ज्ञानवापी मस्जिद केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुआ ट्रांसफर, जानिए क्या होते हैं Fast Track Court, कैसे करते हैं काम
ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी. जज महेंद्र पांडे इस मामले पर सुनवाई करेंगे. वहीं फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई होने से मामले में जल्द फैसला की उम्मीद है.
Gyanvapi Mosque Case in Fast Track Court: पिछले कई दिनों से वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामला विवादों में छाया हुआ है. वहीं ज्ञानवापी मामले को एक लेकर बड़ी खबर आ रही है, दरअसल इस केस की सुनवाई जल्द से जल्द हो सके इसके लिए सिविल जज रवि दिवाकर ने मामले को फास्ट ट्रैक में ट्रांसफर कर दिया है. यानी अब ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी. बताया जा रहा है कि मामले की हर रोज सुनवाई हो सकती है और जल्द से जल्द फैसला सुनाया जा सकता है. मामला 30 मई से फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुना जाएगा. चलिए यहां जानते हैं फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या होता है और यहां कैसे सुनवाई होती है.
फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का क्या है मकसद?
भारत की अदालतों में लाखों केस पेंडिंग पड़े हुए है. कई मामलों में तो सुनवाई शुरू होने में ही सालों साल गुजर जाते हैं और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है. ऐसे में जल्द से जल्द मामलों की सुनवाई और और कम समय में पीड़ित पक्ष को न्याय मिल सके इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं. इन फास्ट ट्रैक कोर्ट में हर रोज मामलों की सुनवाई होती है और पीड़ितों को इंसाफ दिया जाता है.
फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं ?
- फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का फैसला राज्य की सरकार हाईकोर्ट से चर्चा के बाद करती है.
- फास्ट ट्रैक कोर्ट सुनावई के लिए टाइमलाइन तय कर सकता है.
- कोर्ट तय करता है कि मामले को हर रोज़ सुना जाना है या कुछ दिनों के अंतराल पर
- सभी पक्षों को सुनने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट तय समय में फैसला देता है
- फास्ट ट्रैक कोर्ट में सम्मन, वारंट आदि की तैयारी में देरी के कारण सुनवाई स्थगित नहीं होती है.
क्या है फास्ट ट्रैक कोर्ट के फायदे?
- फास्ट ट्रैक कोर्ट कम समय में सुनवाई कर फैसला सुना देता है.
- फास्ट ट्रैक कोर्ट की वजह से सेशन कोर्ट्स में आने वाले केसों का बोझ भी कम हुआ है.
- कई मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने हफ्तों के भीतर ही फैसला सुना दिया
हालांकि फास्ट ट्रैक कोर्ट में फैसला सुनाए जाने के बाद भी मामलों सालों-सल ऊपरी अदालतों में लटके रहते हैं.
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