Ayurveda University Registrar: भ्रष्टाचार के आरोपी अफसर को बहाल करके प्राइम पोस्टिंग देने के मामले में उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार सवालों के घेरे में आ गयी है. विजिलेंस ने शासन को लिखे पत्र में कहा है कि आयुर्वेद विवि के कुलसचिव के पद पर मृत्युंजय मिश्रा की पोस्टिंग उचित नहीं है. क्योंकि मिश्रा के खिलाफ जांच के बाद केस अदालत में ट्रायल पर है. इस मुक़दमे में गवाह भी आयुर्वेद विवि के अधिकारी हैं. ऐसे में यदि मिश्रा यहां कुलसचिव रहेंगे तो गवाहों पर दबाव बनाने की आशंका रहेगी. विजिलेंस की चिट्ठी के बाद इस मामले में शासन के अधिकारियों के साथ ही विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत की भूमिका संदिग्ध होने के साथ पूरी सरकार कटघरे में आ गयी है. मुख्यमंत्री ने पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए बस इतना ही कहा कि वह इस मामले को दिखवा रहे हैं.
गवाहों के कॉलेज में कुलसचिव
सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की हवा खा चुके और विजिलेंस जांच झेल रहे आयुर्वेदिक विवि के पूर्व कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा की पद पर बहाली कर दी थी. दामन पर लगे दाग धुले भी नहीं थे और मिश्रा की उसी पद पर बहाली कर दी गई. जिस पद पर रहते भ्रष्टाचार के आरोप उनपर लगे थे. मिश्रा का निलंबन को समाप्त करना इसलिए भी गंभीर मामला है क्योंकि विजिलेंस में जो मामले दर्ज हैं उनका ट्रायल सम्बंधित न्यायलय में चल रहा है. इससे भी गंभीर मामला मिश्रा को उसी पद पर तैनाती देना है. जहां उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और जिनके खिलाफ विजिलेंस में मुकदमे दर्ज हैं. इससे भी गंभीर बात यह है कि इन मुकदमों के गवाह भी इसी विवि के अधिकारी कर्मचारी हैं. यदि कुलसचिव मिश्रा रहेंगे तो गवाहों को डिस्टर्ब करने की आशंका बनी रहेगी. मिश्रा की बहाली मुद्दा नहीं है वो बहाल हो सकते है लेकिन उन्हें क्लीन चिट मिलने से पहले उस पद पर तैनाती को लेकर सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि विभागीय सचिव चंद्रेश यादव इसे हाईकोर्ट के आदेशों का हवाला देकर सही बता रहे हैं.
बड़े नौकरशाहों के बीच गहरी पैठ
मिश्रा के शासन के वरिष्ठ अफसरों से भी मजबूत रिश्ते रहे हैं. त्रिवेंद्र सरकार के शुरुआती दौर में उनका जलवा रहा है. हालांकि यह बात और है कि जब उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी थी तब किसी नौकरशाह ने कोई मदद नहीं की. पुराने समय से भी उनका संपर्क उच्च स्तर पर ही था. उच्च शिक्षा विभाग के इस शिक्षक को वर्ष 2007 में मृत्युंजय मिश्रा ने उत्तराखंड तकनीकी विवि में कुलसचिव बनाया था. यहां उन पर 84 लाख रुपये के घोटाले का आरोप लगा. वहां के कुलपति के साथ विवाद के अलावा भी इनपर कई आरोप लगे. शासन ने कुलसचिव के पद से हटाकर इन्हें दिल्ली में बेहतर पोस्टिंग देकर नवाजा. दिल्ली से लौटे तो दोबारा उत्तराखंड आयुर्वेदिक विवि में रजिस्ट्रार बनाया गया. वहां इनपर एक करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगा. विजिलेंस ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. आयुष विभाग ने इनको निलंबित कर इनकी संबद्धता निरस्त कर दी.
लंबे समय तक जेल में रहने के बाद बाहर आते ही इन्होंने दोबारा कुर्सी हासिल करने की कसरत शुरू की. चार दिन पहले शासन ने इन्हें बहाल कर विवि में कुलसचिव के पद पर तैनात करने का आदेश दे दिया. इस आदेश के बाद इन्होंने पदभार संभाल लिया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज जोशी ने एतराज जताया लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. इसके बाद कुलपति ने शासन को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई. मामला सीएम पुष्कर सिंह धामी के संज्ञान में भी है. विभागीय सचिव चंद्रेश कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए विभाग ने कार्यवाई की है. इसके बाद ही उनका निलंबन खत्म कर बहाल किया गया. उन्होंने बताया कि विभाग अब मंत्रिमंडल के निर्णय का क्रियान्वयन करेगा. मंत्रिमंडल ने मृत्युंजय को उनके मूल विभाग उच्च शिक्षा में भेजने का निर्णय किया है. मूल विभाग में वापस भेजने से पहले उनकी बहाली होना आवश्यक थी.
कुलपति ने जारी किया आदेश
मिश्रा ने विवि में ज्वाइन तो कर लिया लेकिन कुलपति मनोज जोशी ने समस्त अधिकारियों कर्मचारियों को लिखित में निर्देश जारी किये है कि किसी भी तरह की पत्रावली मिश्रा के पास न भेजी जाय. इससे विवि का माहौल बिगड़ने की आशंका को बल मिल रहा है. क्योंकि विवि के भीतर कुलपति और कुलसचिव के बीच भी विवाद बढ़ने का अंदेशा है. जिसका बुरा प्रभाव अकादमिक कार्यों पर पड़ सकता है.
ये है सरकार के विवादित फैसले
रुड़की में सहायक नगर आयुक्त चंद्रकांत भट्ट को विगत 20 जुलाई को शहरी विकास निदेशालय से अटैच करके निलंबित किया था. उसे आनन फानन में बहाल कर उसी निगम में उसी पद पर तैनाती दे दी गयी. जहाँ से उन्हें गंभीर आरोपों के चलते हटाया गया था. भट्ट की एक जांच निदेशालय स्तर से हो रही है और एक जिलाधिकारी हरिद्वार कर रहे हैं.
भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड
गन्ना विकास मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने विभाग के अफसर आरके सेठ को भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड किया और फिर जाँच पूरी हुए बगैर उसे प्रमोट करके सितारगंज चीनी मिल का महाप्रबंधक बना दिया गया. इससे सरकार की खूब किरकिरी हुई लेकिन फैसला वापस नहीं हुआ.
राजपाल लेघा को लेकर सवाल
मुख्यमंत्री बनने के बाद धामी ने नैनीताल के खनन अधिकारी राजपाल लेघा को देहरादून निदेशालय में अतिरिक्त चार्ज देते हुए नवीनीकरण के कार्य का नोडल अधिकारी बनाकर बड़े अफसरों को हाशिये पर डाल दिया गया. खनन विभाग के सचिव और खनन निदेशक अब नाम भर के रह गए हैं. सब कुछ नोडल अधिकारी ही करेंगे. सरकार को लेघा से इतना प्यार है कि उसे समय से पहले प्रमोशन देने के लिए मुख्यमंत्री ने नियमावली में संशोधन भी कर दिया, ताकि कोई दिक्क्त न हो. वैसे तो चर्चा यह है कि एक सामान्य शिकायत पर एक अफसर को प्रतिकूल प्रविष्टि देकर उसका प्रमोशन रोका गया और फिर लेघा को ऊपर बैठाया गया.
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