Corbett National Park News: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर के पास स्थित कॉर्बेट नेशनल पार्क को 1936 में स्थापित किया गया था. अंग्रेजों के जमाने में इसे 1936 में स्थापित करते वक्त का इसका नाम हेली नेशनल पार्क रखा गया था. वहीं कॉर्बेट नेशनल पार्क को स्थापित किए 87 साल पूरे हो चुके हैं. कॉर्बेट नेशनल पार्क को स्थापित करने का मकसद उस समय तेजी से घट रही बाघों की संख्या को काबू करना था. लगातार कम हो रही बाघों की संख्या को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने इस नेशनल पार्क की स्थापना करते समय तत्कालीन गवर्नर हेली के नाम पर इसका नाम हेली नेशनल पार्क रखा था.


आजादी के बाद इसे गंगा नेशनल पार्क के नाम से जाना गया और यहां पर बाघों के संरक्षण के लिए काम शुरू किया गया जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं. कुछ समय बाद 1957 में गंगा नेशनल पार्क का नाम बदलकर कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया. अंग्रेज अफसर जिम एडवर्ड कॉर्बेट के नाम पर इसका नाम कॉर्बेट नेशनल पार्क रखा गया. बता दें कि जिम एडवर्ड कॉर्बेट बाघों के संरक्षण के लिए काम करते थे और स्थानीय लोगों में काफी प्रसिद्ध थे.


कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 260 बाघ मौजूद


दुनिया के किसी भी टाइगर रिजर्व से ज्यादा बाघ जिम कॉर्बेट पार्क में पाए जाते हैं, इसे बाघों का प्रजनन केंद्र भी माना जाता है. मौजूदा वक्त में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 260 बाघ मौजूद हैं. प्रोजेक्ट टाइगर के शुरू होने से अब तक लगातार कॉर्बेट पार्क में बाघों की संख्या बढ़ती जा रही है. यहां पर पक्षियों की 500 से ज्यादा प्रजातियां हैं. वहीं वनस्पति की अगर बात करें तो 488 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़ यहां पर पाए जाते हैं. इसके साथ ही यहां 12 सौ से ज्यादा हाथी, तो वहीं हजारों की संख्या में हिरणों की अलग-अलग प्रजातियां पाई जाती हैं.


बाघों को देखने पहुंच रहे पर्यटक


यहां सालाना लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं. पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या को देख यहां पर नए-नए टूरिस्ट जोन खोले जा रहे हैं. कॉर्बेट पार्क में एक ओर जहां बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो वहीं इनकी बढ़ती संख्या कॉर्बेट पार्क में हर साल मानव-वन्यजीव संघर्ष में होने वाली इंसानों की मौत चिंता का विषय भी बनती जा रही है. फिलहाल संघर्ष रोकने के लिए कई प्रकार के उपाय पर प्रशासन कर रहा है लेकिन जिस तरह से यहां पर बाघों की सुरक्षा को लेकर इंतजाम किए जाते हैं उसे लगातार बाघों की संख्या बढ़ती जा रही है.


बाघों की सुरक्षा के लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एसओजी की भी स्थापना की गई है, जो कॉर्बेट पार्क में घुसने वाले शिकारियों पर नजर रखती है तो वहीं जल्दी ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की भी स्थापना होने वाली है जिससे बाघों की सुरक्षा और कड़ी हो सकेगी.


पर्यटकों के लिए बनाए गए 5 जोन


वहीं स्थानीय लोगों का मानना है कि बाघों की सुरक्षा के साथ-साथ इंसानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी कॉर्बेट पार्क की बनती है. इसलिए कॉर्बेट पार्क कुछ ऐसा करें जिससे बाघ जंगलों से बाहर ना आए लेकिन आपको बता दें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या जिस तरह से लगातार बढ़ती जा रही है उससे बाघों को जंगल के अंदर सीमित रख पाना बहुत मुश्किल है. ऐसे में मानव और वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ जाती हैं.


फिलहाल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यटन को लेकर भी काम किया जा रहा है. यहां आने वाले पर्यटक कॉर्बेट पार्क में डे विजिट के साथ-साथ इसके विभिन्न जोन में रात के समय आराम भी कर सकते हैं इनमें ढेला जोन, झिरना जोन, बिजरानी जोन, गर्जिया जोन और ढिकाला जोन शामिल हैं. जहां पर पर्यटकों को रात्रि विश्राम की सुविधा प्रदान की जाती है. इसमें ढिकाला जोन सबसे ज्यादा फेमस है, जहां पर पर्यटक रात्रि विश्राम करना चाहते हैं. देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी एक दिन ढिकाला जोन में बिताया था. वहीं देश के अन्य राज्यों से आने वाले तमाम वीवीआईपी भी ढिकाला जोन घूमना पसंद करते हैं.


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