National Highway Land Scam: रामपुर (Rampur) में राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) के लिए अधिग्रहण की जा रही है जमीन पर करोड़ों के घोटाले होने की साजिश का मामला सामने आया है. इसका खुलासा जिलाधिकारी ने किया है. बताया जा रहा है कि इस घोटाले में कृषि भूमि को व्यवसायिक भूमि या अकृषक भूमि दिखाकर 6 करोड़ के मुआवजे की जगह 51 करोड़ का मुआवजा बना लिया गया है. इस मामले में जिलाधिकारी ने नेशनल हाईवे अथॉरिटी के साथ जॉइंट जांच कराई. जिसमें ये खुलासा हुआ कि, तत्कालीन अपर जिलाधिकारी वैभव शर्मा ने अपनी रिपोर्ट बदलकर उसका मुआवजा एक करोड़ 27 लाख के आसपास हुआ. जिसका 4 गुना मुआवजा अगर बनता है तो साढ़े 5 करोड़ से 6 करोड़ के आसपास होगा. जबकि पहले रिपोर्ट में ये मुआवजा 51 करोड़ का भेजा गया था. ऐसे में अगर ये मुआवजा पास हो गया होता तो शासन को लगभग 44 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होता. फिलहाल इस मामले में जिलाधिकारी विस्तृत जांच करा रहे हैं.


 जांच में हो सकते हैं अहम खुलासे


वहीं इस मामले में संबंधित भूलेख अनुभाग के एक बाबू टीपी सक्सेना जो पिछले 8 साल से बतौर एलएसी के पद पर कार्य कर रहा था जबकि इस पटल पर उसकी नियुक्ति ही नहीं थी. वो बिना किसी अपॉइंटमेंट के महत्वपूर्ण सरकारी विभाग का पूरा कार्य उसी कर्मचारी के हाथों में था. वहीं जब मामला खुला तो पता चला कि वो क्लेक्ट्रेट का परमानेंट अधिकारी है ही हीं. अह इसकी जांच जिलाधिकारी के द्वारा कराई जा रही है. जिलाधिकारी रविंद्र कुमार के अनुसार जांच में कुछ और खुलासे भी हो सकते हैं.


जिलाधिकारी रविंद्र कुमार मांदड के मुताबिक, अभी जो एनएच-24 है. उसके लिए लगभग 2 किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण किया जाना था. उसको लेकर जो भूमि है जितने कास्तकार हैं, उसमें जो जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही होती है. उसके तहत जमीन के लिए जो मुआवजा डिसाइड करते हैं, वो लैंड की नोइयत होती है, उसके हिसाब से होता हैं. ये कृषि भूमि अथवा अकृषक भूमि है. एक जमीन सेजनी नानकार गांव में है 1.1 हेक्टेयर के आसपास.  उसे 2014 में डिक्लेअर कराया गया था.  उसके बहुत कम मात्र 150 मीटर के आसपस ही एक आरा मशीन लगी है. उसमें जो तत्कालीन अपर जिलाधिकारी थे उनके स्तर से एक स्पॉट निरीक्षण भी हुआ था. एनएच के अधिकारी और कंसलटेंट सतीश सिंघल, जो रिटायर्ड एडिशनल कमिश्नर थे एनएचके जो पीडी हैं, के द्वारा मुझे इसकी शिकायत की गई कि, इस प्रकरण में गलत तरीके से मुआवजा तय किया जा रहा है और इसकी व्यापक जांच की जानी आवश्यक है.


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 शासन को होता 44 करोड़ का घाटा


शिकायत के बाद एनएच की टीम के साथ में एक जॉइंट जांच कराई और जिस में सेटल हुआ कि मात्र 150 वर्ग मीटर पर ही जो नॉन एग्रीकल्चर एक्टिविटी थी और जो लैंड था वो मौके पर खाली थी. जिसकी कृषि भूमि के दर से मुआवजा दिया जाना था और वहीं फाइनली 13 अप्रैल को जो तत्कालीन अपर जिलाधिकारी थे उन्होंने रिपोर्ट अपनी फिर से चेंज करके भेज दी. तो इस प्रकार से उसका मुआवजा वर्तमान में जो हुआ है एक करोड़ 27 लाख के आसपास है. 4 गुना जो मुआवजा अगर बनता है तो वह साढ़े पांच करोड़ से 6 करोड़ के आसपास बनता है और जो पहले रिपोर्ट भेजी गई थी. वो लगभग 51 करोड़ की भेजी गई थी अगर वो एक्सेप्ट हो जाती तो, लगभग 44 करोड़ रुपए की क्षति शासन को होती. वहीं अब समय रहते मामला एन एच के द्वारा हमारे संज्ञान में लाने पर रोक दिया गया और इस पर कार्यवाही के लिए शासन को भी पत्र लिखा गया है.


 सालों से पटल देखता था बाबू


एलएसी टीपी सक्सेना के बारे में जब डिटेल जांच की गई तो पता चला कि, वो कलेक्ट्रेट के परमानेंट स्टाफ नहीं है. उनकी 2008 में स्थाई नियुक्ति पीडब्ल्यूडी विभाग के द्वारा सर्वे अमीन के रूप में की गई थी. साल 2014 के बाद में उनका कोई स्थाई करण भी दोबारा पीडब्ल्यूडी से रिन्यूअल नहीं हुआ. 2014 से लेकर 2022 तक बिना किसी रिन्यूअल के वो यहां पर लगातार काम कर रहे थे. वो अपने आप को एलएसी बताते थे, जब की वो सर्वे अमीन थे औऱ वो भी अस्थाई. संविदा का नवीनीकरण नहीं हुआ था. ये भी जांच का विषय है. 


 बाबू को कार्यालय से हटाया


जिला अधिकारी के अनुसार ये प्रकरण किसी के संज्ञान में नहीं आ पाया और यहां के जो कलेक्ट्रेट के जो लोग थे उनके द्वारा भी ये प्रकरण कभी संज्ञान में नहीं लाया गया. हालांकि मुझे मौखिक रूप से बताया गया है कि कभी साल 2018 में इस प्रकरण की शिकायत तत्कालीन अधिकारियों से की गई थी. लेकिन उसमें कोई कार्यवाही आगे नहीं हुई. जैसे ही मेरे संज्ञान में प्रकरण आया हमने तत्काल रूप से उसको उस पटन से हटा दिया हैं और कार्यालय से ही हटा दिया है और एक परमानेंट स्टाफ हमारे डीएलआरसी हैं उनको एलएसी का चार्ज देकर जो हमारे कलेक्ट्रेट के परमानेंट स्टाफ है. उनकी नियुक्ति वहां पर की है और सभी चार्ज संभालने के लिए कहा गया है.


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