UP Election 2022: समाजवाद के मजबूत गढ़ में सपा की अग्नि परीक्षा, जानें Azamgarh क्यों बना अखिलेश यादव के लिए चुनौती
UP Election: आजमगढ़ (Azamgarh) में इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. वह यहीं से सांसद हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव वह करहल (Karhal) से लड़ रहे हैं.
UP Assembly Election 2022: आजमगढ़ (Azamgarh) में इस बार सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. वह यहीं से सांसद हैं, लेकिन विधानसभा का चुनाव वह करहल (Karhal) से लड़ रहे हैं. आजमगढ़ में साल 2017 के पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने सबसे ज्यादा पांच सीटें जीती थीं.
क्या है समस्या
आजमगढ़ ने मोदी लहर में भी अखिलेश और उनके पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) को अपना वोट देकर संसद भेजा है. हालांकि अखिलेश के आजमगढ़ के बजाय करहल से चुनाव लड़ने को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे हैं. वोटर्स पशोपेश में हैं, जबकि विपक्षी इसे मुद्दा बनाकर अखिलेश पर सियासी तीर छोड़ रहा है.
क्यों है अग्नि परीक्षा
बदले हुए हालात में आजमगढ़ में पिछले प्रदर्शन को दोहराना और उसमे बढ़ोत्तरी करना अखिलेश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. कहा जा सकता है कि पूर्वांचल (Purvanchal) की राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले समाजवाद के मजबूत गढ़ में इस बार अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा होनी है. इस अग्नि परीक्षा में अखिलेश पास होते हैं या नहीं, इसका फैसला तो दस मार्च को ही होगा. हालांकि बीजेपी आजमगढ़ में अखिलेश की घेरेबंदी करने में इस बार हर सियासी दांव आजमा रही है. इसी कड़ी में उसने आजमगढ़ के अपने इकलौते विधायक अरुणकांत का टिकट भी काटकर दूसरे नेता को उम्मीदवार बनाया है.
क्या है मजबूत गढ़
आजमगढ़ की बात करें तो यहां के वोटर्स ने 2014 की मोदी लहर में भी मुलायम सिंह यादव को सांसद बनाया था. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां दस में से पांच सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में आई थीं. चार सीट बीएसपी (BSP) ने जीती थी, जबकि बीजेपी (BJP) सिर्फ फूलपुर पवई की सीट ही जीत सकी थी. बाहुबली रमाकांत यादव उस वक्त समाजवादी पार्टी में नहीं थे और उनके नाम पर उनके अरुणकांत को कामयाबी मिली थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव आजमगढ़ से सांसद चुने गए थे. वह आजमगढ़ को सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ मानते हैं. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अखिलेश के इस मजबूत किले को ढहाने की रणनीति तय की. खुद बीजेपी के चाणक्य अमित शाह यहां कई बार आए.
क्यों है चुनौती
अखिलेश इस बार विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए आजमगढ़ के बजाय करहल चले गए तो सियासी गलियारों में सवाल गूंजने लगे. समाजवादी पार्टी के लोग इसे सामान्य फैसला बताकर मामले को ज्यादा तूल देने के मूड में नहीं नजर आ रही है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियां यह दावा कर रही हैं कि अखिलेश ने हार के डर की वजह से आजमगढ़ को छोड़ा है. अखिलेश के फैसले से आजमगढ़ के लोग भी हैरान हैं. कई परंपरागत वोटर तो खासे नाराज दिखाई दे रहे हैं. कहा जा सकता है कि बदले हुए हालात में आजमगढ़ के लोगों का दिल जीतना और अपने संसदीय क्षेत्र समेत जिले की सभी दसों सीटों पर साइकिल को रफ्तार से दौड़ाना अखिलेश के लिए कतई आसान नहीं होगा. यहां उन्हें दोहरी चुनौतियों से जूझना होगा.
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