जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव के लिए सपा ने कसी कमर, एक खास जाति के उम्मीदवारों को तवज्जो
UP Zila Panchayat Election 2021: समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट में एक खास जाति के उम्मीदवार ज्यादा संख्या में नजर आ रहे हैं. पार्टी ने तकरीबन एक तिहाई से ज्यादा जिलों में अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है.
लखनऊ: 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सियासी दलों की निगाहें जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर लगी हुई हैं. ये तय माना जा रहा है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के लिए अधिसूचना इसी महीने जारी हो सकती है. प्रदेश में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष की सीटें हैं और विधानसभा चुनाव से पहले हर पार्टी इस कोशिश में है कि इनमें से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर 2022 से पहले जनता के बीच एक संदेश दिया जाए. एक तरफ जहां बीजेपी के अपने दावे हैं तो वहीं समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के एक तिहाई जिलों में अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं. हालांकि सपा, बीजेपी पर सत्ता का दुरुपयोग कर इन चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगा रही है. तो वहीं बीजेपी का साफ तौर पर कहना है कि समाजवादी पार्टी हमेशा ही एक खास जाति को तवज्जो देती है और बाहुबलियों के सहारे इन चुनावों को जीतने की कोशिश में जुटी है.
उत्तर प्रदेश में 2 मई को जो पंचायत चुनाव के नतीजे आये तो इस चुनाव में निर्दलीयों के बाद अगर किसी ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल की तो वो समाजवादी पार्टी थी. पंचायत चुनाव में मिली इस जीत ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ना सिर्फ पार्टी के कार्यकर्ता बल्कि नेताओं में भी जोश भरने का काम किया. उसके बाद पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जुट गई लेकिन इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर आ गई और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव जो मई में होने थे उसे टाल दिया गया. उसके बाद समाजवादी पार्टी की सियासी गतिविधियां भी थोड़ी कम देखने को मिली. कोरोना के मामलों में कमी आते ही एक बार फिर से समाजवादी पार्टी इस कोशिश में जुट गई कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को कैसे जीता जाए और इसके लिए पार्टी ने अपनी रणनीति तैयार की जिसमें सपा ने बीजेपी में ही सेंध लगाने की रणनीति बनाई.
बीजेपी के बागियों को तोड़ने में समाजवादी पार्टी सफल हुई
चाहे संतकबीरनगर हो या फिर बांदा हो यहां बीजेपी के बागियों को तोड़ने में समाजवादी पार्टी सफल हुई और एक तरह से बीजेपी को ओपन चैलेंज कर दिया. वैसे भी ज्यादातर जिलों में जिला पंचायत वार्ड में बीजेपी के सदस्यों से ज्यादा संख्या समाजवादी पार्टी के जीते हुए सदस्यों की है और इसी के आधार पर समाजवादी पार्टी इस कोशिश में जुटी है कि जितनी सीटें उसने 2015 में जीती थी कम से कम उतनी ना सही तो उसकी 70 फीसदी सीटें तो हासिल ही कर ली जाए. 2015 में सपा को जिला पंचायत अध्यक्ष की लगभग 60 सीटें मिली थी. पंचायत चुनाव में मिली जीत में समाजवादी पार्टी का पुराना अनुभव भी काफी काम आया क्योंकि यह चुनाव बिना सिंबल के होता है. इसमें धनबल का भी इस्तेमाल जमकर होता है.
जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव की तैयारी में सपा एक बार फिर आगे दिख रही है. पार्टी ने तकरीबन एक तिहाई से ज्यादा जिलों में अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है हालांकि इसका जिम्मा जिला इकाई को सौंपा गया है जहां वह पार्टी के जीते सदस्यों के बीच समन्वय बनाकर एक नाम को उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर रहे हैं. बाद में उसकी जानकारी प्रदेश में दी जा रही है लेकिन कुछ जगहों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान सीधे लखनऊ से राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की तरफ से किया जा रहा है.
समाजवादी पार्टी के एमएलसी सुनील साजन साफ तौर पर कहते हैं कि पंचायत चुनाव में जनता ने यह बता दिया है कि 2022 में वह किसका साथ देगी. लेकिन अब जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी सत्ता का दुरुपयोग कर रही है. कई जगह पर समाजवादी पार्टी के सदस्य और निर्दलीय सदस्यों को डराया धमकाया जा रहा है. वह साफ तौर पर आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी शासन प्रशासन का गलत इस्तेमाल करके इन चुनाव को प्रभावित करेगी.
