UP Assembly Election 2022: सन्यास से सियासत तक, गोरखनाथ के महाराज से मुख्यमंत्री तक. योगी आदित्यनाथ के शख्सियत में ऐसी क्या बात है जो उन्हें हर किरदार में कामयाब बनाती है. योगी की सबसे बड़ी ताकत क्या है. आज की सियासत में योगी होने का मतलब क्या है. इन सब सवालों के जवाब योगी की उस यात्रा में दर्ज हैं जहां पहाड़ पर एक आम युवक का संघर्ष है. नागबंद का ज्ञान है, गोरखपीठ की परंपरा है और गोरखपुर से लखनऊ के वो सियासी दावपेच भी हैं. जिसने संन्यासी को राजनीति का दिग्गज बना दिया.
लगातार बढ़ रही जिम्मेदारी
देश में यूपी सहित पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं. हालांकि सबसे ज्यादा दावपेंच यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर लगाए जा रहे हैं. हर पार्टी जोड़ तोड़ में हर हथकंड़ा अपनाने पर लगी है. वहीं सत्ताधारी बीजेपी ने अपना दाव फिर से एक बार सीएम योगी पर लगाया है. लेकिन इस बार सीएम योगी की भूमिका पहले से काफी अलग है. सीएम के तौर पर पांच साल के काम का लेखा जोखा पेश करना से लेकर यूपी में बीजेपी को फिर से पूर्ण बहुमत तक लाने का बड़ा दायित्व योगी आदित्यनाथ के कंधों पर है. इसी बीच सीएम योगी को विधानसभा चुनाव लड़ा कर पार्टी ने उनकी जिम्मेदारी को और बड़ा कर दिया है.
हमेशा बढ़ी जिम्मेदारी
1998 में गुरु अवैद्यनाथ ने जब राजनीति से सन्यास लिया तो योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया. इसी साल 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर योगी आदित्यनाथ ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. तब उनकी उम्र केवल 26 साल थी. हिंदू युवा वाहिनी का गठन, विवादित बयान, गोरखपुर दंगे और दंगों का मुख्य आरोपी बनना. साल दर साल इन घटनाओं ने उनके राजनीतिक अनुभव को गाढ़ा किया है. 2017 में जब बीजेपी को यूपी में प्रचंड बहुमत मिला तो योगी को पर पार्टी ने फिर भरोसा दिखाया. पांच बार गोरखपुर का सांसद रहने के बाद सीएम योगी अब वहीं की सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. इन्हीं पर इसबार पूर्वांचल में नरम समझी जा रही बीजेपी की नाव पार लगाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी.
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