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यूपी में एक ही चयन आयोग से मदरसा सहित सभी शिक्षकों की भर्ती की तैयारी, जानिए इससे क्या होगा फायदा?

उत्तर प्रदेश में मदरसे से लेकर स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षा सेवा चयन आयोग के जरिये की जाएगी. यही आयोगा आने वाले समय में शिक्षक पात्रता परीक्षा का आयोजन भी कराएगा. 

उत्तर प्रदेश के योगी सरकार ने बीते मंगलवार यानी 4 अप्रैल को शिक्षकों की भर्ती को लेकर बड़ा फैसला किया है. प्रदेश में अब शिक्षा सेवा चयन आयोग का गठन किया जाएगा. इस आयोग का काम सभी कॉलेज से लेकर स्कूल यहां तक की मदरसों में शिक्षक की भर्ती कराना होगा. यानी अब राज्य में मदरसे से लेकर स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति इसी आयोग के जरिये की जाएगी. शिक्षा सेवा चयन आयोग ही शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की परीक्षा का आयोजन भी कराएगा. 

क्यों लिया गया ये फैसला 

ये अहम फैसला यूपी शिक्षा सेवा चयन आयोग विधेयक 2023 के संबंध में मंगलवार को हुए शिक्षा विभाग की बैठक में लिया गया था. इसका मकसद है शिक्षा भर्तियों की परीक्षाओं में हो रही धांधली और अनियमितता पर लगाम लगाना. दरअसल पुरानी सरकार में शिक्षक भर्ती के परिक्षा में काफी धांधली हुई थी. इस आयोग के गठन का मकसद होगा ऐसी परीक्षाओं और शिक्षक के सिलेक्शन के प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना. इसके अलावा इस प्रक्रिया को समय पर पूरा करवाना. 

अब तक कौन करवा रहा था शिक्षकों की भर्ती 

अब तक प्रदेश में संचालित बेसिक, माध्यमिक, उच्च और प्राविधिक शिक्षण संस्थानों में योग्य शिक्षकों के चयन के लिए अलग-अलग प्राधिकारी, बोर्ड व आयोग गठित हैं. परीक्षा नियामक प्राधिकारी, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग और उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के अलावा उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से भी शिक्षकों के चयन किया जा रहा है. 

कैसा होगा नया बोर्ड 

शिक्षा सेवा चयन आयोग में उस व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाएगा जो किसी यूनिवर्सिटी का कुलपति रहा हो या फिर एक ऐसा आईएएस अधिकारी जिसका अच्छा खासा अनुभव हो. ठीक इसी प्रकार सदस्य के तौर पर उन लोगों को चयन किया जाएगा जो या तो सीनियर जज हैं या स्कॉलर हैं. वहीं पिछड़ा वर्ग यानी अनुसूचित जाति/जनजाति, महिला एवं अल्पसंख्यक को भी आयोग में जगह दी जाएगी. 

इन कॉलेजों में भी शिक्षक भर्ती की जिम्मेदारी होगी

स्कूलों के अलावा कुछ कॉलेज में भर्ती की जिम्मेदारी शिक्षा सेवा चयन आयोग पर होगा. ये कॉलेज हैं, राजकीय महाविद्यालय, अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालय, संस्कृत महाविद्यालय और अल्पसंख्यक महाविद्यालय, राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेजों, एडेड पॉलिटेक्निक कॉलेज तथा अशासकीय सहायता प्राप्त मदरसों में नवीन एकीकृत आयोग ही चयन प्रक्रिया आयोजित करेगा.

जानिए इससे फायदा

शिक्षा सेवा चयन आयोग का फायदा ये होगा कि ये आयोग सभी स्कूलों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए काम करेगा. उदाहरण के तौर पर अगर किसी स्कूल में शिक्षक की भर्ती होनी है तो आयोग शैक्षिक सत्र से पहले शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर देंगे. ताकि नए सत्र की शुरुआत से पहले ही शिक्षकों की भी भर्ती हो जाए. 

अब तक राज्य में जो आयोग शिक्षकों की भर्ती करवाती थी. वह इसके अलावा भी कई अलग-अलग भर्तियों को देख रही थी. लेकिन इस आयोग का गठन की शिक्षकों की भर्ती के लिए किया गया है तो इनका पूरा ध्यान उसी पर होगा.

इसके अलावा एक फायदा ये भी है कि इस आयोग के सदस्य कॉलेज के कुलपति, आईएएस, जज जैसे बड़े बड़े पदों पर रह चुके व्यक्ति होंगे. उन्हें पता होगा कि शिक्षक के लिए अप्लाई करने वाले शख्स बच्चों के पढ़ाने में सक्षम हो पाएगा या नहीं. 

अब तक मदरसा और माध्यमिक स्कूलों में भर्तियों की जिम्मेदारी माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड की होती है और इस प्रक्रिया में काफी देरी भी होती था. लेकिन अब ये कम हो जाएगा और अप्रैल से पहले इन शिक्षकों की भर्ती कर दी जाएगी.

