Uttarakhand Assembly Session: उत्तराखंड में स्वतंत्रता दिवस के साथ-साथ आगामी 23 अगस्त से होने वाले विधानसभा सत्र की तैयारी भी समानांतर रूप से चल रही हैं. इस बार सदन के भीतर का नज़ारा बदला बदला सा होगा. नेता सदन के तौर पर नए मुख्यमंत्री होंगे तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में सरकार से टकराने के लिए इस बार प्रीतम सिंह होंगे. प्रजातंत्र के इस मंदिर में संसदीय कार्यमंत्री समेत तीन नए मंत्री मंत्रियों को भी विपक्ष के सवालों से जूझना पड़ेगा. हमेशा बड़बोलेपन के चलते सुर्ख़ियों में रहने वाले बंशीधर भगत के संसदीय कौशल की भी परीक्षा होगी. सब सवालों के सटीक जवाब उचित समय पर पहुंच जाएं इसके लिए नए मुख्य सचिव डॉ सुखबीर सिंह संधू को भी नई सरकार के लिए अलग से होमवर्क करना होगा.


पुष्कर सिंह धामी नए नेता सदन यानि मुख्यमंत्री 


पिछले मार्च से अभी तक भाजपा ने अपनी ही सरकार में दो बार परिवर्तन किया. भारी विरोध के बाद मार्च महीने की 10 तारीख़ को त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन वो इतने कम समय मुख्यमंत्री रहे कि विधानसभा का सत्र बुलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी. इसके बाद जुलाई महीने की 4 तारीख़ को किन्हीं कारणों से तीरथ सिंह रावत को हटाकर उनके स्थान पर दूसरी बार के युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. धामी अभी तक पांच साल विपक्ष में बैठकर अपने क्षेत्र की समस्याओ को उठाते रहे और फिर पिछले साढ़े चार साल में सदन के भीतर वह सामान्य विधायक के तौर पर मुद्दे उठाते रहे हैं. लेकिन अब उन्हें नेता सदन के तौर पर इस सत्र को न केवल संचालित करना है बल्कि विपक्ष के सवालों की बौछार का संसदीय तरीके से जवाब भी देना है. क्योंकि अब सदन के भीतर वो कुछ भी कहेंगे वही सरकार की तरफ से आश्वासन होगा. इसलिए बहुत जल्द ही उनके संसदीय कौशल की परीक्षा होने जा रही है. वरिष्ठों की ट्रेजरी बेंच (मंत्रीगण) को साथ लेकर चलने की कसरत अलग से करनी होगी.


प्रीतम सिंह नये नेता प्रतिपक्ष 


लगभग साढ़े चार साल तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में सदन के भीतर सरकार की घेराबंदी करती रहीं इंदिरा हृदेश का निधन होने के चलते अब यह जिम्मेदारी कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को दी है. प्रीतम चकराता से विधायक हैं और हाल के दिनों तक प्रदेश अध्यक्ष थे. मंत्री और विधायक रहते सदन के भीतर पेश आने का उनके पास व्यापक अनुभव है लेकिन बतौर नेता प्रतिपक्ष पहली बार सदन में बल्लेबाजी करने के लिए उतरेंगे. मात्र दस विधायक वाले विधानमंडल दल में भी कई लोग उन्हें इस पद पर देखना नहीं चाहते थे लेकिन नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रीतम सिंह को खुद को साबित करने के लिए कुछ अलग रणनीति बनानी होगी.


बंशी, चुफाल और स्वामी नए मंत्री


इस बार विधानसभा में तीन नए मंत्री होंगे. संसदीय कार्यमंत्री के रूप में बंशीधर भगत को अपने बड़बोलेपन से नहीं बल्कि अपने संसदीय कौशल से सरकार का संरक्षण करना होगा और सवालों का उचित जवाब देना होगा. दूसरे नए मंत्री बिशन सिंह चुफाल है, वैसे तो वह पहले भी मंत्री रह चुके है लेकिन अभी नए होने के चलते उन्हें भी विपक्ष से दो चार होना है. दूसरी बार के विधायक स्वामी यतीश्वरानंद वैसे तो विपक्ष में खूब हंगामा करते रहे लेकिन अब जवाबदेही बन गयी है, जिम्मेदारी निभानी होगी अन्यथा सरकार की किरकिरी होना तय है. क्योंकि उनके पास भी ग्राम्य विकास जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विभाग है जिनके सवालों के जवाब विपक्ष को न केवल देने होंगे बल्कि संतुष्ट भी करना होगा.


संसदीय कार्य मंत्री कौशिक की कमी खलेगी 


वैसे तो मदन कौशिक सदन में रहेंगे लेकिन सामान्य विधायक की तरह क्योंकि सत्ता परिवर्तन के समय उन्होंने मंत्री पद छोड़कर भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनना ज्यादा ठीक समझा. वर्ना संसदीय कार्यमंत्री के तौर सदन के भीतर कौशिक ने शानदार प्रदर्शन किया है. विपक्ष के सारे वार वह खुद झेलते थे और सभी विषयों पर उनकी मजबूत पकड़ उनके संसदीय कौशल को भी मजबूती प्रदान करती थी. लेकिन इस बार वह केवल विधायक के तौर पर ही सदन में हिस्सा लेंगे.


डॉ सुखबीर सिंह संधू नए मुख्य सचिव 


प्रजातंत्र में एक मोर्चा नौकरशाही का भी होता है. यदि यहां ठीक काम नहीं होता तो सत्तारूढ़ दल के नेताओं को भुगतना पड़ता है. क्योंकि सत्र से पहले मंत्रियों को ब्रीफ करने का काम विभागों के प्रमुख सचिव और सचिव करते हैं. इन सभी की मॉनिटरिंग मुख्य सचिव को करनी होती है. कई बार अधूरी तैयारी के चलते मंत्री सदन के भीतर सरकार की फजीहत करा देते हैं. मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री से जुड़े प्रकरण भी देखने होते हैं. इसलिए इस सत्र में नए मुख्य सचिव का इम्तिहान भी होना है. जैसे उन्होंने आते ही आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के पेच कसने के अलावा पूरे सिस्टम को काफी हद तक पटरी पर ला दिया है उसी तरह से विधानसभा सत्र से जुड़ा अपना होमवर्क समय से पूरा करना होगा.


जो थे नेता सदन, वो सामान्य विधायकों के बीच बैठेंगे


जैसा कि सभी जानते है कि अभी तक के सभी विधानसभा सत्रों में त्रिवेंद्र सिंह रावत बतौर मुख्यमंत्री नेता सदन भी थे. लेकिन अब मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद वह सामान्य विधायक ही रह गए हैं. सदन के भीतर नेता सदन के बैठने का एक निश्चित स्थान होता है, और विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री और बाकी विधायकों में कोई फर्क नहीं होता, इसलिए अब वह सामान्य विधायक की हैसियत से ही विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे. अब उन्हें ट्रेजरी बेंच से बाहर आम विधायकों के बीच बैठना होगा.


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