UP Nikay Chunav: OBC आयोग की रिपोर्ट पर सपा ने उठाए सवाल, राजपाल कश्यप बोले- 'BJP ने आयोग को प्रेशर में लिया'
OBC आयोग की रिपोर्ट को कैबिनेट मंजूरी मिलने के बाद इसको लेकर सियासत तेज हो गई है. सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप ने रिपोर्ट को तैयार करने के तरीके पर सवाल उठाए हैं.
UP Nikay Chunav: यूपी राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग (OBC) आयोग की रिपोर्ट को कैबिनेट से मंजूरी मिलने पर सपा (SP) के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप (Rajpal Kashyap) ने सवाल उठाए हैं. राजपाल कश्यप ने कहा कि 'आयोग ने रिपोर्ट जरूर सौंप दी है, लेकिन जो आयोग निष्पक्षता के लिए बनाया जाता है. वह कितने दबाव में होगा जिसने सरकार के सामने जूते तक उतार दिए. अब उन्होंने क्या रिपोर्ट दी होगी, क्या रिपोर्ट में आंकड़े होंगे वह तो जब रिपोर्ट सामने आएंगी तब जानकारी मिलेगी. इससे पता लगता है कि ओबीसी आयोग की सरकार के सामने क्या हैसियत है.'
राजपाल कश्यप ने आगे कहा कि 'सरकार ने अगर ठीक से आंकड़े हाईकोर्ट में रखे होते तो सुप्रीम कोर्ट तक की नौबत ही नहीं आती. इन्होंने जिस तरह से आंकड़ों में हेराफेरी की इससे हाईकोर्ट ने आरक्षण ही खत्म कर दिया था. हाई कोर्ट ने कह दिया था कि बिना आरक्षण के ही चुनाव करा दो. वह तो समाजवादी पार्टी सुप्रीम कोर्ट गई और मांग उठाई की बिना आरक्षण के चुनाव ना हो, तब उस पर निर्णय हुआ कि बिना आरक्षण के चुनाव नहीं होगा. इसके बाद कोर्ट ने तीन महीने का वक्त दिया, लेकिन मैं पूर्वांचल के कई जिलों में दौरे पर गया और वहां पूछा कि क्या कोई कर्मचारी उनके क्षेत्र, विधानसभा, उनके घर पर कुछ पूछने आया है.
सपा नेता ने दावा किया कि कोई जानकारी लेने आया है संख्या को लेकर? तो किसी ने नहीं बताया कि उनके यहां कोई आया हो. ओबीसी की गणना होनी थी, ट्रिपल टेस्ट के माध्यम से सीट का निर्धारण होना था. जब कोई किसी के यहां गया ही नहीं तो रिपोर्ट कैसे बन गई.'
सरकारी संस्थाओं की अहमियत खत्म- कश्यप
राजपाल कश्यप की मानें तो वाराणसी में तो कई जगह लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. बीजेपी ने सरकारी संस्थाओं को प्रेशर में ले लिया है. इससे सरकारी संस्थाओं की अहमियत खत्म हो गई है. आयोग स्वतंत्र संस्था होती है, लेकिन सरकार के सामने जिसके जूते उतरवा लिए जाए, नंगे पैर कर दिया जाए वो सच्चाई को क्या बोल पाएगा. बीजेपी की तो पहचान ही थी संवैधानिक संस्थाओं को खत्म करने की. लोकतंत्र के सभी स्तंभ पर हमला हो रहा है. जितनी स्वतंत्र संस्थाएं थीं उनको अभी सरकारी मशीनरी के रूप में उपयोग किया जा रहा है. इसका जीता जागता उदाहरण सब ने देख लिया.
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