तपोवन/जोशीमठ: जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो सभी सामूहिक उत्तरदायित्व मानकर राहत बचाव कार्यों में जुट जाते हैं. तपोवन में आई आपदा में भी यही हुआ. लेकिन यहां कुछ अलग भी था. दो महिला अधिकारियों के योगदान को सराहा जाना चाहिए. जो अपने छोटे-छोटे बच्चों को सप्ताह भर से अकेला छोड़कर फ्रंटफुट पर आकर राहत और बचाव कार्यों में जुटी हैं. आइये, इनके बारे में जानते है...


नीरू गर्ग 2005 बैच की आईपीएस अफसर हैं और मौजूदा समय में वह गढ़वाल रेंज की डीआईजी हैं. जिस चमोली ज़िले में आपदा आई है वह गढ़वाल पुलिस रेंज का हिस्सा है. इसलिए पिछले रविवार सात फरवरी को जब आपदा आई तो वह उसी दिन देहरादून छोड़कर जोशीमठ आ डटी. अपनी नौ साल की बेटी को हरिद्वार में अपनी मां के पास छोड़कर वो पीड़ितों की मदद करने के लिए आ गयी हैं. सुबह जोशीमठ से तपोवन फिर रैणी गांव और फिर तपोवन और फिर देर शाम जोशीमठ वापसी. वो कहती है कि मैं अपनी बेटी को मिस कर रही हूं लेकिन कुदरत की इस मार के मारे लोगों को राहत देना मेरी ड्यूटी का हिस्सा है. मेरी बेटी है इसलिए मैं मां का दर्द समझती हूं. लेकिन मैं अधिकारी हूं तो कर्तव्यों को भी नहीं भूल सकती.



चमोली की जिला मजिस्ट्रेट स्वाति भदोरिया की भी हर रोज यही दिनचर्या है. जिला मुख्यालय गोपेश्वर छोड़कर वह जोशीमठ में डटी हैं. हर रोज सैकड़ों फोन कॉल सुनना, नाराज़ लोगों को संतुष्ट करना, खाद्य रसद आपूर्ति से लेकर राहत बचाव कार्यों की मॉनिटरिंग करना, अपने अधीनस्थों के काम की मॉनिटरिंग के साथ ही जिम्मेदारी तय करने से लेकर कभी तपोवन में टनल के पास रेस्क्यू को देखती हुई मिलती हैं, तो कभी रैणी गांव में बीआरओ के काम काज को देखने और प्रभावितों को देखने निकल पड़ती हैं. वो अपने साढ़े तीन साल के बेटे से सुबह मिलती हैं या फिर देर रात.



अफ़सर भले ही हों लेकिन एक मां के लिए अपने छोटे बच्चों से कई-कई दिन तक अलग रहना आसान काम नहीं है. डीआईजी नीरू गर्ग की तरह वह भी विपरीत परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी निभाने पर जोर देती हैं.


आईटीबीपी की डीआईजी अपर्णा कुमार की कहानी भी उपरोक्त दो महिला अफसरों से अलग नहीं है. दिन भर में ज्यादा समय वह स्पॉट पर बिताती हैं और देहरादून छोड़कर जोशीमठ के आसपास के क्षेत्रों में डटी हैं. 2002 बैच की आईपीएस अधिकारी अपर्णा कुमार आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लगातार अपनी फ़ोर्स के काम काज की देखरेख में दिन भर घूमती हैं.




ऐसे में जब परिस्थितियां विपरीत हों, टास्क पूरा करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो, बार-बार रेस्क्यू की राह में समस्याएं आ रही हों, फिर भी इन महिला अफसरों के चेहरे पर शिकन नहीं है और अपने परिवार को छोड़ मोर्चे पर डटी हैं.


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