Gorakhpur Mandir: ओमिक्रॉन के खतरे के बीच गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर चढ़ेगी खिचड़ी, प्रशासन ने की यह अपील
Gorakhnath Math: विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ेगी. यहां लगने वाला एक माह का मेला भी शुरू हो चुका है.
Makar Sankranti: ओमिक्रॉन के खतरे के बीच इस बार पड़ रहे मकर संक्रांति के पर्व पर विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ेगी. मकर संक्रांति पर 15 जनवरी से यहां लगने वाला एक माह का मेला भी शुरू हो चुका है. 11 जनवरी को कोरोना पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा गोरखपुर में एक हजार की संख्या को पार कर 1082 पर पहुंच गया है. मंदिर के अंदर मास्क लगाए बगैर आने की परमीशन नहीं है. लेकिन मंदिर परिसर और बाहर भी बहुत से लोग कोविड-19 के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए दिख रहे हैं. हालांकि अधिकतर लोग मास्क लगा भी रहे हैं. लेकिन फिर भी मकर संक्रांति पर इस तरह की लापरवाही भी खतरनाक हो सकती है.
प्रशासन की अपील
विश्व प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर खिचड़ी मेला लग गया है. एक माह तक चलने वाले खिचड़ी मेला की खजला मिठाई शान होती है. मकर संक्रांति को देखते हुए बैरिकेटिंग और सुरक्षा के सारे इंतजाम पूरे हो गए हैं. विश्व प्रसिद्ध बाबा गोरखनाथ के दरबार में वैश्विक माहामारी कोरोना के नए वेरिएंट के बीच पड़ रहे पर्व पर भी लोगों की अस्था में कोई कमी नहीं आई है. मकर संक्रांति के पर्व को देखते हुए कोविड-19 प्रोटोकाल का भी खास ख्याल रखा गया है. इसके अलावा हर आने-जाने वाले लोगों की जांच के साथ उन्हें सामाजिक दूरी का भी खास ख्याल रखने के निर्देश दिए जा रहे है.
ये है मान्यता
सदियों से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में उपस्थित रहकर पहली पूजा कर खिचड़ी चढ़ाते हैं. उसके बाद पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है. गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर की पूरे विश्व में बहुत मान्यता है. माना जाता है कि बाबा गोरखनाथ के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर मुरादें पूरी होती हैं. गोरखनाथ मंदिर के कार्यालय सचिव द्वारिका तिवारी ने बताया कि हर साल यहां पर मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा है. यहां पर खिचड़ी के पर्व पर एक माह का मेला भी लगता है. मान्यता है कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में ज्वाला देवी ने बाबा गोरखनाथ को भोज पर आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया. बाबा गोरखनाथ ने वहां पहुंचकर उनसे कहा कि वे योगी हैं. भिक्षाटन में मिला भोजन ही ग्रहण करते हैं. उन्होंने ज्वाला देवी को पानी गरम कर भिक्षाटन कर आने की बात कही.
परम्परा का निर्वहन
बाबा गोरखनाथ वहां से भिक्षाटन के लिए निकले और वनाच्छादित क्षेत्र गोरखपुर में अखण्ड धूनी सजाकर तप करने लगे. इसके बाद यहां पर लोगों ने उनके लिए कच्ची खिचड़ी चढ़ाना शुरू किया. सदियों पुरानी उसी परम्परा का आज भी लोग पालन करते चले आ रहे हैं. कहा जाता है कि हिमांचल के कांगड़ा में आज भी ज्वाला देवी के दरबार में पानी उबल रहा है. लेकिन तभी से बाबा गोरखनाथ यहां पर तप करने लगे. बरसों से चली आ रही इस परम्परा का आज भी निर्वहन करने के लिए श्रद्धालु इस दरबार में मकर संक्रांति के दिन आते हैं. यहां पर एक माह तक मेला लगता है. मेले में बच्चों के झूले के अलावा विभिन्न प्रकार के अन्य करतब और जादू दिखाने वाले भी आते हैं. ओमिक्रोन के खतरे को देखते हुए लोगों को मास्क पहनकर मंदिर में आने की हिदायत दी जा रही है.
खिचड़ी चढ़ाने का महत्व
गोरखनाथ मंदिर उत्तराखंड का रहने वाला परिवार दर्शन के लिए आया है. डा. किरण सिंह बताती हैं कि वे यहीं की रहने वाली हैं. वे जब भी गोरखपुर आती हैं, तो यहां की साफ-सफाई और डेवलपमेंट के साथ अनुशासन देखकर काफी अच्छा लग रहा है. वे कहती हैं कि सख्ती की वजह से एवेयरनेस दिख रही है. बाहर लोग एवेयर नहीं हैं. वे कहती हैं कि खतरा तो है. लोगों को सावधानी बरतने की जरूरत है. डा. किरण सिंह के बेटे संदीप विशेन और उनकी पत्नी विजेता शाही बताते हैं कि वे काफी साल से यहां पर रहे हैं. वे कहते हैं कि काफी महत्व है. खिचड़ी चढ़ाने की यहां पर परम्परा का निर्वहन किया जाता है. लोगों की काफी आस्था है. लोग मन्नत मांगने के लिए यहां पर आते हैं. कोरोना के नए वैरिएंट को ध्यान रखते हुए वे खुद सावधानी बरत रहे हैं. खुद सुरक्षित रहने की जरूरत है. मार्केट में लोग लापरवाही कर रहे हैं.
क्या कहते हैं श्रद्धालु
मऊ जिले के दोहरीघाट की रहने वाली प्रसून राय कहती हैं कि यहां पर वे 15 साल से दर्शन करने के लिए आ रही हैं. वे इस बार मां, भाई और भतीजी के साथ आईं हैं. यहां पर आकर मन खुश हो जाता है. जब वे गोरखपुर आती हैं, तो यहां दर्शन करने के लिए जरूर आती हैं. प्रसून के भाई प्रिंस बताते हैं कि वे 10 साल से यहां पर आ रहे हैं. यहां पर मेला देखने के लिए और बाबा की पूजा करने के लिए दूर-दूर से आते हैं. मां, बहन और भतीजी के साथ वे यहां पर आए हैं. वे लोग ओमिक्रोन को देखते हुए सावधानी बरत रहे हैं. मास्क लगाने के साथ अन्य लोग भी मास्क लगाए हुए दिखाई दे रहे हैं.
खाजा-खजला मिठाई
खाजा-खजला मिठाई गोरखनाथ मंदिर के मेला की शान है. यहां पर आने वाले लोग इसे खरीदते हैं और घर ले जाकर परिवार के साथ खाते हैं. इसे खोए और चेरी के साथ सजाया जाता है. 30 साल से यहां पर दुकान लगाकर खजला मिठाई बनाने वाले अतुल तिवारी कानपुर से यहां पर आते हैं. वो बताते हैं कि खोए से ये मिठाई बनाते हैं. इसे खाजा और खजला भी कहते हैं. इसे 15 दिन तक रख सकते हैं. दुकानदार प्रदीप कुमार बताते हैं कि इसे पहले खाजा और खजला कहा जाने लगा है. वे खोआ और चेरी के साथ इलायची भी पड़ती है. चार से पांच तरह की ये मिठाई तैयार होती है. काजू-बादाम के साथ खोआ भी बनता है. 120 रुपए से लेकर 50 रुपए तक ये खजला मिठाई की कीमत है.
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