Uttarakhand News: उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल की व्यवस्थाओं पर एक बार फिर से गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. मंगलवार रात सहारनपुर से घायल तीन वर्षीय मासूम को लेकर पहुंचे परिजनों को इलाज के लिए 17 घंटे तक भटकना पड़ा. अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सकों की उदासीनता ने न केवल परिजनों को परेशान किया, बल्कि यह घटना अस्पताल की अव्यवस्था को भी उजागर करती है.
मंगलवार को सहारनपुर में तीन साल का मासूम छत से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया. परिवार उसे इलाज के लिए सहारनपुर से देहरादून के दून अस्पताल लेकर आया. लेकिन जब वे इमरजेंसी में पहुंचे, तो वहां मौजूद स्टाफ ने बच्चे को तत्काल भर्ती करने के बजाय कई जांचें करवाने की बात कही. परिजनों ने अस्पताल में जांच कराने की कोशिश की, लेकिन पता चला कि अधिकांश जांचें अस्पताल के बाहर ही करानी होंगी.
मासूम की मां आयशा रातभर अपने घायल बेटे को गोद में लेकर अस्पताल की सीढ़ियों पर बैठी रहीं. इस दौरान उन्होंने कई बार डॉक्टरों और स्टाफ से बच्चे को भर्ती करने की गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. “धरती के भगवान” कहे जाने वाले चिकित्सक भी अपनी संवेदनशीलता भूल गए.
बच्ची को भर्ती कराने के लिए रातभर भटकते रहे परिजन
रातभर अस्पताल में भटकने के बाद बुधवार सुबह परिजनों ने बाहर से आवश्यक जांचें कराईं. इसके बावजूद चिकित्सक बच्चे को भर्ती करने को तैयार नहीं थे. जब परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया, तब जाकर बुधवार दोपहर करीब दो बजे बच्चे को भर्ती किया गया. इस पूरे घटनाक्रम में 17 घंटे का समय लग गया, जो एक घायल बच्चे के लिए जीवन और मृत्यु के बीच का समय हो सकता था.
मामले को लेकर दून अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने कहा, “यह घटना दुखद है. अस्पताल प्रबंधन ने इसका संज्ञान लिया है और मामले की जांच की जा रही है. दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. फिलहाल, बच्चे को भर्ती कर उसका इलाज किया जा रहा है.”
परिजनों ने सरकार से व्यवस्थाओं में सुधार की मांग की
इस घटना के बाद अस्पताल की अव्यवस्थाओं को लेकर मरीजों और उनके परिजनों में आक्रोश है. परिजनों का कहना है कि अस्पताल में सुविधाओं की कमी और स्टाफ की लापरवाही का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग से मांग की जा रही है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अस्पताल में व्यवस्थागत सुधार किए जाएं. दून अस्पताल में घायल मासूम के इलाज में हुई देरी सरकारी अस्पतालों की बदहाल स्थिति को उजागर करती है. इस प्रकार की घटनाएं न केवल मरीजों के जीवन को खतरे में डालती हैं, बल्कि अस्पताल की साख को भी नुकसान पहुंचाती हैं.
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