गठबंधन से 'बहनजी' को हुआ फायदा, SP के वोटबैंक से BSP ने जीतीं 10 सीटें !
भले ही मायावती लोकसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली हार का ठीकरा सपा के सिर फोड़ रही हो, लेकिन चुनाव परिणामों का आकलन करें तो महागठबंधन का सबसे अधिक फायदा बीएसपी को ही पहुंचा है।
लखनऊ, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 में महागठबंधन को मिली हार का ठिकरा भले ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी के सिर फोड़ दिया हो, लेकिन चुनाव परिणामों का आकलन उनके दावों पर ही सवाल खड़े कर रहा है। जो स्पष्ट रूप से ये दर्शा रहा है कि महागठबंधन का सबसे अधिक फायदा बीएसपी को ही पहुंचा है। दरअसल, मायावती ने राज्य की 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव अकेले लड़ने की घोषणा करते हुए कहा था कि समाजवादी पार्टी के कोर वोटबैंक ने उसे वोट नहीं किया, जिस कारण महागठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा।
2014 में मिला शन्यू, 2019 में 10 सीटी जीतीं
हालांकि, अगर उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों के नतीजों का आकलन किया जाए, तो जहां पिछले चुनाव यानी 2014 के चुनावों में बीएसपी अपने खाते में एक सीट भी नहीं ला पाई थी, उसने 2019 में 10 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि पिछले चुनाव में बीएसपी अकेले अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरी थी और इस बार समाजावदी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन कर चुनावी ताल ठोकी थी।
सपा का आंकड़ा 5 का 5 रहा, घर की सीटें भी हारीं
इस महागठबंधन को लेकर दावा किया जा रहा था कि राज्य में वह सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगा, लेकिन इस बार मोदी लहर...सुनामी बनकर महागठबंधन को भी अपने साथ बहा ले गई। हालांकि, बीएसपी का सफर जरूर फर्श से अर्श तक पहुंचने में थोड़ा कामयाब रहा और उसने 10 सीटें जीतीं। जबकि समाजवादी पार्टी को मिली सीटों का आंकड़ा 5 का 5 रहा। सपा के लिए तो चौंकाने वाले परिणाम कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद के रहे, जो सपा के घर की सीटें मानी जाती है, वो भी हाथ से निकल गईं। अब अगर बात महागठबंधन के तीसरे साथी यानी राष्ट्रीय लोकदल की करें तो चौधरी अजित सिंह की पार्टी के भी हाथ भी शून्य ही लगा। इसी से समझा जा सकता है कि इस महागठबंधन से अगर किसी को फायदा पहुंचा है, तो वो हैं बहनजी। जिसने 10 सीटें जीतकर हासिये पर आ चुकी पार्टी में नई जान फूंकने का काम किया है।
6 सीटों पर SP का पूरा वोट BSP को हुआ ट्रांसफर
प्रदेश की जिन 10 सीटों पर बीएसपी ने विजय प्राप्त की है, उसमें से छह सीटों वो रही हैं, जहां 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी। बीजेपी का विजय रथ रोकने के लिए मायावती से हाथ मिलाने वाले अखिलेश के लिए ये सौदा घाटे का साबित हुआ और गठबंधन के तहत ये 6 सीटें बीएसपी के खाते में चली गईं। जिसका सीधा मतलब यही निकलता है कि इन सीटों पर समाजवादी पार्टी का पूरा वोट बैंक बीएसपी को ट्रांसफर हो गया।
वेस्ट यूपी की इन दो सीटों पर SP के वोटों से जीती BSP
भले ही अब मायावती ये कह रही हो कि अखिलेश को अपनी पार्टी में बदलाव लाने की जरूरत हो, लेकिन 2019 के चुनाव में वेस्ट यूपी की बिजनौर और नगीना सीट पर समाजवादी पार्टी की बदौलत ही बहनजी जीत सकी हैं। बिजनौर लोकसभा सीट की बात करें तो 2014 में बीजेपी और एसपी के बाद बीएसपी के मलूक नागर यहां तीसरे नंबर पर रहे थे। जबकि, नगीना सीट पर एसपी के यशवीर सिंह दूसरे और बीएसपी के गिरीश चंद्रा तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार बीएसपी के नागर और चंद्रा दोनों ने ही जीत दर्ज की है। इन दोनों सीटों पर जाट, यादव और मुस्लिम मतदाताओं के वोटबैंक ने BSP को दिलाई, जिसका पिछली बार के चुनाव में प्रदर्शन बेहद खराब रहा था। कुछ ऐसा ही हाल अमरोहा, श्रावस्ती, गाजीपुर और लालगंज में देखने को मिला। यहां पिछली बार के चुनावों में समाजवादी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन रहा था, लेकिन इस बार गठबंधन का पूरा का पूरा वोटबैंक बहनजी की तरफ शिफ्ट हो गया।
उपचुनाव अकेले लड़ने का ऐलान
अब जब लोकसभा चुनाव में उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिलीं, तो बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने विधानसभा के उपचुनावों में अकेले मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। चुनाव नतीजों के महज 11 दिन बाद मायावती के इस फैसले ने बीजेपी की कही बात सच साबित कर दी, कि गठबंधन ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं है। हालांकि, उपचुनाव में सपा और बसपा दोनों अकेले चुनावी मैदान में उतर रही हैं। बहनजी के दावों में कितना दम है, ये तो अब उपचुनाव के परिणाम बताएंगे। इस बीच राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा में है कि क्या यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए खुद को सीएम फेस के रूप में उभारने के लिए मायावती ने अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया।