Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश बीजेपी (BJP) में लंबे समय से संगठन में जिस फेरबदल का इंतजार था वह बुधवार को आखिरकार हो ही गया. महामंत्री संगठन के तौर पर 8 वर्षों से उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं सुनील बंसल (Sunil Bansal) को अब पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. उनका कद बढ़ा है और जिम्मेदारी भी बढ़ी है. वहीं झारखंड(Jharkhand) में महामंत्री संगठन का कामकाज देख रहे हैं धर्मपाल सिंह (Dharampal Singh) को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं. हालांकि धर्मपाल सिंह उत्तर प्रदेश के बिजनौर के ही रहने वाले हैं. 


क्या वजह है धर्मपाल को यूपी लाने की
धर्मपाल सिंह ने लंबे समय तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड (Uttarakhand) में एबीवीपी (ABVP) के लिए काम किया है, ऐसे में उन्हें यूपी लाकर कहीं ना कहीं यह संदेश पार्टी ने दिया है कि बीजेपी के लिए 2024 के चुनाव में भी ओबीसी (OBC) कितने महत्वपूर्ण हैं और उसमें भी खासतौर से अति पिछड़े वर्ग पर उसकी खास नजर है. दरअसल धर्मपाल सैनी बिरादरी आते हैं जो बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर है. 


केशव प्रसाद मौर्य क्यों बने नेता सदन
एक नियुक्ति तो संगठनात्मक स्तर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चिट्ठी जारी करके की तो वहीं दूसरी नियुक्ति विधान परिषद में नेता सदन की हुई जहां उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. अब इसे संयोग तो बिल्कुल नहीं कहेंगे कि वहां भी OBC बिरादरी से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को नेता सदन बनाया गया है जो बीजेपी की पसंद माने जाने वाले मौर्य जाति से आते हैं. 


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क्या संदेश दिया है बीजेपी ने इससे
इतना ही नहीं इसके जरिए एक संदेश बीजेपी ने यह भी दिया कि उसके लिए 2024 में ओबीसी खासकर नॉन यादव कितने महत्वपूर्ण हैं. इसीलिए तो एक तरफ जहां संगठन में सबसे ऊंची कुर्सी पर ओबीसी बिरादरी से आने वाले व्यक्ति को बैठाया गया है तो अब विधान परिषद में भी नेता सदन की कुर्सी केशव प्रसाद मौर्य को दी गई है. 


क्या है इसके पीछे की बड़ी वजह
हालांकि इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरीके से स्वतंत्र देव सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी कुर्मी बिरादरी का वोट बीजेपी को नहीं मिला, जिसके चलते बीजेपी के सबसे बड़े पिछड़े चेहरे केशव मौर्य को फर्स्ट टाइमर पल्लवी पटेल से हार का सामना करना पड़ा. वहीं बीजेपी की सहयोगी अपना दल भी कुर्मी वोट बीजेपी में शिफ्ट कराने में कामयाब नहीं रही. हालांकि जहां अपना दल ने कुर्मी कैंडिडेट उतारा वहां तो पटेल समाज का वोट उसे मिला लेकिन वो वोट बीजेपी में ट्रांसफर नहीं हो पाया. 


बीजेपी ने स्पष्ट की अपनी रणनीति
शायद यही वजह है कि, बीजेपी ने 2024 के पहले एक बार फिर अति पिछड़ों को साधने की तैयारी पूरी कर ली है जिसके दो उदाहरण एक साथ देखने को मिले. अब सभी लोग केशव प्रसाद मौर्य को मिली नई जिम्मेदारी पर बधाई दे रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने एक तरह से अपनी रणनीति को स्पष्ट कर दिया है. उसे पता है कि प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोटर हैं और अगर 2014, 2019 की तरह उसका साथ 2024 में भी बीजेपी को मिलेगा तो इस बार 80 में 80 सीट पाने का उसका लक्ष्य काफी आसान हो जाएगा.


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