बता दें कि राज्य में करीब डेढ़ लाख के करीब प्राथमिक विद्यालय है. तो अब उसमें शिक्षक की भी जरूरत है. ऐसे में इस आयोग के  गठन और इसके माध्यम से शिक्षकों की नियुक्ति हुई तो भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूर देखने को मिलेगा.

शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग पुरानी 

साल 2021, अगस्त के महीने में यूपी में सहायक शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले का आरोप लगाने वाले अभ्यर्थी सड़क पर आ गए थे.  मामला ये था कि यहां जब अखिलेश की सरकार थी, तब 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित कर दिया गया था. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और समायोजन को रद्द कर दिया गया. जिसका मतलब है कि अखिलेश यादव की सरकार ने जिन शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक बना दिया था, वह फिर से शिक्षामित्र बन गए.                   

सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को आदेश दिया कि खाली हुई 1 लाख 37 हजार पदों पर भर्ती कराया जाए. योगी सरकार का कहना था कि वह एक साथ इतने रिक्त पदों को नहीं भर सकते हैं.  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन सभी पदों को दो चरण भरा जाए. जिसके बाद योगी सरकार ने साल 2018 में 68500 पदों के लिए वैकेंसी निकाली.

आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों ने दावा किया था कि सहायक शिक्षक भर्ती की पहली किस्त यानी निकाली गई 68500 पदों की वैकेंसी  में 22 हजार से ज्यादा पद खाली रह गए थे. 

यूपी में शिक्षक बनने के बनने के लिए 4 पदों पर होती है भर्ती

यूपी में सरकारी शिक्षक बनने के लिए 4 पदों पर भर्ती की जाती है. ये पद हैं प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, ट्रेन्ड ग्रेजुएट टीचर (TGT) और स्नातकोत्तर शिक्षक (PGT). प्राइमरी शिक्षक कक्षा पांचवी तक के बच्चों को पढ़ाते हैं, अपर प्राइमरी में कक्षा 6 से 8 तक के छात्र आते हैं, वहीं टीजीटी शिक्षक 10वीं तक के छात्रों को पढ़ाते हैं और पीजीटी 12वीं तक को पढ़ाते हैं. 

किस पद पर भर्ती के लिए कितनी योग्यता 

उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षक 12वीं पास होना जरूरी है, इसके साथ ही व्यक्ति के पास बैचलर डिग्री हो और दो साल का D.Ed या BTC का डिप्लोमा होना जरूरी है. इसके अलावा 12वीं और ग्रेजुएशन में कम से कम 50 प्रतिशत नंबर होने चाहिए.

उच्चा प्राथमिक शिक्षक के इच्छुक के पास जो डिप्लोमा की डिग्री होनी चाहिए. इसके अलावा बैचलर डिग्री, जिसमें 50 प्रतिशत नंबर होने जरूरी हैं. 

शिक्षक पात्रता परीक्षा का मतलब क्या होता है?

राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी शिक्षक बनने के लिए दो तरह की परीक्षा होती है. राज्य स्तर पर शिक्षक पात्रता परीक्षा  होता है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर सीटीईटी परीक्षा होती है. यह एक कॉमन टेस्ट हैं जिसके माध्यम से अलग-अलग सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है.  सीटीईटी (CTET) का मतलब है सेंट्रल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट जबकि टीईटी (TET) का मतलब है टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट.

टीईटी परीक्षा को राज्य सरकार द्वारा कराई जाती है. कई राज्य सरकार इस परीक्षा को हर साल आयोजित करती हैं जैसे यूपीटीईटी , आरईईटी (REET), बिहार एसटीईटी (Bihar STET), पीएसटीईटी (PSTET), एमपी टीईटी (MPTET) , केटीईटी (KTET), टीएनटीईटी वगैरह. इस परीक्षा में पास हो जाने के बाद उम्मीदवार सिर्फ संबंधित राज्य सरकारों द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षण कार्य के लिए योग्य हो जाते हैं.

तमाम योजनाओं के बाद भी  3.96 लाख बच्चे स्कूल से बाहर

केंद्र राज्य सरकारों देश की सभी सरकारी स्कूलों के लिए आए दिन नई योजनाएं लागू करती रही है. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इसके बावजूद लोकसभा में केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी द्वारा पेश किया गया आंकड़े बताते हैं कि देश भर में प्राथमिक स्तर पर 9,30,531 बच्चे स्कूल से बाहर हैं जिनमें 5.02 लाख लड़के और 4.27 लाख लड़कियां हैं. उत्तर प्रदेश में 3.96 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं, इसके बाद बिहार में 1.34 लाख और गुजरात में 1.06 लाख हैं.

साझरता दर के मामले में यूपी

सांसद में राजीव प्रताप रूडी ने पढ़ाई छोड़ने वालों के बारे में सरकार से जानकारी मांगी थी. जिसका जवाब में अन्नपूर्णा देवी ने  देश में साक्षरता दर पर जानकारी देते हुए बताया कि बिहार में सबसे कम 61.8 प्रतिशत साक्षरता दर है. वहीं, केरल में सबसे ज्यादा यानी 94 फीसदी लोग साक्षरता हैं. कम साक्षरता दर वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक को भी शामिल किया गया है.

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