Uttarakhand Corbett National Park: उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में मौजूदा समय में कोर और बफर जॉन मिलाकर कुल 260 बाघ यानी टाइगर मौजूद है. जबकि कॉर्बेट पार्क का कुल क्षेत्र 1288 किलो मीटर है. यहां एक टाइगर की टेरिटरी 3 से 5 किलोमीटर की हो गई है. जब की बाघ की अमूमन टेरिटरी 20 से 25 किलोमीटर मानी जाती है. कॉर्बेट पार्क में ये सब क्यों हो रहा है, इसकी वजह भी सामने आई है. कर्बेट पार्क में बाघों की संख्या क्षमता से कहीं अधिक हो चुकी है. जबकि कॉर्बेट नेशनल पार्क की बाघों की धारण क्षमता 120 से लेकर 160 के बीच है. ऐसे में लगातार बाघों की बढ़ती संख्या बाघों के व्यवहार में बदलाव ला रही है.


कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के आतंक को लेकर लोग बेहद परेशान है. कॉर्बेट नेशनल पार्क के आसपास के गांव में बाघों के द्वारा लगातार इंसानों को निशाना बनाया जा रहा है. इसको लेकर न केवल इंसान बल्कि कॉर्बेट नेशनल पार्क और वन विभाग के अधिकारी भी बेहद परेशान है. लेकिन ये लंबे समय तक काम नहीं कर पाएगा. इसके लिए एक बड़े शोध की जरूरत है .जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के द्वारा किया जा रहा है. इसमें बाघों के बदलते स्वभाव और कॉर्बेट पार्क में केयरिंग कैपेसिटी यानी धारण क्षमता को लेकर शोध किया जा रहा है.


भारत का पहला नेशनल पार्क कॉर्बेट
कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का सबसे पुराना नेशनल पार्क है. 1937 में इसकी स्थापना हेली नेशनल पार्क के रूप में हुई थी. जिसे बाद में आजादी के बाद गंगा नेशनल पार्क बना दिया गया. लेकिन बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाले एक अंग्रेज अफसर जिम कॉर्बेट के नाम पर बाद में इसे तब्दील कर जिम कॉर्बेट पार्क बना दिया गया. कॉर्बेट नेशनल पार्क में शुरू से ही बाघों के संरक्षण के लिए बेहतरीन काम होता रहा है. जिसका नतीजा है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का इकलौता नेशनल पार्क है जहां पर सबसे ज्यादा बाघों की संख्या पाई जाती है. 


'टाइगरों पर हो रहा शोध'
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर धीरज पांडे से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि यह बात सही है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क का 1288 स्क्वायर किलोमीटर का क्षेत्र इन बाघों के लिए काम पड़ता जा रहा है. इसको लेकर के भारतीय वन्य जीव संस्थान एक शोध कर रहा है. शोध का परिणाम सामने आने के बाद ही इस विषय पर कुछ किया जा सकता है. अमूमन देखा जाता था कि टाइगर टेरिटरी के लिए लड़ाई लड़ते थे और इसमें उनकी मौत हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है. अब बाघ झुंड बनाकर शिकार कर रहें है. बाघों का बदलता स्वभाव एक बड़ी चिंता का विषय है. यह अपने आप में एक शोध का विषय है.


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