पहाड़ी राज्य उत्तराखंड आज अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. इसकी स्थापना नौ नवंबर 2000 को हुई थी. स्थापना के बाद से आज तक इस राज्य ने कई मुकाम हासिल किए हैं. वह उत्तरांचल से उत्तराखंड भी हो गया है. इतना सब होने के बाद भी एक घटना उत्तराखंडवासियों के सीने में टीस की तरह है. हम बात कर रहे हैं रामपुर तिराहा कांड की. 


अलग उत्तराखंड की मांग 1980 के दशक में ही उठने लगी थी. लेकिन इस मांग ने 1990 के दशक और जोर पकड़ा. अलग राज्य की मांग कर रहे आंदोलनकारी इसके लिए धरना-प्रदर्शन, रैली निकालने और आंदोलन के अन्य रास्ते अपना रहे थे. गांव-देहात में अलग उत्तराखंड के नारे गूंज रहे थे. इस बीच आंदोलनकारियों ने अक्तूबर 1994 में 'दिल्ली कूच' का नारा दिया. दो अक्तूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना था. पहाड़ों से बड़ी संख्या में आंदोलनकारी बसों में सवार होकर दिल्ली कूच कर रहे थे. उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. उनकी सरकार अलग उत्तराखंड के पक्ष में नहीं थी. सरकार आंदोलनकारियों को किसी भी कीमत पर दिल्ली नहीं जाने देना चाहती थी. वह आंदोलनकारियों की बसों को रोक रही थी.  


गांधी जयंती पर बरसी थीं गोलियां


देश दो अक्तूबर की रात अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाने की तैयारी कर रहा था. उस दिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने बसों में दिल्ली जा रहे उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर रोक लिया. यह देखकर आंदोलनकारी भड़क गए. वो वहां उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इस पर पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली चलानी शुरू कर दी. इसमें रविंद्र रावत उर्फ गोलू, सत्येंद्र चौहान, गिरीश भदरी, राजेश लखेड़ा, सूर्यप्रकाश थपलियाल, अशोक कुमार और राजेश नेगी की मौत हो गई थी. 


आंदोलकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने महिलाओं के साथ बदसलूकी भी की. कुछ महिलाओं ने अपने साथ बलात्कार होने के भी आरोप लगाए. पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई पूरी रात चलती रही. इसकी खबर पूरे देश में आग की तरह फैली. हर तरफ उत्तर प्रदेश सरकार की मुलायम सिंह यादव के सरकार की आलोचना होने लगी. इस कांड का ही असर था कि मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी कभी भी उत्तराखंड में पैर नहीं जमा पाई.    


सीबीआई जांच का हासिल क्या है


सरकार ने उसी साल इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने सात मामलों में अदालत में चार्जशीट दायर की थी. इनमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक आरपी सिंह को आरोपी बनाया गया था. इन सात मामलों में से तीन मामले अलग-अलग कारणों से खत्म हो चुके हैं. चार मामले अभी भी मुजफ्फरनगर की अदालतों में लंबित हैं. 


इस बीच अलट बिहारी वाजपेयी की सरकार ने नौ नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश को बांटकर उत्तरांचल के नाम से अलग राज्य बना दिया. उत्तरांचल सरकार ने दिसंबर 2006 में राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया. स्थापना के बाद से राज्य में आठ राज्यपाल और 10 मुख्यमंत्री हो चुके हैं, लेकिन रामपुर तिराहा कांड के पीड़ितों और राज्य के लोगों को 28 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार है. देखते हैं उनकी यह आस कब पूरी होती है.   


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