यूपी में डिजिटल हाजिरी पर क्यों मचा है हंगामा, टीचर्स ने छेड़ दी है बगावत, जानें इससे जुड़ी हर बात
UP News: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूल, उच्चतर प्राथमिक स्कूल और कस्तूरबा स्कूलों के शिक्षकों के लिए डिजिटल हाजिरी लगाने का आदेश दिया है. जिसका शिक्षक विरोध कर रहे हैं.
UP Digital Attendance: उत्तर प्रदेश के प्राइमरी, उच्चतर और कस्तूरबा स्कूलों में शिक्षकों व स्कूल में कार्यरत अन्य कर्मचारियों की डिजिटल हाजिरी शुरू हो गई है. लेकिन प्रदेशभर में शिक्षकों के द्वारा इसका कड़ा विरोध किया जा रहा है. पहले दिन से ही कहीं शिक्षकों ने डिजिटल हाजिरी नहीं लगाई तो कहीं वो काली पट्टी बांधकर इसका विरोध करते दिख रहे हैं. शिक्षक संगठन प्रदेश सरकार के इस फैसले के खिलाफ एकजुट हो गए हैं उनका मानना है कि ये आदेश पूरी तरह से अव्यवहारिक हैं.
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूल, उच्चतर प्राथमिक स्कूल और कस्तूरबा स्कूलों के शिक्षकों के लिए डिजिटल हाजिरी लगाने का आदेश दिया है. यूपी के प्राथमिक स्कूल में 87,811, उच्चतर प्राथमिक स्कूल में 46,527 और कस्तूरबा स्कूलों में 746 शिक्षक हैं. जो इस आदेश के दायरे में आते हैं. इस आदेश के तहत इन शिक्षकों को सुबह 7.45 बजे से 8 बजे तक हाजिरी लगाने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन, शिक्षकों के विरोध के बाद इसमें आधा घंटे यानी 8.30 बजे तक की छूट दे दी गई.
डिजिटल हाजिरी पर मचा हंगामा
सरकार के आदेश के ढिलाई के बावजूद शिक्षक मानने को तैयार नहीं है और उनमें ग़ुस्सा देखने को मिल रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब स्कूलों में काम करने का एक समय तय है तो आखिर शिक्षकों को डिजिटल हाजिरी से आपत्ति क्या है और इस पर इतना हंगामा क्यों हैं? योगी सरकार ने रजिस्टर की जगह सरकारी स्कूलों में डिजिटल हाजिरी वाला सिस्टम लागू क्यों किया?
दरअसल यूपी सरकार का मानना है कि इस व्यवस्था से स्कूलों में शिक्षकों के आने का सही वक्त और स्कूल में कितने टीचर मौजूद हैं इसकी जानकारी मिल सकेगी.
शिक्षा विभाग के पास शिक्षकों और बच्चों की ऑनलाइन जानकारी होगी. हाजिरी के नाम पर शिक्षकों के उत्पीड़न की शिकायतें खत्म हो जाएगी. सही डाटा मिलने पर शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी कमियां दूर करने में मदद मिलेंगी और कामकाज में पारदर्शिता आएगी.
शिक्षक क्यों कर रहे विरोध?
शिक्षक इस व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें नुक़सान होगा. शिक्षा विभाग की तरफ स्कूलों में टैब भेजे गए हैं. जिस पर शिक्षकों को स्कूल पहुंचकर सबसे पहले अपनी मौजूदगी दर्ज करवानी होगी. इसकी जिम्मेदारी स्कूल के ही किसी शिक्षक के पास रहेगी. शिक्षक इसमें एक नहीं कई खामियां बता रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें टैब चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है. गाँव-देहात के स्कूलों में अक्सर नेटवर्क की समस्या भी रहती है. जिससे परेशानी हो सकती है.
शिक्षकों का कहना है कि टैबलेट अगर खराब हो गया तो भी उन्हें अनुपस्थित माना जाता है. बहुत से शिक्षक दूर से स्कूलों में पढ़ाने के लिए आते हैं. ऐसे में रास्ते में ट्रैफिक जाम समेत कई परेशानी हो सकती है. शिक्षकों पर टैब में हाजिरी लगवाने का दबाव रहेगा जो कई खतरों का कारण बन सकता है.
शिक्षकों के आगे झुकेगी सरकार?
एक तरफ सरकार के आदेश के खिलाफ शिक्षक अड़े हुए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि अब सरकार के आगे क्या विकल्प है. इस समस्या का समाधान क्या है.
फ़िलहाल तो सरकार भी आदेश वापस लेने के मूड में दिखाई नहीं दे रही है. दरअसल उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में परमानेंट शिक्षकों के साथ अनुदेशकों और शिक्षामित्रों की भूमिका भी अहम है. यूपी के शहरों से लेकर गांवों तक लाखों स्कूल चल रहे हैं. शिक्षकों पर स्कूलों के साथ और भी कई ज़िम्मेदारियां हैं.
शिक्षकों की प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के चुनाव में इनकी ड्यूटी लगती है. जनगणना या कोई सरकारी सर्वे करना हो, स्कूलों में मिडडे मील की मॉनिटरिंग करनी हो या ग्राम बाल शिक्षा समिति की बैठक हो. स्कूल चलो अभियान में टारगेट पूरा करना हो और स्कूलों में बच्चों का रजिस्ट्रेशन बढ़ाने का काम हो, बच्चों की ड्रेस डिस्ट्रीब्यूशन से वैक्सीनेशन जैसे तमाम कामों की ज़िम्मेदारी शिक्षकों पर ही होती है. इसलिए वो विरोध करके इस सिस्टम को बदलना चाहते हैं.
यूपी में 'मास्टर जी' का हाल
यूपी में अनुदेशक और शिक्षामित्र यूपी की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बन चुके हैं. वो काम पूरा करते हैं लेकिन, उनकी शिकायत है कि उन्हें वेतन अधूरा दिया जाता है. पूरे यूपी में 25223 अनुदेशक हैं जिन्हें 9 हजार रुपये वेतन मिलता है. जबकि
144209 शिक्षामित्र हैं जिन्हें 10 हजार रुपये वेतन मिलता है. 5 साल पहले हाईकोर्ट ने अनुदेशकों का वेतन बढ़ाकर 17 हजार करने का आदेश दिया था लेकिन इसका अनुपालन अब तक नहीं किया गया वहीं दूसरी तरफ स्कूलों में डिजिटल हाजिरी के लिए सरकार ने करीब 2 लाख 09 हजार 863 से ज्यादा टैब खरीदे है. शिक्षक इसे अपने अनदेखी के तौर पर देख रहे हैं.
शिक्षकों का कहना है कि सरकार को शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए पहले उनकी दशा सुधारनी चाहिए. प्रदेश में डेढ़ लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं. जबकि अनुदेशकों की जेब ख़ाली है. प्राइमरी स्कूलों में 39 बच्चों पर 1 टीचर तैनात हैं, जो तय मानकों से कम बताया जा रहा है. बच्चों का ड्रॉपआउट रेट 2 दशमलव 7 फीसद है. अपर प्राइमरी स्कूलों में 18 स्टूडेंट्स पर 1 टीचर हैं, जो कि टीचर स्टूडेंट रेशियो के मानक से बहुत ऊपर है.
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