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के नाम
अब जरा आपको समाजवादी पार्टी के कुछ जिला पंचायत अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के नाम बताते हैं जिन्हें पार्टी अब तक घोषित कर चुकी है. इनमें लखनऊ सीट से पार्टी ने विजयलक्ष्मी को उम्मीदवार बनाया है, क्योंकि लखनऊ जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट एससी महिला के लिए रिजर्व है इसलिए विजयलक्ष्मी को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. जो पार्टी के विधायक अमरीश पुष्कर की पत्नी हैं. अमरीश पुष्कर मोहनलालगंज से सपा के विधायक हैं. इसी तरह अमेठी की अगर बात करें तो यहां पर पार्टी ने सीलम सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, सीलम सिंह सपा के विधायक राकेश प्रताप सिंह की पत्नी हैं, वही आजमगढ़ में दुर्गा यादव के बेटे विजय यादव को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. जबकि देवरिया में पूर्व जिला अध्यक्ष राम इकबाल यादव की पुत्रवधू शैलजा यादव को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है.
इसी तरह अमरोहा में पूर्व कैबिनेट मंत्री और लोक लेखा समिति के सभापति महबूब अली की पत्नी सकीना बेगम पार्टी की उम्मीदवार हैं. हमीरपुर में वंदना यादव को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. कुशीनगर में बसपा के पूर्व सांसद और कभी मुलायम सिंह यादव के खास बालेश्वर यादव की बेटी रीता यादव को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि उन्नाव में मालती रावत को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं फिरोजाबाद से रुचि यादव पार्टी की उम्मीदवार है, तो वाराणसी से चंदा यादव को सपा ने अपना जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया है. मैनपुरी से अंशुल यादव पार्टी के उम्मीदवार हैं. जबकि गाजियाबाद में समाजवादी पार्टी और लोकदल ने मिलकर नसीमा बेगम को चुनाव मैदान में उतारा है. कानपुर देहात से राम सिंह यादव, जौनपुर से निशा यादव, श्रावस्ती से अनुराधा यादव, ललितपुर से अतुल देवी यादव, बरेली से विनीता गंगवार समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार घोषित की गई है. जबकि संत कबीर नगर से बीजेपी से टिकट मांगने वाले बागी बलिराम यादव को सपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वही संभल से प्रीति यादव, सिद्धार्थ नगर से पूजा यादव और सीतापुर से अनीता राजवंशी पार्टी की उम्मीदवार बनाई गई हैं.
सपा की लिस्ट में एक खास जाति के उम्मीदवार ज्यादा
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट में एक खास जाति के उम्मीदवार ज्यादा संख्या में नजर आ रहे हैं. इसने बीजेपी को सपा पर हमला बोलने का एक और मौका दे दिया है. सरकार के कैबिनेट मंत्री कह रहे हैं कि दरअसल समाजवादी पार्टी एक खास वर्ग के लिए ही काम करती है, और हमेशा से सपा ने धनबल के सहारे बाहुबलियों के बल पर इन चुनाव को जीता है. इस बार भी उसकी कोशिश इन्ही बाहुबलियों के सहारे जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को जीतना है. जबकि बीजेपी को अपने आम कार्यकर्ताओं पर भरोसा है, और पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटे चुनाव में जीतेगी. वहीं दो दिन पहले मुख्यमंत्री आवास पर हुई प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, महामंत्री संगठन सुनील बंसल और सीएम योगी के बीच जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर 2 घंटे 45 मिनट तक जो बैठक चली उसमें इस पंचायत चुनाव की जीत को लेकर रणनीति तय की गई. पार्टी का लक्ष्य है कि प्रदेश में 50 से 55 सीटों पर अपने अध्यक्ष जिताया जाएं और अब उसी रणनीति के तहत लगातार जिलों में काम किया जा रहा है.
हालांकि ये बात भी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है कि बीजेपी ने इस पंचायत चुनाव को पहली बार इतनी आक्रमक तरीके से संगठन के स्तर पर लड़ा. वरना इससे पहले बीजेपी पंचायत चुनाव में संगठन स्तर तक जाकर नहीं लड़ती थी. जबकि समाजवादी पार्टी को इस चुनाव को लड़ने का पुराना एक्सपीरियंस रहा है और इसने उसकी मदद की. हालांकि इस बात में भी कोई शक नहीं है कि इसे पूरी तरह से सत्ता का चुनाव माना जाता है और सत्ता में रहते हुए जब बीजेपी की सीटें कम आयी तो फिर तमाम सारे सवाल खड़े हो गए. अब जिला पंचायत अध्यक्ष के उम्मीदवारों की घोषणा करके एक बार फिर समाजवादी पार्टी इस तैयारी में है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा जिलों में अपने अध्यक्ष बनाकर जनता के बीच मैसेज देने की कोशिश में जुटी है.
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