Uttarakhand News: उत्तराखंड में बाघों की मौत के मामलों में इस साल उल्लेखनीय कमी आई है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के अनुसार, 2024 में अब तक केवल आठ बाघों की मौत दर्ज की गई है, जो पिछले साल की 21 मौतों की तुलना में 61.90 प्रतिशत कम है. इसके अलावा, इस साल शिकार का कोई मामला सामने नहीं आया है, जो संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाता है.


2023 में राज्य में बाघों की मौत के मामलों ने वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणवादियों को चिंतित कर दिया था. जनवरी से दिसंबर तक कुल 21 बाघों की मौत हुई थी. इनमें प्राकृतिक मौतों के अलावा शिकार के मामले भी सामने आए थे. जुलाई और सितंबर में कुमाऊं क्षेत्र से तीन बाघों की खाल बरामद हुई थी. इनमें से एक खाल की लंबाई 11 फीट तक थी, जो अवैध शिकार के संगठित रैकेट की ओर इशारा करती है.


बीते 12 सालों में उत्तराखंड में 132 बाघों की हुई मौत
इस साल हालांकि स्थिति में सुधार हुआ है. 2024 में अब तक आखिरी बाघ की मौत का मामला सितंबर में सामने आया. वन विभाग और सुरक्षा एजेंसियों ने पेट्रोलिंग और मॉनिटरिंग को बेहतर बनाया है, जिससे शिकार की घटनाओं पर रोक लगाई गई है. 2012 से लेकर सितंबर 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में कुल 132 बाघों की मौत हुई है. इस दौरान राज्य बाघों की मौत के मामले में देशभर में चौथे स्थान पर रहा. मध्य प्रदेश में इस अवधि में सबसे अधिक 365 मौतें दर्ज की गईं.


साल 2023 में तीन बाघों की खाल को बरामद किया गया 
शिकार के मामलों में वन विभाग की चुप्पी अब भी सवालों के घेरे में है. 2023 में बरामद तीन बाघों की खालों के शिकार स्थलों का अब तक खुलासा नहीं किया गया है. इसी तरह, 2022 में भी दो बाघों की खाल बरामद की गई थी, लेकिन शिकार कहां हुआ, यह जानकारी नहीं दी गई. बाघों की अप्राकृतिक मौतों को रोकने के लिए वन विभाग ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. पेट्रोलिंग और निगरानी को बेहतर बनाया गया है, साथ ही बाघों के वास स्थलों में सुधार के प्रयास किए गए हैं. प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) रंजन मिश्रा ने बताया कि अगर बाघों को जंगल में भोजन और सुरक्षा मिलती है, तो वे जंगल से बाहर कम आएंगे. इसके अलावा, इको टूरिज्म से जुड़े लोग भी संरक्षण में मदद कर रहे हैं.


संरक्षण के प्रयासों से मिली सफलता
इस साल बाघों की मौत में आई कमी संरक्षण के प्रयासों की सफलता को दिखाती है. शिकार रोकने और बाघों के प्राकृतिक वास स्थल को सुरक्षित करने के प्रयासों का असर साफ नजर आ रहा है. हालांकि, पिछले साल के शिकार मामलों की जांच पूरी होने और शिकार स्थलों का खुलासा होने पर ही वन विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर संतोषजनक स्थिति बन सकेगी.


उत्तराखंड में बाघ संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदमों का सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. हालांकि, वन्यजीव शिकार के मामलों में पारदर्शिता और ठोस कार्रवाई अब भी चुनौती बनी हुई है. बाघों की संख्या बनाए रखने और उनके संरक्षण के लिए यह आवश्यक है कि इन प्रयासों को लगातार जारी रखा जाए.


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