Uttarakhand News: उत्तराखंड वन विभाग की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. वन महकमे को इस वित्तीय वर्ष में कैंपा (वनारोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण) सहित विभिन्न योजनाओं के तहत 300 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था. लेकिन वित्तीय वर्ष खत्म होने में तीन महीने से कम का समय बचा है पर अब तक सिर्फ 90 करोड़ रुपये यानी कुल बजट का 30 प्रतिशत रुपया ही खर्च किया गया है.
आम तौर पर सरकारी विभागों में बजट की कमी की शिकायतें सुनने को मिलती हैं, लेकिन उत्तराखंड का वन विभाग इसके उलट है. विभाग के पास पर्याप्त धनराशि उपलब्ध होने के बावजूद इसे खर्च करने में अफसरों को मुश्किल हो रही है. खास बात यह है कि राज्य के करीब 10 वन प्रभाग ऐसे हैं, जो अब तक अपने आवंटित बजट का केवल 10 से 20 प्रतिशत ही खर्च कर पाए हैं.
वन मंत्री ने दिए ये निर्देश
पिछले वित्तीय वर्ष में भी 110 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च न हो पाने के कारण इसे वापस करना पड़ा था. वहीं इस वर्ष भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा है. वन विभाग की इस धीमी कार्यप्रणाली से सरकार की योजनाओं और राज्य के पर्यावरणीय उद्देश्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. बीते दिनों वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक हुई, जिसमें अधिकारियों को खर्च में तेजी लाने के निर्देश दिए गए.
इस बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि जो राशि प्रभागों को आवंटित की गई है, उसका शत-प्रतिशत उपयोग किया जाए. मंत्री ने कहा, "सभी कार्य तय समय सीमा में पूरे हों और उनकी गुणवत्ता पर भी विशेष ध्यान दिया जाए." फिलहाल वित्तीय वर्ष खत्म होना वाला है और ऐसे में बचे हुए 210 करोड़ रुपये खर्च करना विभाग के लिए चुनौती का काम लग रहा है.
विशेषज्ञों ने क्या कहा?
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने कम समय में बजट को पूरी तरह खर्च करना मुश्किल है, खासकर तब जब विभाग की पहले से ही धीमी गति से काम करने की छवि हो. वन मुख्यालय के सीईओ कैंपा समीर सिन्हा ने कहा, "खर्च की निगरानी की जा रही है. वन मंत्री और प्रमुख सचिव भी लगातार अधिकारियों को दिशा-निर्देश दे रहे हैं. राज्य हित में उपलब्ध धनराशि का उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा और सभी काम मानकों के अनुरूप किए जाएंगे."
जानकारी के अनुसार, वन मुख्यालय स्तर पर हर हफ्ते खर्च की प्रगति को लेकर बैठकें हो रही हैं. प्रभागों के अधिकारियों को चेतावनी भी दी जा चुकी है. इसके बावजूद विभाग अब तक संतोषजनक परिणाम नहीं दे सका है. वन विभाग की इस कार्यप्रणाली ने न केवल विभागीय कार्यक्षमता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि पर्याप्त धनराशि मिलने के बावजूद सरकारी योजनाओं को समय पर पूरा करना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
उत्तराखंड वन विभाग के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण और सुधार का है. जलवायु परिवर्तन और वनों के संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों के मद्देनजर विभाग को आवंटित बजट का शत-प्रतिशत उपयोग करना चाहिए. साथ ही योजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति भी बनानी चाहिए. सरकार और संबंधित अधिकारियों को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करना होगा, ताकि राज्य के वनों और पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके.