Rishikesh News: भारत में तेजी से बढ़ती शहरीकरण की रफ्तार और उपभोक्तावादी संस्कृति ने देश के विभिन्न हिस्सों में कचरे के पहाड़ खड़े कर दिए हैं. इनमें ऋषिकेश का नाम भी शामिल हो चुका है, जो योग, अध्यात्म और शांति के लिए प्रसिद्ध है. शिवालिक की गोद में बसा यह शहर, जहां गंगा नदी प्रवाहित होती है, आज कचरे के पहाड़ से जूझ रहा है. यह समस्या न केवल पर्यावरण को प्रभावित कर रही है, बल्कि यहां के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवेश पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है.
ऋषिकेश में गंगा नदी से मात्र 70 मीटर की दूरी पर स्थित 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़ अब स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है. इस पहाड़ में सैकड़ों टन कचरा इकट्ठा हो चुका है. ऋषिकेश, जहां लोग शांति और प्रकृति का अनुभव करने आते हैं, अब कूड़े के ढेर के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है. पिछले 22 वर्षों में यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, और इसके समाधान के प्रयास न के बराबर रहे हैं.
शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने समस्या को और विकराल बना दिया है. नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की कचरा प्रबंधन योजनाओं की कमी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है. जहां अन्य राज्य जैसे गुजरात और तमिलनाडु ने अपने कचरा निस्तारण में सराहनीय प्रगति की है, वहीं उत्तराखंड इस दिशा में पीछे है. ऋषिकेश में गंगा किनारे कचरे का जमा होना पर्यावरणीय संकट का संकेत है, जो जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रहा है.
पिछले कुछ वर्षों में "मोबाइल संस्कृति" ने पर्यटन को एक अलग दिशा दी है. बर्फबारी में तस्वीरें खींचना और गर्मियों में पहाड़ों पर मैगी खाते हुए पोस्ट करना नई परंपरा बन गई है. लेकिन इन पर्यटन गतिविधियों के दौरान उत्पन्न कचरे का प्रबंधन नहीं किया जाता. गंगा किनारे राफ्टिंग और कैंपिंग करने आने वाले पर्यटक अक्सर बिना सोचे-समझे प्लास्टिक, पैकेजिंग और अन्य अपशिष्ट वहीं छोड़ देते हैं, जिससे समस्या और विकराल हो जाती है.
ऋषिकेश में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनने की प्रक्रिया
केंद्र सरकार ने कचरा प्रबंधन के लिए 3,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की थी. इसके तहत राज्यों को सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता थी. लेकिन उत्तराखंड जैसे राज्यों में यह पहल धीमी गति से आगे बढ़ रही है. ऋषिकेश में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लालपानी में बनने की प्रक्रिया में है, लेकिन यह कब तक पूरी होगी, इस पर कोई ठोस जानकारी नहीं है.
भारत में प्रतिदिन लगभग 5 लाख टन कचरे का उत्पादन
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 5 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है. इनमें से अधिकांश कचरे का प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया जाता. देश भर में 15,000 एकड़ भूमि कचरे के पहाड़ों से घिरी हुई है. अगर इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं हुआ, तो यह भूमि, पानी और हवा को प्रदूषित करती रहेगी.
ऋषिकेश अध्यात्म और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक
ऋषिकेश केवल एक शहर नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है. यहां गंगा की पवित्रता और शिवालिक की प्राकृतिक सुंदरता लोगों को आकर्षित करती है. लेकिन कचरे के पहाड़ इस पवित्र शहर की छवि को धूमिल कर रहे हैं.
1. स्थानीय प्रशासन की भूमिका: कचरा संग्रहण और प्रबंधन को वैज्ञानिक तरीकों से लागू करना अनिवार्य है.
2. पुनर्चक्रण (Recycling): प्लास्टिक और अन्य नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे के पुनर्चक्रण की व्यवस्था की जानी चाहिए.
3. पर्यटकों की जिम्मेदारी: पर्यटकों को कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए.
4. सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय नागरिकों और एनजीओ को इस समस्या के समाधान में शामिल करना आवश्यक है.
5. सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन: केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए.
गुजरात और तमिलनाडु ने कचरा प्रबंधन में जो प्रगति की है, उसे उत्तराखंड के लिए उदाहरण बनाना चाहिए. गुजरात ने दिल्ली जितना कचरा तीन वर्षों में समाप्त कर दिया है. इसी तरह, उत्तराखंड को भी ठोस कार्ययोजना बनानी होगी.
पर्यावरण संरक्षण के लिए एक गंभीर चेतावनी
ऋषिकेश में 52 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़ केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे हिमालय और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक गंभीर चेतावनी है. अगर इस समस्या को अभी से नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में यह संकट और गहराएगा. ऋषिकेश को कचरे के पहाड़ से बचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी गंगा की पवित्रता और हिमालय की सुंदरता का अनुभव कर सकें.
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