देहरादून: आयुर्वेद बनाम एलोपैथ की बहस के एक नया मोड़ लेने के बीच उत्तराखंड सरकार ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों को मरीजों को आपात स्थिति में चुनिंदा एलोपैथिक दवाएं लिखने की अनुमति देने का फैसला किया है. आयुष मंत्री हरक सिंह रावत ने उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम से इतर यह घोषणा की. उन्होंने कहा कि यह फैसला राज्य के दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के हित में किया गया है. ऐसे इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ज्यादातर आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं.


रावत ने कहा कि उत्तराखंड में करीब 800 आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं और लगभग इतनी ही संख्या में आयुर्वेदिक औषधालय हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में हैं. उन्होंने कहा कि इस फैसले के लिए उत्तर प्रदेश भारतीय चिकित्सा अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता है और इससे आपदा और दुर्घटना संभावित पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद हो सकेगी, जो उचित स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं.


आईएमए ने इसे 'अवैध' ठहराया


उनकी इस घोषणा पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), उत्तराखंड ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे 'अवैध' ठहराया. आईएमए, उत्तराखंड के सचिव अजय खन्ना ने कहा, "यह अवैध है और 'मिक्सोपैथी' की श्रेणी में आता है." उन्होंने कहा कि 'मिक्सोपैथी' आपात स्थिति में मरीजों को नुकसान ही पहुंचाएगी. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने इस संबंध में स्पष्ट टिप्पणी की है. आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकते क्योंकि वे इसके लिए पात्र नहीं हैं. उन्होंने सवाल किया, ''एलोपैथी के बारे में जाने बिना आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं कैसे लिख सकते हैं?"


हालांकि, भारतीय चिकित्सा परिषद, उत्तराखंड के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ डॉक्टर जेएन नौटियाल ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य की 80 प्रतिशत आबादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है और उन्हें इससे काफी फायदा होगा. इस घोषणा पर आईएमए की प्रतिक्रिया को लेकर नौटियाल ने कहा, ''आईएमए दोहरा मापदंड अपना रहा है. आयुष डॉक्टर अस्पतालों के आईसीयू और आकस्मिक वार्ड में काम करते हैं. उससे आईएमए को कोई परेशानी नहीं है. लेकिन अब, जब किसी फैसले से पर्वतीय इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों को फायदा होने वाला है तो उन्हें परेशानी है.''


पिछले महीने शुरू हुई थी आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की बहस


उल्लेखनीय है कि देश में आयुर्वेद बनाम एलोपैथी की बहस पिछले महीने शुरू हुई जब योग गुरु रामदेव ने कोविड-19 के इलाज में एलोपैथिक दवाओं के प्रभावी होने को लेकर सवाल उठाया. उसके बाद आईएमए की उत्तराखंड इकाई ने योगगुरु को मानहानि नोटिस दिया और 1,000 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की.


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