Ankita Murder Case: अंग्रेजों के जमाने की राजस्व पुलिस व्यवस्था को 1915 में संयुक्त प्रान्त के उप राज्यपाल के प्रशासनिक आदेश से क़ानूनी रूप मिला था. उत्तराखंड एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां आज भी राजस्व विभाग के कर्मचारी और अधिकारी, जैसे- पटवारी, लेखपाल, कानूनगो और नायब तहसीलदार आदि पुलिस का काम करते हैं. लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद एक फिर अंग्रेजों द्वारा लागू किये गए रेवेन्यू पुलिस सिस्टम पर सवाल उठने लगे हैं.


उत्तराखंड के 60 % इलाकों में आज भी कोई पुलिस थाना या पुलिस चौकी नहीं है. यानी राज्य का आधे से ज्यादा क्षेत्र उत्तराखंड पुलिस के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, उन इलाकों की सुरक्षा अंग्रेजों के जमाने के रेवेन्यू पुलिस सिस्टम के हवाले हैं. जिन क्षेत्रों में यह व्यवस्था लागू है, वहां राजस्व विभाग के कर्मचारी और अधिकारी रेवेन्यू वसूली के साथ-साथ पुलिस का काम भी करते हैं.


किसी भी तरह का अपराध होने पर पटवारी, लेखपाल, कानूनगो और नायब तहसीलदार आदि FIR लिखते हैं. इन्हें के जिम्मे जांच-पड़ताल और अपराधियों की गिरफ्तारी का काम भी होता है. जबकि इन्हें पुलिसिंग के काम के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं मिली होती. न ही इस काम को करने के लिए पर्याप्त संसाधन मिलता है. हथियार तो दूर की बात है राजस्व पुलिस के पास लाठी तक नहीं होता.


क्यों लागू की गई थी राजस्व पुलिस की व्यवस्था?


1857 के सैन्य विद्रोह के घबराए अंग्रेजों को महसूस हुआ कि जनता पर प्रशासनिक शिकंजा मजबूत करने की जरूरत है. उन्होंने साल 1861 में ‘पुलिस ऐक्ट’ लागू किया.


मैदानी इलाकों को तो पुलिस व्यवस्था शुरू हो गयी लेकिन रिमोट पहाड़ी इलाकों में यह व्यवस्था नहीं बन पाई. वैसे भी मैदान की तुलना में पहाड़ी क्षेत्रों में अपराध कम है. दूसरा यह कि अंग्रेज पहाड़ों में पैसा खर्च नहीं करना चाहते थे. उन्होंने रेवेन्यू वसूली के लिए जाने वाले अधिकारियों को ही पुलिस के अधिकार दे दिए. मुल्क आजाद होने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस व्यवस्था को सघनता से लागू किया. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया से उत्तराखंड का यह हिस्सा अछूता रहा.


राजस्व पुलिस का मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा


राजस्व पुलिस का मामला जब उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य का एक बड़ा हिस्सा राजस्व पुलिस के कारण नियमित पुलिस व्यवस्था से वंचित है. पूरे राज्य को आधुनिक पुलिस के दायरे में आना होगा. साल 2018 में हाईकोर्ट ने राजस्व पुलिस की व्यवस्था को पूरी तरह खत्म करने का आदेश दिया था. जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने छह महीने के भीतर राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त कर सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में लाने का आदेश दिया था. आदेश के इतने साल बाद भी उस दिशा में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई है.


क्यों मुश्किल है बदलाव?


रिमोट पहाड़ में भले ही पुलिस न हो लेकिन राजस्व व्यवस्था है. क्योंकि हर एक दो या तीन गांव मिलकर एक पटवारी सर्किल है जो तमाम कानूनों के तहत पुलिस की शक्तियों का उपयोग करता है. मुकदमा करता है, विवेचना करता है, चार्जशीट दाखिल करता है, अभियुक्तों की गिरफ़्तारी कर जेल भेजता है.


बदलाव में मुश्किल यह है कि कम आबादी के छोटे छोटे गांवों के लिए पुलिस स्टेशन का निर्माण, वाहनों की खरीद, गांव तक बीट पुलिसिंग के लिए बड़ी संख्या में मानव संसाधन पर खर्च होने वाला सैकड़ों करोड़ रूपये कहां से आये. अभी तो एक पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार और तहसीलदार मूल वेतन में ही दोनों काम कर रहे हैं. हालांकि पिछले दस वर्षों में पहाड़ में ज्यादातर रोडहेड रेगुलर पुलिस को शिफ्ट किये गए है.


हालांकि जो लोग राजस्व पुलिस खत्म कर रेगूलर पुलिस को दिए जाने की हिमायत कर रहे है उनके समाने भी ऐसे सैकड़ों उदहारण है जब सुचना देने के बावजूद सिविल पुलिस ने मुकदमा दर्ज़ नहीं किया, कार्रवाई नहीं की, न्याय दिलाने की कोशिश नहीं की. 


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