Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की 18 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की सियासी कोशिशों को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने इस बारे में पहले से लगाई गई रोक को अगले आदेश तक के लिए फिर से बढ़ा दिया है. हाईकोर्ट के इस फैसले से ओबीसी की डेढ़ दर्जन जातियों को एससी वर्ग में शामिल किए जाने के आदेश पर लगी अदालती रोक आगे भी बरकरार रहेगी. इतना ही नहीं इस मामले में पांच सालों का लंबा वक्त बीतने के बावजूद यूपी सरकार की तरफ से अभी तक हाईकोर्ट में जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर भी अदालत ने गहरी नाराजगी जताई है. 


यूपी सरकार को अंतिम मौका
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मंगलवार को हुई सुनवाई में यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई और उसे अपना जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मोहलत दी है. अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि पांच सालों में सरकार का जवाब दाखिल न होना कतई उचित नहीं है. अगर यूपी सरकार ने एक महीने के अंदर अपना जवाब दाखिल नहीं किया तो हाईकोर्ट एकतरफा फैसला सुना सकता है. अदालत ने यह साफ किया कि जवाब दाखिल करने के लिए यह अंतिम मौका होगा.


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अखिलेश सरकार ने जारी किया था नोटिफिकेशन
गौरतलब है कि यूपी की पूर्ववर्ती अखिलेश यादव की सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में 22 दिसंबर 2016 को एक नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें ओबीसी की 18 जातियों को एससी यानी अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का फरमान जारी करते हुए सभी जिलों के डीएम को यह आदेश दिया कि वह इन जातियों को अब ओबीसी के बजाय एससी का सर्टिफिकेट जारी करेंगे. 


हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
तत्कालीन अखिलेश सरकार के इस नोटिफिकेशन को गोरखपुर की संस्था डॉक्टर बीआर अंबेडकर ग्रंथालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 24 जनवरी 2017 को इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी. इसके बाद 24 जून 2019 को यूपी सरकार ने एकबार फिर से नया नोटिफिकेशन जारी किया और पुराने आदेश पर अमल करने की बात कही. इस नोटिफिकेशन में भी वही बातें लिखी गई थी जो अखिलेश सरकार के शासनादेश में थी. हालांकि यह नोटिफिकेशन भी बाद में हाईकोर्ट से स्टे हो गया था.


याचिकाओं में क्या कहा गया था
अदालत में जो याचिकाएं दाखिल की गई थीं उनमें यह दलील दी गई थी कि अनुसूचित जातियों की सूची को राष्ट्रपति द्वारा तैयार कराया गया था. इसमें किसी तरह के बदलाव का अधिकार सिर्फ और सिर्फ देश की संसद को है. राज्यों को इसमें किसी तरह का संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है. ओबीसी की वह जातियां जिन्हें एससी में शामिल करने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था उनमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा गोडिया, मांझी और मछुआ शामिल हैं. 


मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई. अदालत इस मामले में अब मई के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगी. याचिकाकर्ताओं की तरफ से उनके वकील राकेश कुमार गुप्ता ने पक्ष रखा.  


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