UP: कोरोना वैक्सीन वेस्टेज के मामले में हुआ सुधार, 9.4 से 7.3 प्रतिशत पर आई वेस्टेज दर
देशभर में 5 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना वाक्सीन की खुराक दी जा चुकी हैं. वहीं देशभर में कोरोना वैक्सीन वेस्टेज के मामले में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है. फिलहाल अब राज्य में कोरोना वैक्सीन के वेस्टेज को 9.4 प्रतिशत की दर से कम करके 7.3 प्रतिशत पर लाया गया है.
लखनऊः देशभर में कोरोना वैक्सीनेशन का काम 16 जनवरी से शुरू हुआ है. वहीं अभी तक कुल पांच करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी है. फिलहाल देशभर में कोरोना वैक्सीन के वेस्टेज के कई मामले देखे गए हैं. जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी की है.
कोरोना वैक्सीन वेस्टेज के मामले में तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान कोरोना वैक्सीन के वेस्टेज पर चिंता जाहिर की है. वहीं वैक्सीन वेस्टेज के मामले में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर रहा. जहां वैक्सीन की बर्बादी 9.4 फीसदी थी. हालांकि इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर कड़ी निगरानी के निर्देश दिए हैं. जिसके बाद इसका असर भी देखने को मिला. अब यूपी में वैक्सिन की वेस्टेज 7.3 फीसदी तक आ गई है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर वैक्सीन के बर्बाद होने की क्या प्रमुख वजहें हैं.
जानिए क्या है वेस्टेज के मुख्य कारण
इस वैक्सीन के वेस्ट होने के कई कारण हैं,जिनमें सबसे ज्यादा वेस्ट होने का कारण पहले covaxin के एक वॉयल में 20 डोज का होना भी शामिल था. जब ये वैक्सीन आई तब लोग वैक्सीन लगवाने में काफी हिचकते थे, और उस वक्त कोवैक्सीन 1 वॉयल में 20 डॉज होती थी और पूरे वॉयल को 4 घंटे के भीतर इस्तेमाल करना होता था.
वहीं कई बार सेशन में महज 5-6 लोग ही आते थे और पूरी शीशी खोलनी पड़ती थी. जो कि 4 घंटे के बाद इस्तेमाल ना होने के चलते बाकी बची 15 डोज बर्बाद हो जाती थी. हालांकि अब covaxin ने अपने वॉयल में बदलाव किया है और अब 1 शीशी में 10 डोज ही होती हैं.
ट्रांसपोर्टेशन के दौरान टूटने से भी होता है नुकसान
इस वैक्सीन के वेस्ट होने की दूसरी बड़ी वजह कई बार ट्रांसपोर्टेशन के दौरान इस वॉयल का ब्रेक हो जाना है. जिसके चलते भी वैक्सीन बर्बाद होती है. हालांकि इसकी संख्या काफी कम है. विशेषज्ञों का कहना है हर वैक्सीन में उसकी वेस्टेज की एक परमीसिबल लिमिट होती है जो कि 10 फीसदी होती है और उत्तर प्रदेश में पहले 9.4 फीसदी इसकी वेस्टेज थी, जो लिमिट से कम ही थी. फिलहाल उसे भी कम करके 7.3 फीसदी किया गया है.
वहीं इस वैक्सीन में ओपन वॉयल पॉलिसी ना होना भी बर्बादी की एक वजह रही है. दरअसल देश में कई ऐसी वैक्सीन हैं जिन्हें एक बार खोलने के बाद उसे कोल्ड चैन संभाल के रखा जा सकता है, लेकिन कोरोना वैक्सीन के साथ यह ओपन वॉयल पॉलिसी लागू नहीं है. यानी एक बार इसे खोलने के बाद अगर 4 घंटे के भीतर सारी डोज नहीं दी गयी तो ये वेस्ट हो जाएगी. इसे कोल्ड चैन में संभाल के रखा नहीं जा सकता.
पोर्टल में आ रही दिक्कतें
इसके अलावा पहले शुरू में वैक्सीन के बर्बाद होने एक वजह यह भी थी की पोर्टल में काफी दिक्कतें आ रही थी. खासकर जिलों में क्योंकि यहां लोगों को वैक्सीन तो लग जाती थी लेकिन वह पोर्टल पर अपडेट नहीं हो पाती थी. जिसके चलते जो आंकड़े आते थे उसमें वैक्सीन का इस्तेमाल ज्यादा तो होता था लेकिन वो कम लोगों को लगना दिखता था. विशेषज्ञ भी कहते हैं कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सबसे ज्यादा वैक्सीन का वेस्टेज हो रहा है. जबकि यूपी में तो यह स्वीकृत लिमिट 10 फीसदी से कम ही थी. जिसे 7.3 फीसदी किया गया है और आगे 5 फीसदी तक लाने की कोशिश की जा रही है.
आपको बता दें कि यूपी के पांच जिलों में कोरोना वैक्सीन का वेस्टेज सबसे ज्यादा है. जिसमें प्रयागराज में 15 फीसदी, लखनऊ में 14 फीसदी, चित्रकूट में 14 फीसदी, आजमगढ़ में 13 फीसदी और बरेली में 12 फीसदी तक है. जबकि सबसे कम वेस्टेज महोबा में 0 फीसदी, श्रावस्ती में 0.5 फीसदी, पीलीभीत में 0.83 फीसदी, चंदौली में 1 फीसदी और कौशांबी में 1.2 फीसदी है.
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