UP Electricity News: उत्तर प्रदेश के बिजली निगमों का घाटा कितना है? यहां जान लीजिए आंकड़ा
UP Electricity: यूपी में बिजली निगमों का घाटा साल दर साल बढ़ते जा रहा है.अब यह बढ़कर करीब एक लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है. इसके लिए अफसर कर्मचारियों को तो कर्मचारी अफसरों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
Lucknow: बिजली कर्मचारियों की हाल ही में हुई हड़ताल भले ही खत्म हो गई हो लेकिन हालात ने एक बार फिर पावर कॉर्पोरेशन के भारी भरकम घाटे के मुद्दे को चर्चा में ला दिया है. उत्तर प्रदेश के बिजली निगमों का घाटा 22 साल में 77 करोड़ से बढ़कर करीब एक लाख करोड़ पहुंच चुका है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? क्योंकि घाटा किसी की वजह से हो लेकिन घूम फिर कर उसका बोझ व उसका असर उपभोक्ताओं पर ही आता है.
समय के साथ बढ़ता जा रहा निगमों का घाटा
प्रदेश में 1959 में राज्य विद्युत परिषद का गठन किया गया. इसके तहत बिजली वितरण, उत्पादन आदि कार्य संचालित किए गए. लेकिन वर्ष 2000 में 10 हज़ार करोड़ रुपये का घाटा हो गया. सरकार ने घाटे को वहन करते हुए राज्य विद्युत परिषद को तोड़ कर निगम बना दिया. पहले से चल रहे केस्को के साथ मध्यांचल, पूर्वांचल, पश्चिमांचल, और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम बना दिए गए. हालांकि इसके बाद साल दर साल घाटा बढ़ता जा रहा है. निगम बनने के बाद पहले साल का घाटा 77 करोड़ था जो अब 1 लाख करोड तक हो गया है. विभागीय रिपोर्ट की मानें तो 2001 में बिजली निगमों का कुल घाटा 77 करोड़ था जो वर्ष 2005 में 5439 करोड़ पर पहुंच गया. इसके बाद वर्ष 2010-11 में यह घाटा 24,025 करोड़ और 2015-16 में 72,770 करोड़ हो गया. वर्ष 2016-17 में यह घाटा बढ़कर 75,951 करोड़, वर्ष 2017-18 में 81,040 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 87,089 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. अब यह घाटा करीब एक लाख करोड़ तक पहुंच गया है. हाल ही में जब बिजली कर्मचारियों ने हड़ताल के दौरान बोनस का मुद्दा उठाया था तो ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने इस घाटे का जिक्र करते हुए ये तक कह दिया कि इन हालात में बोनस कैसे दिया जाए.
घाटे के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहे अफसर और कर्मचारी
विभागीय अफसर इस बढ़ते घाटे के लिए कर्मचारियों की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार ठहराते हैं तो कर्मचारी यहां के मैनेजमेंट, नीति और निगम के जिम्मेदार अफसरों को. राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर कहते हैं कि पहले एमडी लेवल पर विभाग का कोई इंजीनियर प्रमोट होकर पहुंचता था. उसे पूरी तकनीकी जानकारी होती थी, मैनेजमेंट अच्छा था. लेकिन अब इन पदों पर IAS को बैठा दिया जाता है जिसे तकनीकी जानकारी ही नहीं होती. ऐसे में स्थिति सुधर नहीं हो पा रही. इसके अलावा अगर एसोसिएशन इस घाटे से निकलने के सुझाव देता है तो माने नहीं जाते.
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद किसे मानता है जिम्मेदार?
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा इन हालात के लिए नीचे काम कर रहे अभियंताओं को अधिक जिम्मेदार मानते हैं. अवधेश वर्मा का कहना है कि अभियंता बिजली चोरी का मामला पकड़ने जाते हैं और कार्रवाई की जगह खुद सेटिंग करने लगते हैं. कहीं एक लाख का बिल 10 हज़ार में सेटल हो जाता है तो कही बिजली चोरी में 4 को पकड़े तो सिर्फ 1 पर एफआईआर दर्ज कराते हैं और सेटिंग करके 3 को छोड़ देते हैं. इससे घाटा बढ़ता जा रहा है. इस घाटे के लिए पावर कॉर्पोरेशन को लोन लेना पड़ता है. उसके लिए सरकार मदद करती है. इसके अलावा सरकार बड़ी रकम सब्सिडी में देती है. कर्ज जितना बढ़ता है ब्याज भी उतना अधिक. फिर बिजली कंपनियां बिजली दरें बढ़ाने को कहती हैं. कहीं न कहीं बोझ में उपभोक्ता दबता है. ऐसे में जब तक विभाग का भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा हालात नहीं बदलेंगे.
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