Uttarakhand Politics: वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) के मुद्दे पर देशभर में बहस छिड़ गई है. केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है. मोदी सरकार के अप्रत्याशित कदम पर सियासी प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं. उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा (Congress President Karan Mahara) का भी बयान सामने आया है. उन्होंने फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना तैयारी एक देश एक चुनाव की आखिर सरकार को अचानक जरूरत क्यों पड़ गई?  माहरा ने कहा कि वैसे वन नेशन वन इलेक्शन का मुद्दा नया नहीं पुराना है. लेकिन ऐसा लगता है कि बीजेपी इंडिया गठबंधन से डरी हुई है.


वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या बोले करन माहरा? 


वन नेशन वन इलेक्शन को मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लाया जा रहा है. माहरा ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार संसदीय परंपराओं को तोड़ रही है. विशेष सत्र बुलाने के लिए सरकार को सभी विपक्षी पार्टियों से अनौपचारिक तौर पर बात करनी चाहिए थी. उन्होंने बताया की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई.


कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए संविधान संशोधन बिल लाना होगा. संविधान संशोधन बिल को मंजूर किए जाने के बाद इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. माहरा ने कहा कि मुद्दा पहले भी सामने चुका है. 1999, 2015 और 2018 में तीन बार लॉ कमीशन वन नेशन इलेक्शन मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट सौंप चुका है. इससे पूर्व 2016 में संसदीय समिति भी अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे चुकी है. 2018 में मामला सामने आने पर केंद्र सरकार ने विधि आयोग को जिम्मेदारी दी थी.


विधि आयोग की ओर से पूरा रोडमैप तैयार किया गया है. उन्होंने कहा कि जब पहले पूरे देश में एक चुनाव हुआ करते थे तब देश की जनसंख्या भी कम थी. आज देश की जनसंख्या विकराल रूप ले चुकी है. ऐसे में सरकार का फैसला कितना सार्थक साबित होगा, सोचनेवाली बात है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि लॉ कमीशन अपनी रिपोर्ट में पहले ही कह चुका है कि यदि एक देश एक चुनाव होता है तो चुनाव के दौरान होने वाले खर्चे में व्यापक स्तर पर इजाफा होगा. माहरा ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के मद्देनजर सवाल किया कि क्या हम इसके लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ समन्वित करने के लिये विधानसभाओं के कार्यकाल को घटाना और बढ़ाना पड़ेगा.


'संघीय ढांचे के विपरीत साबित हो सकता है फैसला'


इसके लिये संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन की आवधारणा संघीय ढांचे के विपरीत साबित हो सकती है. इसके अलावा अतिरिक्त चुनाव पर खर्च भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारणों में सबसे ऊपर है. माहरा ने कहा कि एक देश एक चुनाव करने के लिए सबसे बड़ी कमी संसाधनों की आएगी. वर्तमान में प्रत्येक मतदान केंद्र पर एक EVM का उपयोग एक VVPAT मशीन के साथ किया जा रहा है. लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर संख्या दोगुनी हो जाएगी. अतिरिक्त मतदान कर्मियों के साथ बेहतर और चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी और यह काम केंद्रीय पुलिस बलों की संख्या बढ़ाए बिना करना संभव नहीं है.


एक साथ इतनी बड़ी संख्या में EVM और VVPAT मशीनों को सुरक्षित रखना भी एक बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि निर्वाचन आयोग को वर्तमान में  EVM और VVPAT मशीन सुरक्षित रखने की समस्या से जूझना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि जब चुनाव का समय नजदीक आता है तो मंत्रियों सहित पूरा सरकारी अमला बेहद व्यस्त हो जाता है. इसके साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य भी ठप पड़ जाते हैं. व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की आवश्यकता है. इसके तहत जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, कालेधन पर रोक, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल है.


इसके लिये आम सहमति बनाने की जरूरत है कि क्या राष्ट्र को एक देश-एक चुनाव की जरूरत है या नहीं. सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर होने वाली बहसों में सहयोग करना चाहिये. इसके बाद ही जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है. माहरा ने कहा कि लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है. ऐसे में जनता की राय को जानना बहुत जरूरी है. एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते भारत इसके बाद लिये गए किसी भी फैसले पर अमल कर सकता है.


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