Uttarakhand News: उत्तराखंड में शिक्षा विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है. शैक्षिणक सत्र शुरू होने के डेढ़ महीने बाद भी बच्चों को किताबें नहीं मिली हैं. ज्यादातर स्कूलों में बच्चे पुरानी किताबों से पढ़ाई करने को मजबूर हैं. हालांकि कुछ स्कूलों में एक दो सब्जेक्ट की किताबें जरूर भेजी गई हैं. शिक्षा विभाग की लापरवाही का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है. विभागीय मंत्री धन सिंह रावत का दावा है कि प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में किताबें पहुंच चुकी हैं. लेकिन एबीपी गंगा की रियलिटी चेक में मंत्री के दावे की हकीकत सामने आ गई. बच्चों ने शिक्षा मंत्री के दावे की कलई खोल दी. बच्चों ने साफ बताया कि पढ़ाई पुरानी किताबों से हो रही हैं.


शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के दावे की रियलटी चेक में खुली कलई


बता दें कि पौड़ी जिले में सबसे अधिक 1994 सरकारी स्कूल हैं. अल्मोड़ा में 1713, बागेश्ववर में 768, चमोली में 1325, चंपावत में 682, देहरादून में 1296, हरिद्वार में 938, नैनीताल में 1349, पिथौरागढ़ में 1487, रुद्रप्रयाग में 765, टिहरी में 1901, ऊधमसिंह नगर में 1110 और उत्तरकाशी में 1173 सरकारी स्कूल हैं. शिक्षा महानिदेशक वंशीधर तिवारी का कहना है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अभी मात्र 15 फीसद ही किताबें पहुंच पाई हैं. शिक्षा विभाग के मंत्री और सबसे बड़े अधिकारी का बयान विरोधाभासी है. मुफ्त किताबें छापने के लिए करोड़ों रुपए का बजट हर साल पास किया जाता है. लेकिन बच्चे बिना किताबों के आधा सेशन निकाल देते हैं.


शैक्षणिक सत्र शुरू होने के डेढ़ महीने बाद भी नहीं मिली किताबें


बंशीधर तिवारी का दावा है कि गर्मी की छुट्टियों में भी किताबों को बांटने का सिलसिला जारी रहेगा. अधिकारी और टीचर बच्चों के घर घर जाकर किताबें बांटने का काम करेंगे. उत्तराखंड में सरकार कक्षा एक से 12वीं तक के बच्चों को मुफ्त पुस्तक देना बड़ी उपलब्धि गिनाती रही है. प्रदेश में 16,501 सरकारी और 614 अशासकीय स्कूल हैं. करीब 11 लाख बच्चों को किताबें उपलब्ध कराई जानी हैं. नियमानुसार नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले सभी छात्र-छात्राओं तक मुफ्त किताबें पहुंच जानी चाहिए. लेकिन शैक्षणिक सत्र शुरू होने के डेढ़ महीने बाद भी स्कूलों में मुफ्त किताबें नहीं बंट पाई हैं. 


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