Akhilesh Yadav Alliance: यूपी की सियासत में एकबार फिर से समाजवाद और समाजवादियों की चर्चा जमकर हो रही है. समाजवाद का गढ़ कहे जाने वाले इटावा ने पांच साल पहले समाजवाद के झंडाबरदार मुलायम सिंह यादव के घर पर सियासी टूट को देखा. अखिलेश यादव ने सपा पर कब्जा किया तो शिवपाल यादव ने छिटक कर अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. लेकिन संगठन के शिल्पीकार कहे जाने वाले शिवपाल यादव की कमी समाजवादी पार्टी को हमेशा खलती रही. लेकिन अब पांच साल बाद बीजेपी को सत्ता से दूर करने के बहाने चाचा भतीजे एक हो चुके हैं. दोनों के बीच गठबंधन भी हो गया है.
इटावा में जश्न
सियासत में हर तस्वीर के मायने होते हैं लेकिन गुरुवार को सोशल मीडिया पर जारी एक तस्वीर ने यूपी की राजनीति में भूचाल ला दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल से एक तस्वीर साझा की गई. इस तस्वीर में उनके साथ उनके चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव एकसाथ दिखे. ऐलान भी किया गया कि समाजवादी पार्टी आगमी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चाचा के साथ गठबंधन करके चुनाव लडने जा रही है. जिसके बाद समाजवादियों के गढ़ इटावा में चारों तरफ जश्न का माहौल हो गया.
पेश करेंगे एक मजबूत विकल्प
पिछले काफी वक्त से प्रसपा के मुखिया शिवपाल यादव ये कहते दिखाई दिए कि अब वक्त आ चुका है कि सभी समाजवादी विचारधारा के लोगों को एक हो जाना चाहिए. लेकिन कई बार खुले मंच से दिल की बात कहने के बावजूद अखिलेश यादव चाचा के प्रति नरमी नहीं दिखा रहे थे. लेकिन करीब पांच साल बाद सियासी रुख को भांपते हुए अखिलेश और चाचा शिवपाल के दिल मिल ही गए. अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव ये जानते हैं कि बीजेपी और योगी आदित्यनाथ सरकार के चक्रव्यूह को तोड़ने और सत्ता से बेदखल करने के लिए उनका एक होना बेहद जरूरी था. यूपी की जनता ये जोर देकर कह रही थी कि अगर चाचा भतीजा एक हो गए तो बीजेपी के लिए यूपी की सत्ता में दोबारा वापसी कर पाना काफी मुश्किल होगा. ऐसे में सियासी गोलबंदी और गठबंधन के जरिए ही न सिर्फ जनता के सामने वो एक मजबूत विकल्प बनेंगे बल्कि बीजेपी को यूपी की सत्ता से दूर करने के इरादे में सफल भी हो जायेंगें.
गठबंधन जरूरी है मजबूरी
अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच आज से पांच साल पहले जो कुछ हुआ उसे सियासतदान और यूपी की जनता भूल नहीं सकती. पिछले साल में शिवपाल सिंह यादव का बार बार अखिलेश के प्रति नरम रुख रखना लेकिन अखिलेश द्वारा इसे दरकिनार करना भी सबने देखा. इसीलिए कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि हालातों के मद्देनजर ये गठबंधन जरूरी भी है और मजबूरी भी. शिवपाल यादव पांच साल में कई बार अपने दिल की बात कहते दिखे. मुलायम सिंह यादव ने भी कई बार भाई और बेटे के एक हो जाने का प्रयास किया. लेकिन अखिलेश यादव हमेशा चाचा से उचित दूरी बनाए रहे. जब अखिलेश समाजवादी विजय रथ यात्रा लेकर बुंदेलखंड के दौरे पर पहुंचे तो उनकी जुबान पर चाचा का नाम चढ़कर बोला. अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी के लोग ना सिर्फ उनके कामों का फीता काट रहे हैं बल्कि उनके चाचा शिवपाल यादव के कामों का फीता काटने में जुटे हैं. सियासी पंडितों को तभी आभास हो गया कि अब चाचा और भतीजे के मिलन की घड़ी दूर नहीं है.
नहीं हुआ विलय
दरसल सूत्रों की माने तो शिवपाल दिलों के मिलन के साथ, दलों के मिलन और उनके विलय के लिए भी तैयार थे. लेकिन कभी साढ़े तीन मुख्यमंत्रियों वाली सरकार के मुखिया कहे जाने वाले अखिलेश यादव बीजेपी से लड़ते लड़ते सियासत के मांझे हुए खिलाड़ी बन चुके थे. ऐसे में उन्होंने फिलहाल गठबंधन का ही रास्ता चुना और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के विलय पर फिलहाल ब्रेक लगा दिया.
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