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उत्तराखंड में उल्लुओं के अस्तित्व पर मंडराया खतरा! धामी सरकार ने रद्द कर दी सबकी छुट्टियां

भारत में कई क्षेत्रों में यह भ्रामक मान्यता प्रचलित है कि दीपावली के दौरान तांत्रिक क्रियाओं द्वारा उल्लुओं की बलि देने से धन, संपत्ति और इच्छाओं की पूर्ति होती है.

उत्तराखंड वन विभाग ने दीपावली के पहले उल्लुओं के शिकार पर अंकुश लगाने के लिए एक विशेष अलर्ट जारी किया है. दीपावली के दौरान अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र से जुड़े कारणों से उल्लुओं के अवैध शिकार का खतरा काफी बढ़ जाता है. मां लक्ष्मी के वाहन माने जाने वाले उल्लुओं को तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए बलि देने की घटनाएं इस अवधि में सबसे अधिक होती हैं. यह अलर्ट विभाग द्वारा उल्लुओं के संरक्षण और उनके अस्तित्व पर मंडराते संकट को देखते हुए जारी किया गया है.

अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के कारण बढ़ता उल्लुओं का शिकार
भारत में कई क्षेत्रों में यह भ्रामक मान्यता प्रचलित है कि दीपावली के दौरान तांत्रिक क्रियाओं द्वारा उल्लुओं की बलि देने से धन, संपत्ति और इच्छाओं की पूर्ति होती है. तांत्रिक और काले जादू से जुड़े लोग उल्लुओं के नाखून, पंख, आंखों और चोंच जैसी अंगों का इस्तेमाल तंत्र-मंत्र के दौरान करते हैं. यह दावा किया जाता है कि इन अंगों के इस्तेमाल से व्यक्ति को वशीकरण, आर्थिक समृद्धि, और बीमारियों के निवारण जैसी शक्तियां प्राप्त हो सकती हैं. इन अंधविश्वासों के चलते उल्लुओं की तस्करी और अवैध शिकार की घटनाएं बढ़ जाती हैं. विशेष रूप से दीपावली के समय उल्लुओं की मांग में वृद्धि देखी जाती है, जिससे वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा गहराता है.

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भारत में उल्लुओं की संकटग्रस्त प्रजातियां
दुनियाभर में उल्लू की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 50 प्रजातियां खतरे में हैं. भारत में उल्लुओं की लगभग 36 प्रजातियां हैं, जिनमें से कई संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं. भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत उल्लुओं की सभी प्रजातियों को संरक्षित किया गया है. बावजूद इसके, अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के कारण इन प्रजातियों का शिकार जारी है, जो इनके संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर रहा है. 

वन्यजीव कार्यकर्ताओं का मानना है कि तंत्र-मंत्र और जादू-टोने से जुड़े अंधविश्वास न केवल उल्लुओं के शिकार को बढ़ावा देते हैं, बल्कि इसके चलते इन संकटग्रस्त प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है. भारत में उल्लुओं की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें इन दुर्लभ प्रजातियों को भारी कीमतों पर बेचा जाता है. इसके चलते उनके संरक्षण के प्रयासों को बड़ा झटका लगता है.

उत्तराखंड वन विभाग का प्रयास
इस गंभीर समस्या को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड वन विभाग ने सभी जिलों में उल्लुओं के शिकार पर निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए हैं. विभाग के सदस्य सचिव डॉ. पराग मधुकर धकाते के अनुसार, विभाग ने ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने की योजना भी बनाई है, जिससे स्थानीय लोगों को उल्लुओं के संरक्षण और उनके शिकार से होने वाले खतरों के बारे में जानकारी दी जा सके. 

वन विभाग ने अपने कर्मचारियों को वन्य क्षेत्रों में गश्त बढ़ाने और उल्लुओं की अवैध तस्करी या शिकार से संबंधित गतिविधियों पर नजर रखने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा, वन्यजीव संगठनों के साथ मिलकर विभाग विशेष जागरूकता अभियान चलाने जा रहा है, जिसमें लोगों को उल्लुओं के धार्मिक और पारिस्थितिकी महत्व के बारे में बताया जाएगा. इसके तहत ग्रामीणों को भी यह जानकारी दी जाएगी कि उल्लुओं का शिकार वन्यजीव अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है.

संरक्षण के लिए संयुक्त कार्रवाई जरूरी
दीपावली के दौरान उल्लुओं के शिकार को रोकने के लिए वन विभाग और स्थानीय पुलिस की संयुक्त कार्रवाई बेहद जरूरी है. वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और पुलिस विभाग के समन्वय से इस अवधि के दौरान उल्लुओं की तस्करी और अवैध शिकार पर नकेल कसी जा सकती है. साथ ही, उल्लुओं के संरक्षण के लिए समाज के हर वर्ग को इस दिशा में जागरूक किया जाना भी आवश्यक है.

उत्तराखंड वन विभाग का यह कदम वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में एक अहम प्रयास है. उल्लुओं का संरक्षण न केवल वन्यजीवों की जैव विविधता के लिए जरूरी है, बल्कि इससे पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी मदद मिलती है. इस दिशा में विभाग का अलर्ट और सख्त निगरानी उल्लुओं के अवैध शिकार को रोकने में कारगर साबित हो सकती है.

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