेता सदन यानी मुख्यमंत्री योगी (CM Yogi Adityanath) से होगा. अखिलेश को साबित करना होगा कि उन्होंने यूपी में सियासत करने का जो निर्णय लिया है, वो सही है, और वह नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में प्रदेश सरकार की बातों का माकूल जवाब देने और सरकार को घेरने में सक्षम हैं. अब तक मुलायम सिंह यादव की विरासत को संभाल रहे अखिलेश यादव को अगले पांच वर्षों तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में खुद को साबित करना होगा.
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर इम्तिहान
सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को मुख्यमंत्री बनाया था. उन्होंने सरकार चलाई है. लेकिन विपक्ष के नेता के तौर पर उनका अनुभव नया है. मुलायम सबको साथ लेकर चलते थे. लेकिन ये सलाह लेने में विश्वास नहीं करते, क्योंकि अभी तक इन्होंने जितने फैसले लिए वो खुद ही लिए हैं. मुलायम सिंह, आजम खान (Azam Khan), प्रो. रामगोपाल (Ram Gopal), शिवपाल (Shivpal Singh Yadav), रेवती रमन जैसे पार्टी के वरिष्ठ लोगों के चर्चा किये बिना ही अखिलेश ने पहले कांग्रेस (Congress) और फिर बसपा (BSP) से गठबंधन किया.
इस बात का खामियाजा पार्टी और परिवार को झेलना पड़ा. बसपा से गठबंधन करने के बाद भी अखिलेश अपनी पत्नी को चुनाव नहीं जिता सके. बीते विधानसभा चुनावों में भी छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ा लेकिन वो भाजपा को सत्ता में आने से रोक नहीं सके, क्योंकि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने 'वन मैन आर्मी' की तरह काम किया.
अब तक अकेले फैसले लेते हैं अखिलेश
अखिलेश ने पार्टी और गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं के साथ विधानसभा चुनाव में प्रचार करना पसंद नहीं किया. इस कारण पिछड़ों का नेता बनने का उनका सपना कामयाब नहीं हो पाया. अब भी वह अपनी टीम अखिलेश के नेताओं के साथ पार्टी के संगठन को मजबूत करने पर चर्चा करते हैं, जबकि इनकी टीम में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो जनाधार वाला हो. सपा के भीतर के ऐसे माहौल को देखते हुए ही अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की उनकी भूमिका को लेकर सवाल खड़े किया जा रहे हैं. मुलायम सिंह ने तो काशीराम, कल्याण सिंह को अपने साथ जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया था. उनकी मदद से सरकार चलाई थी लेकिन अखिलेश यादव तो ना आजम खान को मना पा रहे हैं और ना ही पार्टी के अन्य नाराज नेताओं से बात कर रहे हैं.
क्या होगा जब आमने-सामने होंगे योगी-अखिलेश
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि अखिलेश यादव के सामने खुद को मजबूत विपक्षी नेता साबित करने की चुनौती है. क्योंकि पांच सालों तक उनको इसी भूमिका में रहना है. साल 2027 तक जब भी विधानसभा बैठेगी योगी आदित्यनाथ व अखिलेश यादव आमने-सामने होंगे. योगी आदित्यनाथ व अखिलेश अब तक सड़क पर जनसभाओं में और मीडिया के जरिए एक दूसरे पर हमला करते रहे हैं.
अब बात आमने-सामने की है. सदन में एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे जिनके धारदार भाषण के जरिए वह विपक्षी दलों की धज्जियां उड़ाते हैं तो दूसरी ओर अखिलेश यादव के लिए नेता सदन की बातों का माकूल जवाब देने का पूरा मौका होगा. लेकिन अखिलेश के पास उन्हें सलाह देने वाले नेताओं की कमी है क्योंकि ज्यादातर वरिष्ठ नेता अभी उनकी पहुंच से दूर हैं.
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