Kanshi Ram Birthday:  बहुजन समाज पार्टी की नींव रखने वाले और दलितों के मसीहा कहे जाने वाले कांशीराम (Kanshiram) का आज जन्मदिन हैं. लेकिन कांशीराम के जन्मदिन पर बीएसपी कोई आयोजन नहीं कर है. दरअसल यूपी विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बहुजन समाज पार्टी के भीतर काफी मायूसी है. इसलिए कांशीराम का जन्मदिन भी इस बार काफी फीका हो गया है.   


मायावती नें कांशीराम की जयंती पर श्रद्धांजली दी


हालांकि बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने लखनऊ में पार्टी के संस्थापक कांशीराम को उनती जयंती पर श्रद्धांजली अर्पित की. इस दौरान उनके साथ बीएसपी के कई नेता मौजूद रहे लेकिन सभी के चेहरे उदास नजर आए क्योंकि विधानसभा चुनाव में महज एक सीट मिलना काफी निराशाजनक है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या पार्टी को अब कांशीराम की भारी कमी खल रही है.



पंजाब के रूपनगर में हुआ था कांशीराम का जन्म


बता दें कि कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर (आज रोपड़ जिला) में हुआ था. उन्होंने 1956 में रोपड़ के शासकीय महाविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल की थी. इसके बाद वह पुणे की गोलाबारूद फैक्ट्री में क्लास वन ऑफिसर के पद पर नियुक्त हुए थे. लेकिन प्रशासन में रहने के दौरान उन्होंने जातिगत आधार पर काफी भेदभाव महसूस किया. इस दौरान डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर छुट्टी की मांग करने पर एक दलित कर्मचारी के साथ हुए भेदभाव ने उन्हें भीतर तक झकझोर कर रख दिया. इसी के बाद वे दलितों के लिए संघर्ष करने के लिए उठ खड़े हुए.


14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का किया था गठन


14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया. वे दलितों को सशक्त बनाना चाहते थे और उनके पिछड़ेपन को दूर कर उन्हें मजबूत बनाना चाहते थे. काशीराम का मानना था कि सरकार बनाकर और सरकारी नौकरियों में ऊंचे पदों पर काबिज होकर ही दलित समुदाय का उत्थान हो सकता है. इसी विचार को लेकर उन्होंने बामसेफ संगठन के जरिए दलितों को संगठित करना शुरू किया था. धीरे-दीरे बामसेफ से लाखों लोग जुड़ गए थे.


मायावती को बनाया सीएम


काशीराम अब सक्रीय राजनीति में आ चुके थे. उन्होने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन कर डीएस4 का उसमें विलय किया और राजनीति में शीर्ष पर पहुंचने के लिए संघर्ष भी शुरू कर दिया. इस दौरान वे खुद को बामसेफ से अलग कर चुके थे. और पूरी तरह बसपा को आगे बढ़ाने में जुट गए थे. इस दौरान उन्हें मायावती का साथ मिला. और फिर वे यूपी में दलित महिला को सीएम की कुर्सी पर काबिज करने में जुट गए. उनका से सपना पूरा हुआ भाजपा के समर्थन से वे मायावती को मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहे., 2007 में बहुजन समाज पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी. 6 अक्टूबर 2006 को कांशीराम ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. तब से मायावती बीएसपी की बागडोर जरूर संभाल रही हैं लेकिन वे कांशीराम के कद तक नहीं पहुंच सकीं.


योगी राज-2 में आपको क्या-क्या मिलेगा, बीजेपी ने महिलाओं, बुजुर्गों और किसानों के लिए किए हैं ये वादे


मायावती के नेतृत्व में बीएसपी कांशीराम की विचारधारा की लाइन से भटकी


मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी आगे तो बढ़ी लेकिन कांशीराम की विचाधारा की लाइन से भटक सी गई. दरअसल मायावती के सीएम बनने के बाद पार्टी केवल सोशल इंजीनियरिंग तक ही सीमित रह गई. यहां तक कि बहुजन हिताय के नारे की जगह सर्वजन हिताय ने ले लिया जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. किसी समय सत्ताधारी ताकतवर पार्टी मानी जाने वाली बसपा अब हर चुनाव में अपना जनाधार कम होते हुए देख रही है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने 19 सीटें जीती थीं और वोट प्रतिशत 22 फीसदी था. वहीं 2022 में हुए विधानसभा चुनाव हैं. जहां 403 सीटों में से बसपा महज एक सीट ही बचा पाई. और पार्टी का वोट प्रतिशत सिर्फ 12.9 रहा. बहरहाल बहुजन समाज पार्टी का ये हाल अब कांशीराम की कमी को महसूस कर रहा है.  


ये भी पढ़ें


अखिलेश यादव का दावा- यूपी विधानसभा चुनाव में इस वजह से जनता ने BJP को दिया वोट